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शब्द का अर्थ

उपना  : अ० [सं० उत्पन्न] १. उत्पन्न होना। पैदा होना। २. जन्म धारण करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपनागरिका  : स्त्री० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, गद्य या पद्य लिखने की एक शैली जिसमें ट ठ ड ढ वर्णों को छोड़कर केवल मधुर वर्ण आते हैं। इसमें छोटे-छोटे और बहुत थोड़े समास होते हैं। काव्य में यह वृत्यनुप्रास का एक भेद माना गया है। यथा-रघुनंद आनँद कंद कौशलचन्द्र दशरथ नन्दनम्।—तुलसी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपनाना  : स० [हिं० उपनना] उपजाना। पैदा करना। उदाहरण—अल्ला एक नूर उपनाया, ताकी कैसी निन्दा।—कबीर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपनायन  : पुं०=उपनयन। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपनाह  : पुं० [सं० उप√नह्+घञ्] १. वीणा या सितार की वह खूँटी जिससे तार बाँधे जाते है। २. फोडे़ या घाव पर लगने वाला लेप। मलहम। ३. प्रलेप। ४. आँख का बिलनी नामक रोग। ५. गाँठ।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपना  : अ० [सं० उत्पन्न] १. उत्पन्न होना। पैदा होना। २. जन्म धारण करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उपनागरिका  : स्त्री० [सं० अत्या० स०] साहित्य में, गद्य या पद्य लिखने की एक शैली जिसमें ट ठ ड ढ वर्णों को छोड़कर केवल मधुर वर्ण आते हैं। इसमें छोटे-छोटे और बहुत थोड़े समास होते हैं। काव्य में यह वृत्यनुप्रास का एक भेद माना गया है। यथा-रघुनंद आनँद कंद कौशलचन्द्र दशरथ नन्दनम्।—तुलसी।
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उपनाना  : स० [हिं० उपनना] उपजाना। पैदा करना। उदाहरण—अल्ला एक नूर उपनाया, ताकी कैसी निन्दा।—कबीर।
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उपनायन  : पुं०=उपनयन। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उपनाह  : पुं० [सं० उप√नह्+घञ्] १. वीणा या सितार की वह खूँटी जिससे तार बाँधे जाते है। २. फोडे़ या घाव पर लगने वाला लेप। मलहम। ३. प्रलेप। ४. आँख का बिलनी नामक रोग। ५. गाँठ।
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