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उलझन  : स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में सामने आनेवाली ऐसी पेचीली या झंझट की स्थिति जिसमें किसी प्रकार का निराकरण या निश्चय करना बहुत कठिन हो। झगड़े-झंझट की स्थिति। ३. डोरी आदि में एक साथ जगह-जगह पड़नेवाली बहुत सी पेचीली गाँठें।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उलझना  : अ० [सं० अवसन्धन, पा० ओरुज्झन, पुं० हिं० अरुझना] १. किसी चीज का ऐसी परिस्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर अटकाने, फँसाने या रोक रखनेवाले तत्त्व या बाते हों। जैसे—काँटों में कपड़ा उलझना। उदाहरण—पाँख भरा तन उरझा कित मारे बिनु बाँच।—जायसी। मुहावरा—उलझ-पुलझ कर रह जाना=ऐंसी पेचीली स्थिति में पड़े रहना कि कोई अच्छा परिणाम या फल निकल सके। उदाहरण—उलझि पुलझि के मरि गए चारिउ वेदन माँहि।—कबीर। २. किसी चीज के अंगों का आपस में या दूसरी चीज के अंगों के साथ इस प्रकार फँसकर लिपटना कि सब गुथ या मिलकर बहुत कुछ एक हो जायँ और सहज में एक-दूसरे से अलग न हो सके। टेढ़े-मेढ़े होकर या बल खाते हुए जगह-जगह अटकना या फँसना। जैसे—पतंग की डोर उलझना। उदाहरण—मोहन नवल सिगार बिटप-सों उरझी आनँद बेल।-सूर। ३. घुमाव-फिराव की ऐसी पेचीली या विकट स्थिति में पड़ना कि जल्दी छुटकारा, निकास या बचाव न हो सके। उदाहरण—ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौं चहैं, त्यौं-त्यौं उरझत जात०-बिहारी। ४. झंझट या झगड़े-बखेड़े के काम में इस प्रकार फँसना कि जल्दी छुटकारा न हो सके। ५. ऐसी स्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर रोक रखनेवाली आकर्षक या मोहक बातें हों। उदाहरण—अँखियाँ श्यामसुदर सों उरझी,को सुरझावे हो गोइयाँ।—गीत। ६. किसी से जानबूझ कर इस प्रकार की बातें या व्यवहार करना अथवा उसके कामों में बाधक होना कि झगड़ा या बखेड़ा खड़ा हो और पर-पक्ष उससे निकलने या बचने न पावे। जैसे—हर किसी से उलझने की तुम्हारी यह आदत अच्छी नहीं है।
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उलझन  : स्त्री० [हिं० उलझना] १. उलझने की क्रिया या भाव। २. किसी कार्य में सामने आनेवाली ऐसी पेचीली या झंझट की स्थिति जिसमें किसी प्रकार का निराकरण या निश्चय करना बहुत कठिन हो। झगड़े-झंझट की स्थिति। ३. डोरी आदि में एक साथ जगह-जगह पड़नेवाली बहुत सी पेचीली गाँठें।
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उलझना  : अ० [सं० अवसन्धन, पा० ओरुज्झन, पुं० हिं० अरुझना] १. किसी चीज का ऐसी परिस्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर अटकाने, फँसाने या रोक रखनेवाले तत्त्व या बाते हों। जैसे—काँटों में कपड़ा उलझना। उदाहरण—पाँख भरा तन उरझा कित मारे बिनु बाँच।—जायसी। मुहावरा—उलझ-पुलझ कर रह जाना=ऐंसी पेचीली स्थिति में पड़े रहना कि कोई अच्छा परिणाम या फल निकल सके। उदाहरण—उलझि पुलझि के मरि गए चारिउ वेदन माँहि।—कबीर। २. किसी चीज के अंगों का आपस में या दूसरी चीज के अंगों के साथ इस प्रकार फँसकर लिपटना कि सब गुथ या मिलकर बहुत कुछ एक हो जायँ और सहज में एक-दूसरे से अलग न हो सके। टेढ़े-मेढ़े होकर या बल खाते हुए जगह-जगह अटकना या फँसना। जैसे—पतंग की डोर उलझना। उदाहरण—मोहन नवल सिगार बिटप-सों उरझी आनँद बेल।-सूर। ३. घुमाव-फिराव की ऐसी पेचीली या विकट स्थिति में पड़ना कि जल्दी छुटकारा, निकास या बचाव न हो सके। उदाहरण—ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौं चहैं, त्यौं-त्यौं उरझत जात०-बिहारी। ४. झंझट या झगड़े-बखेड़े के काम में इस प्रकार फँसना कि जल्दी छुटकारा न हो सके। ५. ऐसी स्थिति में पड़ना जहाँ चारों ओर रोक रखनेवाली आकर्षक या मोहक बातें हों। उदाहरण—अँखियाँ श्यामसुदर सों उरझी,को सुरझावे हो गोइयाँ।—गीत। ६. किसी से जानबूझ कर इस प्रकार की बातें या व्यवहार करना अथवा उसके कामों में बाधक होना कि झगड़ा या बखेड़ा खड़ा हो और पर-पक्ष उससे निकलने या बचने न पावे। जैसे—हर किसी से उलझने की तुम्हारी यह आदत अच्छी नहीं है।
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