रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (उत्तरकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड
यहाँ के निवासी मुझे बहुत ही प्रिय हैं। यह
पुरी सुख की राशि और मेरे
परमधामको देनेवाली है। प्रभुकी वाणी सुनकर सब वानर हर्षित हुए [और कहने
लगे कि] जिस अवध की स्वयं श्रीरामजीने बड़ाई की, वह [अवश्य ही] धन्य
है।।4।।
दो.-आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ भूमि बिमान।।4क।।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ भूमि बिमान।।4क।।
कृपासागर भगवान् श्रीरामचन्द्रजीने सब लोगों
को आते देखा, तो प्रभुने विमानको नगरके समीप उतरने की प्रेरणा की। तब वह
पृथ्वी पर उतरा।।4(क)।।
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।।4ख।।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।।4ख।।
विमान से उतरकर प्रभुने पुष्पकविमानसे कहा कि
तुम अब कुबेर के पास जाओ।
श्रीरामजीकी प्रेरणा से वाहक चले। उसे, [अपने स्वमीके पास जानेका] हर्ष
है और प्रभु श्रीरामचन्द्रजीसे अलग होनेका अत्यन्त दुःख भी।।4(ख)।।
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