रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड) श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड)गोस्वामी तुलसीदास
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। प्रथम सोपान बालकाण्ड
सती का दक्ष-यज्ञ में जाना
लगे कहन हरि कथा रसाला ।
दच्छ प्रजेस भए तेहि काला॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक ।
दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ।।
दच्छ प्रजेस भए तेहि काला॥
देखा बिधि बिचारि सब लायक ।
दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक ।।
शिवजी भगवान हरिकी रसमयी कथाएँ कहने लगे। उसी समय दक्ष प्रजापति हुए। ब्रह्माजीने सब प्रकारसे योग्य देख-समझकर दक्षको प्रजापतियोंका नायक बना दिया॥३॥
बड़ अधिकार दच्छ जब पावा ।
अति अभिमानु हृदयँ तब आवा॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं ।
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।
अति अभिमानु हृदयँ तब आवा॥
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं ।
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।
जब दक्षने इतना बड़ा अधिकार पाया तब उनके हृदयमें अत्यन्त अभिमान आ गया। जगतमें ऐसा कोई नहीं पैदा हुआ जिसको प्रभुता पाकर मद न हो॥४॥
दो०- दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥६०॥
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥६०॥
दक्षने सब मुनियोंको बुला लिया और वे बड़ा यज्ञ करने लगे। जो देवता यज्ञका भाग पाते हैं, दक्षने उन सबको आदरसहित निमन्त्रित किया॥६०॥
किंनर नाग सिद्ध गंधर्वा ।
बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा।
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई ।
चले सकल सुर जान बनाई।
बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा।
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई ।
चले सकल सुर जान बनाई।
[दक्षका निमन्त्रण पाकर] किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता अपनी अपनी स्त्रियोंसहित चले। विष्णु, ब्रह्मा और महादेवजीको छोड़कर सभी देवता अपना अपना विमान सजाकर चले ॥१॥
सती बिलोके ब्योम बिमाना ।
जात चले सुंदर बिधि नाना॥
सुर सुंदरी करहिं कल गाना ।
सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥
जात चले सुंदर बिधि नाना॥
सुर सुंदरी करहिं कल गाना ।
सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥
सतीजी ने देखा अनेकों प्रकार के सुन्दर विमान आकाश में चले जा रहे हैं। देव-सुन्दरियाँ मधुर गान कर रही हैं, जिन्हें सुनकर मुनियोंका ध्यान छूट जाता है।॥ २॥
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं । कछु दिन जाइ रहौं मिस एहीं।
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं । कछु दिन जाइ रहौं मिस एहीं।
सतीजीने [विमानोंमें देवताओंके जानेका कारण] पूछा, तब शिवजीने सब बातें बतलायीं। पिताके यज्ञकी बात सुनकर सती कुछ प्रसन्न हुईं और सोचने लगीं कि यदि महादेवजी मुझे आज्ञा दें, तो इसी बहाने कुछ दिन पिताके घर जाकर रहूँ॥३॥
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