रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (सुंदरकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (सुंदरकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 13
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। पंचम सोपान किष्किन्धाकाण्ड


श्रीरामजी का वानरों की सेना के साथ चलकर समुद्रतट पर पहुँचना



दो०- एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर॥३५॥

इस प्रकार कृपानिधान श्रीरामजी समुद्रतटपर जा उतरे। अनेकों रीछ-वानर वीर जहाँ-तहाँ फल खाने लगे॥३५॥

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका।
जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा।
नहिं निसिचर कुल केर उबारा॥

वहाँ (लङ्का में) जब से हनुमानजी लङ्का को जलाकर गये; तबसे राक्षस भयभीत रहने लगे। अपने-अपने घरों में सब विचार करते हैं कि अब राक्षसकुल की रक्षा [का कोई उपाय] नहीं है॥१॥

जासु दूत बल बरनि न जाई।
तेहि आएँ पुर कवन भलाई।
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी।
मंदोदरी अधिक अकुलानी।

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