रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (अयोध्याकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 10
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड


दो०- सुनि सनेह साने बचन, मुनि रघुबरहि प्रसंस।
राम कस न तुम्ह कहहु अस, हंस बंस अवतंस॥९॥


[श्रीरामचन्द्रजीके] प्रेममें सने हुए वचनोंको सुनकर मुनि वसिष्ठजीने श्रीरघुनाथजीकी प्रशंसा करते हुए कहा कि हे राम! भला, आप ऐसा क्यों न कहें। आप सूर्यवंशके भूषण जो हैं॥९॥


बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ।
बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ॥
भूप सजेउ अभिषेक समाजू।
चाहत देन तुम्हहि जुबराजू॥

श्रीरामचन्द्रजीके गुण, शील और स्वभावका बखान कर, मुनिराज प्रेमसे पुलकित होकर बोले-[हे रामचन्द्रजी!] राजा (दशरथजी)-ने राज्याभिषेक की तैयारी की है। वे आपको युवराज-पद देना चाहते हैं॥१॥


राम करहु सब संजम आजू।
जौं बिधि कुसल निबाहै काजू॥
गुरु सिख देइ राय पहिं गयऊ।
राम हृदय अस बिसमउ भयऊ॥


[इसलिये] हे रामजी! आज आप [उपवास, हवन आदि विधिपूर्वक] सब संयम कीजिये, जिससे विधाता कुशलपूर्वक इस काम को निबाह दें (सफल कर दें)। गुरुजी शिक्षा देकर राजा दशरथजी के पास चले गये। श्रीरामचन्द्रजी के हृदय में [यह सुनकर] इस बातका खेद हुआ कि--॥२॥


जनमे एक संग सब भाई।
भोजन सयन केलि लरिकाई॥
करनबेध उपबीत बिआहा।
संग संग सब भए उछाहा।


हम सब भाई एक ही साथ जन्मे; खाना, सोना, लड़कपनके खेल-कूद, कनछेदन, यज्ञोपवीत और विवाह आदि उत्सव सब साथ-साथ ही हुए॥३॥


बिमल बंस यहु अनुचित एकू।
बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू॥
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई।
हरउ भगत मन कै कुटिलाई॥


पर इस निर्मल वंश में यही एक अनुचित बात हो रही है कि और सब भाइयोंको छोड़कर राज्याभिषेक एक बड़े का ही (मेरा ही) होता है। [तुलसीदासजी कहते हैं कि] प्रभु श्रीरामचन्द्रजीका यह सुन्दर प्रेमपूर्ण पछतावा भक्तोंके मनकी कुटिलताको हरण करे॥४॥

 

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