वेदान्त >> वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान वेदान्त पर स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानस्वामी विवेकानन्द
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स्वामी जी द्वारा अमेरिका और ब्रिटेन में वेदान्त पर दिये गये व्याख्यान
“जो अनेकता में एकता का दर्शन करता है, जो इस अचेतन जड़ पिण्ड में एक ही चेतना का अनुभव करता है, एवं जो छायाओं के जगत् में 'सत्य' को ग्रहण कर पाता है, केवल उसी मनुष्य को शाश्वत शान्ति मिल सकती है, और किसी को नहीं, और किसी को नहीं।”
कठोपनिषद् , २।२।१३
ईश्वर के सम्बन्ध में भारतीय दर्शन ने जो तीन कदम उठाये, उनकी ये ही प्रमुख विशेषताएँ हैं। हमने देखा कि इसका प्रारम्भ ऐसे ईश्वर की कल्पना से हुआ, जो सगुण व्यक्ति है तथा विश्व से परे है। यह दर्शन बृहद् ब्रह्माण्ड से सूक्ष्म ब्रह्माण्ड- ईश्वर- तक आया, जिसे विश्व में अन्तर्व्याप्त माना गया। और, अन्त में आत्मा ही को परमात्मा मानकर सम्पूर्ण विश्व में एक सत्ता की अभिव्यक्ति को स्वीकार किया गया। वेदों की यही चरम शिक्षा है। इस तरह यह दर्शन द्वैतवाद से प्रारम्भ होकर विशिष्टाद्वैत से होता हुआ शुद्ध अद्वैतवाद में विकसित होता है। हम जानते हैं कि संसार में बहुत कम लोग ही इस अन्तिम अवस्था तक आ सकते हैं या इसमें विश्वास करने का साहस रख सकते हैं, और इसे व्यवहार में लानेवाले तो उनसे भी विरल हैं। फिर भी इतना तो स्पष्ट है कि सम्पूर्ण नीतिशास्त्र और आध्यात्मिकता का रहस्य यही है। क्यों सब लोग कहते हैं- “दूसरे की भलाई करो?” इसका कारण कहाँ है? क्यों सभी महान् व्यक्ति मानवजाति में विश्वबन्धुत्व की शिक्षा देते हैं और महत्तर व्यक्ति समस्त प्राणियों में? कारण यह है कि चाहे वे जानें या न जानें, पर उनकी हर धारणा, उनके हर तर्कहीन एवं वैयक्तिक अन्धविश्वास के मूल में निहित एक आत्मा का शाश्वत प्रकाश बार-बार अपनी अनन्त व्यापकता को प्रकट करता है, अनेक रूपों में विद्यमान अपनी एक सत्ता का प्रतिपादन करता है।
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