रामायण >> श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड)

श्रीरामचरितमानस अर्थात तुलसी रामायण (बालकाण्ड)

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :0
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 9
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भारत की सर्वाधिक प्रचलित रामायण। प्रथम सोपान बालकाण्ड


बन्दीजनों द्वारा जनक की प्रतिज्ञा की घोषणा



तब बंदीजन जनक बोलाए।
बिरिदावली कहत चलि आए।
कह नृपु जाइ कहहु पन मोरा ।
चले भाट हियँ हरषु न थोरा॥


तब राजा जनकने बंदीजनों (भाटों) को बुलाया। वे विरुदावली (वंशकी कीर्ति) गाते हुए चले आये। राजाने कहा-जाकर मेरा प्रण सबसे कहो। भाट चले, उनके हृदयमें कम आनन्द न था।॥ ४॥

दो०- बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल।
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल॥२४९॥


भाटोंने श्रेष्ठ वचन कहा-हे पृथ्वीकी पालना करनेवाले सब राजागण! सुनिये। हम अपनी भुजा उठाकर जनकजीका विशाल प्रण कहते हैं ॥ २४९ ।।


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