श्रीमद्भगवद्गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १

महर्षि वेदव्यास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4
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श्रीमद्भगवद्गीता पर सरल और आधुनिक व्याख्या

गाण्डीव स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मन:।।30।।

हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है; इसलिये मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ।।30।।

अकस्मात् संबंधियों और मित्रों को एक क्षितिज तक फैली विशाल सेना के रूप में युद्ध के लिए तत्पर देखकर और उसके कारण होने वाले अभूतपूर्व विनाश के बारे में सोच कर अर्जुन के संवेदनशील मन में पहली बार यह विचार आता है कि उसके ही कारण यहाँ एकत्र उसके स्वजन और प्रस्तुत अन्य न जाने कितने योद्धा काल के गाल में लगभग निश्चित ही चले जाने वाले हैं। उसका अपराध बोध इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वह भलीभाँति जानता है कि वह स्वयं इस युद्ध के सूत्रधारों में से एक है। इस प्रकार के विचारों के मन में आने पर उसका संवेदनशील मानव-मन करुणा से भर जाता है। किसी भी योद्धा को करुणा अशक्त बना देती है। मनुष्य ही है जो है कि नाना प्रकार की भावनाओं से ओत-प्रोत होता है। अर्जुन जो कि सर्वश्रेष्ठ योद्धा है, अपने समय का श्रेष्ठ धनुर्धर है। महान् तप करके अर्जुन ने विभिन्न देवी देवताओं से दिव्य शस्त्रास्त्र एकत्र किए हैं। उसकी धनुर्विद्या के विषय में अतिशयोक्तियाँ जन-जन के बीच में प्रचलित हो चुकी हैं। अर्जुन ही है जिसे पितामह भीष्म सबसे अधिक स्नेह करते हैं। अर्जुन को ही द्रोणाचार्य अपने सर्वश्रेष्ठ शिष्य मानते हैं। अर्जुन ही है जो कि अपनी धनुर्विद्या के बल पर उस काल की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी द्रौपदी के पाण्डवों की पत्नी बनाने का कारण बनता है। अर्जुन मनुष्यों का एक संपूर्ण प्रतिनिधि और मानवों के अच्छे गुणों का सर्वश्रेष्ठ प्रतिबिम्ब है। इसीलिए यह दया, करुणा और भीरुता अर्जुन के मन में मनुष्यों के लिए है। क्योंकि वह भी सबसे पहले एक मनुष्य ही है। दूसरी ओर अर्जुन ही है जिसे अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में अपमानजनक स्थिति में बृहन्नला बनना पड़ा था। इसके अतिरिक्त भरी सभा में द्रौपदी का अपमान निश्चित रुप से अक्षम्य अपराध था। अपमान की इतनी अधिक पीड़ा झेलने के बाद आज युद्ध के लिए उद्यत अर्जुन असंख्य जन हानि की संभावित मृत्यु की कल्पना से घबरा जाता है। इस प्रकार की मानसिक अवस्था में पहुँचे व्यक्ति का मुँह सूखने लगता है, शरीर का ताप बढ़ जाता है। शरीर शिथिल हो जाता है, यहाँ तक कि अपने पैरों पर खड़े रहना कठिन हो जाता है। आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है। अच्छा भला स्वस्थ व्यक्ति अचानक रुग्ण हो जाता है।

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