श्रीमद्भगवद्गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय १

महर्षि वेदव्यास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

श्रीमद्भगवद्गीता पर सरल और आधुनिक व्याख्या

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।35।।

हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता; फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है?।।35।।

अर्जुन की मानसिक स्थिति क्रमशः बिगड़ती जा रही है। वह कहता है कि यदि कौरव युद्ध में उसे मार भी दें, तब भी और यदि तीनों लोकों का राज्य अपनी सारी समृद्धि के साथ उसे बिना किसी प्रयास के दे दिया जाए, तब भी वह अब इस युद्ध में प्रवृत्त नहीं होगा। पृथ्वी का राज्य अथवा हस्तिनापुर का राज्य के लिए तो निश्चित् युद्ध नहीं करेगा!

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book