शब्द का अर्थ
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काकु :
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पुं० [सं०√कक्+अण्] १. वह विचित्र या परिवर्तित ध्वनि जो आश्चर्य, कष्ट, क्रोध, भय आदि के कारण मुँह से निकलती है। ऐसी बात जो अप्रत्यक्ष रूप से किसी का मन दुखाती हो। २. वक्रोक्ति अलंकार का एक भेद, जिसमें किसी की काकु उक्ति में कही हुई बात का दूसरे द्वारा अन्य अर्थ कल्पित किया जाता है। जैसे—नव रसाल वन विहरण सीला। सोह कि कोकिल विपिन करीला।—तुलसीदास। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
काकुत्स्थ :
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पुं० [सं० ककुत्स्थ+अण्] ककुत्स्थ राजा के वंश में उत्पन्न व्यक्ति। २. श्रीराम -चन्द्रजी। |
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काकुद :
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पुं० [सं० काकु√दा (देना)+क] तालु। |
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काकुन :
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स्त्री०=कंगनी (अन्न)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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काकुल :
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पुं० [फा०] कनपटी पर लटकते हुए ऐसे लंबे बाल जो सुंदर जान पड़ें। जुल्फ। मुहावरा—काकुल छोड़ना=बालों की जुलफें इधर-उधर निकालना या लटकाना। काकुल झाड़ना=बालों में कंघी करना। |
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काकु-वक्रोक्ति :
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स्त्री० [कर्म० स०] दे० काकु। |
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