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अनुराग  : पुं० [सं० अनु√रञ्ज्+घञ्] [भू० कृ० अनुरक्त] १. किसी से प्रसन्न होकर शुद्ध भाव से उसकी ओर प्रवृत्त होना या मन लगाना। २. श्रंगारिक क्षेत्र में वह आरंभिक और हलका प्रेम या स्नेह जो मिलन अथवा विशेष सम्पर्क स्थापित होने से पहले होता है। (एफेक्शन) ३. दे० ‘अनुरक्ति’।
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अनुरागना  : स० [सं० अनुराग] १. अनुराग या प्रीति करना। प्रेम करना। २. आसक्त होना। पुं० अनुराग या प्रेम से युक्त होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अनुरागी (गिन्)  : वि० [सं० अनुराग+इनि] [स्त्री० अनुरागिनी] १. अनुराग रखनेवाला। प्रेमी। २. भक्त।
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