रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (लंकाकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (लंकाकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। षष्ठम सोपान लंकाकाण्ड
लक्ष्मण-मेघनाद-युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना
शेषजी (लक्ष्मणजी) उसपर अनेक प्रकारसे प्रहार करने लगे। राक्षसके प्राणमात्र शेष रह गये। रावणपुत्र मेघनादने मनमें अनुमान किया कि अब तो प्राणसंकट आ बना, ये मेरे प्राण हर लेंगे॥३॥
बीरघातिनी छाडिसि साँगी।
तेजपुंज लछिमन उर लागी॥
मुरुछा भई सक्ति के लागें।
तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।
तेजपुंज लछिमन उर लागी॥
मुरुछा भई सक्ति के लागें।
तब चलि गयउ निकट भय त्यागें।
तब उसने वीरघातिनी शक्ति चलायी। वह तेजपूर्ण शक्ति लक्ष्मणजीकी छातीमें लगी। शक्तिके लगनेसे उन्हें मूर्छा आ गयी। तब मेघनाद भय छोड़कर उनके पास चला गया।॥४॥
दो०- मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ।
जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ॥५४॥
जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ॥५४॥
मेघनादके समान सौ करोड़ (अगणित) योद्धा उन्हें उठा रहे हैं। परन्तु जगतके आधार श्रीशेषजी (लक्ष्मणजी) उनसे कैसे उठते? तब वे लजाकर चले गये॥५४॥
सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू।
जारइ भुवन चारिदस आसू॥
सक संग्राम जीति को ताही।
सेवहिं सुर नर अग जग जाही।
जारइ भुवन चारिदस आसू॥
सक संग्राम जीति को ताही।
सेवहिं सुर नर अग जग जाही।
[शिवजी कहते हैं--] हे गिरिजे! सुनो, [प्रलयकालमें] जिन (शेषनाग) के क्रोधकी अग्नि चौदहों भुवनोंको तुरंत ही जला डालती है और देवता, मनुष्य तथा समस्त चराचर [जीव] जिनकी सेवा करते हैं, उनको संग्राममें कौन जीत सकता है ?॥१॥
यह कौतूहल जानइ सोई।
जा पर कृपा राम कै होई॥
संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी।
लगे सँभारन निज निज अनी॥
जा पर कृपा राम कै होई॥
संध्या भइ फिरि द्वौ बाहनी।
लगे सँभारन निज निज अनी॥
इस लीलाको वही जान सकता है जिसपर श्रीरामजीकी कृपा हो। सन्ध्या होनेपर दोनों ओरकी सेनाएँ लौट पड़ी; सेनापति अपनी-अपनी सेनाएँ सँभालने लगे॥२॥
ब्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर।
लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर।
तब लगि लै आयउ हनुमाना।
अनुज देखि प्रभु अति दुख माना॥
लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर।
तब लगि लै आयउ हनुमाना।
अनुज देखि प्रभु अति दुख माना॥
व्यापक, ब्रह्म, अजेय, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के ईश्वर और करुणाकी खान श्रीरामचन्द्रजी ने पूछा-लक्ष्मण कहाँ हैं ? तबतक हनुमान उन्हें ले आये। छोटे भाईको [इस दशामें] देखकर प्रभुने बहुत ही दु:ख माना॥ ३॥
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