रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (किष्किन्धाकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (किष्किन्धाकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
0 |
भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। चतुर्थ सोपान अरण्यकाण्ड
वर्षा-ऋतु में भगवान् का प्रवर्षण पर्वत पर निवास
अंगद सहित करहु तुम्ह राजू।
संतत हृदयँ धरेहु मम काजू॥
जब सुग्रीव भवन फिरि आए।
रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।
संतत हृदयँ धरेहु मम काजू॥
जब सुग्रीव भवन फिरि आए।
रामु प्रबरषन गिरि पर छाए।
तुम अंगदसहित राज्य करो। मेरे काम का हृदयमें सदा ध्यान रखना। तदनन्तर जब सुग्रीवजी घर लौट आये, तब श्रीरामजी प्रवर्षण पर्वत पर जा टिके॥५॥
दो०- प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥१२॥
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिंगे आइ॥१२॥
देवताओं ने पहले से ही उस पर्वत की एक गुफा को सुन्दर बना (सजा) रखा था। उन्होंने सोच रखा था कि कृपा की खान श्रीरामजी कुछ दिन यहाँ आकर निवास करेंगे॥ १२॥
सुंदर बन कुसुमित अति सोभा।
गुंजत मधुप निकर मधु लोभा॥
कंद मूल फल पत्र सुहाए।
भए बहुत जब ते प्रभु आए।
गुंजत मधुप निकर मधु लोभा॥
कंद मूल फल पत्र सुहाए।
भए बहुत जब ते प्रभु आए।
सुन्दर वन फूला हुआ अत्यन्त सुशोभित है। मधुके लोभसे भौंरोंके समूह गुंजार कर रहे हैं। जबसे प्रभु आये, तबसे वनमें सुन्दर कन्द, मूल, फल और पत्तोंकी बहुतायत हो गयी॥१॥
देखि मनोहर सैल अनूपा।
रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा।
करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा।
रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा।
करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा।
मनोहर और अनुपम पर्वत को देखकर देवताओं के सम्राट् श्रीरामजी छोटे भाईसहित वहाँ रह गये। देवता, सिद्ध और मुनि भौंरों, पक्षियों और पशुओं के शरीर धारण करके प्रभुकी सेवा करने लगे॥२॥
मंगलरूप भयउ बन तब ते।
कीन्ह निवास रमापति जब ते॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई।
सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई॥
कीन्ह निवास रमापति जब ते॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई।
सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई॥
जबसे रमापति श्रीरामजीने वहाँ निवास किया तबसे वन मङ्गलस्वरूप हो गया। सुन्दर स्फटिकमणिकी एक अत्यन्त उज्ज्वल शिला है, उसपर दोनों भाई सुखपूर्वक विराजमान हैं।। ३॥
कहत अनुज सन कथा अनेका।
भगति बिरति नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए।
गरजत लागत परम सुहाए।
भगति बिरति नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए।
गरजत लागत परम सुहाए।
श्रीरामजी छोटे भाई लक्ष्मणजीसे भक्ति, वैराग्य, राजनीति और ज्ञान की अनेकों कथाएँ कहते हैं। वर्षाकालमें आकाश में छाये हुए बादल गरजते हुए बहुत ही सुहावने लगते हैं॥४॥
|
लोगों की राय
No reviews for this book