वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :602
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7
आईएसबीएन :1234567890

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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान

हम अनन्त काल से विद्यमान हैं और रहेंगे और ब्रह्माण्ड में ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जो हम लोगों का अस्तित्व मिटा सके। इस पुनर्जन्मवाद से हमें किसी तरह डरना नहीं चाहिए, क्योंकि वही तो मानव की नैतिक उन्नति का प्रधान सहायक है। चिन्तनशील व्यक्तियों का यही न्यायसंगत सिद्धान्त है। यदि भविष्य में चिरकाल के लिए तुम्हारा अस्तित्व रहना सम्भव हो, तो यह भी सच है कि अनादि काल से तुम्हारा अस्तित्व था : इसके अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता। इस मत के विरुद्ध कई आपत्तियाँ उठायी गयी हैं, मैं उनका निराकरण करने की चेष्टा करूँगा। यद्यपि तुममें से अनेक इन आपत्तियों को साधारण सी समझेंगे फिर भी हमें इनका उत्तर देना होगा, क्योंकि हम देखते हैं कि बड़े-बड़े चिन्तनशील व्यक्ति भी कभी-कभी बिलकुल बच्चों की सी बातें किया करते हैं। लोग जो कहते हैं कि 'इतना असंगत कोई मत नहीं, जिसके समर्थन के लिए कोई दार्शनिक न मिले', यह बिलकुल सच है। पहली शंका यह है कि हमें अपने जन्म-जन्मान्तर की बातें क्यों याद नहीं रहतीं ? इस पर यह पूछा जा सकता है कि क्या इसी जन्म की सब बीती घटनाओं को हम याद रख सकते हैं? तुममें से कितनों को बचपन की घटनाएँ स्मरण हैं? किसी को नहीं। अतएव यदि अस्तित्व स्मृतिशक्ति पर निर्भर रहता हो, तब तो कहना पड़ेगा कि शिशु रूप में तुम्हारा अस्तित्व ही नहीं था क्योंकि उस समय की कोई बात तुमको याद नहीं है। अतः यह कहना निरी मूर्खता है कि हम अपने पूर्वजन्म का अस्तित्व तभी स्वीकार करेंगे, जब हम उसे स्मरण कर सकें। पूर्वजन्म की बातें भला क्यों हमारी स्मृति में रहें? उस समय का मस्तिष्क अब नहीं है–वह बिलकुल नष्ट हो गया है और एक नये मस्तिष्क की रचना हुई है। अतीत काल के संस्कारों का जो समष्टिभूत फल है, वही हमारे मस्तिष्क में आया है- उसी को लेकर मन हमारे इस नये शरीर में अवस्थित है।

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