रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
|
0 |
भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। प्रथम सोपान बालकाण्ड
मानस निर्माण की तिथि
एहि बिधि सब संसय करि दूरी।
सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी।
करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥
इस प्रकार सब संदेहों को दूर करके और श्रीगुरुजीके चरणकमलों की रजको सिरपर धारण
करके मैं पुनः हाथ जोड़कर सबकी विनती करता हूँ, जिससे कथा की रचना में कोई दोष
स्पर्श न करने पावे ॥१॥ सिर धरि गुर पद पंकज धूरी॥
पुनि सबही बिनवउँ कर जोरी।
करत कथा जेहिं लाग न खोरी॥
सादर सिवहि नाइ अब माथा।
बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा।
करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥
अब मैं आदरपूर्वक श्रीशिवजी को सिर नवाकर श्रीरामचन्द्रजी के गुणों की निर्मल
कथा कहता हूँ। श्रीहरिके चरणोंपर सिर रखकर संवत् १६३१ में इस कथा का आरम्भ करता
हूँ॥२॥बरनउँ बिसद राम गुन गाथा॥
संबत सोरह सै एकतीसा।
करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥
नौमी भौम बार मधुमासा।
अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥
चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्रीअयोध्याजी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ।
जिस दिन श्रीरामजी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि उस दिन सारे तीर्थ वहाँ
(श्रीअयोध्याजीमें) चले आते हैं ॥३॥अवधपुरीं यह चरित प्रकासा॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं।
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं॥
असुर नाग खग नर मुनि देवा।
आइ करहिं रघुनायक सेवा।
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना।
करहिं राम कल कीरति गाना॥
असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजीमें आकर श्रीरघुनाथजीकी
सेवा करते हैं। बुद्धिमान् लोग जन्मका महोत्सव मनाते हैं और श्रीरामजीकी सुन्दर
कीर्तिका गान करते हैं ॥४॥आइ करहिं रघुनायक सेवा।
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना।
करहिं राम कल कीरति गाना॥
दो०- मज्जहिं सज्जन बूंद बहु पावन सरजू नीर।
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥३४॥
सज्जनोंके बहुत-से समूह उस दिन श्रीसरयूजीके पवित्र जलमें स्नान करते हैं और
हृदयमें सुन्दर श्यामशरीर श्रीरघुनाथजीका ध्यान करके उनके नामका जप करते
हैं॥३४॥जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥३४॥
दरस परस मजन अरु पाना।
हरइ पाप कह बेद पुराना।
नदी पुनीत अमित महिमा अति।
कहि न सकइ सारदा बिमल मति ॥
वेद-पुराण कहते हैं कि श्रीसरयूजीका दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापोंको
हरता है। यह नदी बड़ी ही पवित्र है, इसकी महिमा अनन्त है, जिसे विमल बुद्धिवाली
सरस्वतीजी भी नहीं कह सकती ॥१॥हरइ पाप कह बेद पुराना।
नदी पुनीत अमित महिमा अति।
कहि न सकइ सारदा बिमल मति ॥
राम धामदा पुरी सुहावनि।
लोक समस्त बिदित अति पावनि।
चारि खानि जग जीव अपारा।
अवध तजें तनु नहिं संसारा॥
यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्रीरामचन्द्रजीके परमधामकी देनेवाली है, सब लोकोंमें
प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। जगतमें [अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज]
चार खानि (प्रकार) के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्याजीमें शरीर
छोड़ते हैं वे फिर संसारमें नहीं आते (जन्म-मृत्युके चक्करसे छूटकर भगवानके
परमधाममें निवास करते हैं)॥२॥लोक समस्त बिदित अति पावनि।
चारि खानि जग जीव अपारा।
अवध तजें तनु नहिं संसारा॥
सब बिधि पुरी मनोहर जानी।
सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।।
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा।
सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥
इस अयोध्यापुरीको सब प्रकारसे मनोहर, सब सिद्धियोंकी देनेवाली और कल्याणकी खान
समझकर मैंने इस निर्मल कथाका आरम्भ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट
हो जाते हैं ॥३॥ सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।।
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा।
सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥
|
लोगों की राय
No reviews for this book