शब्द का अर्थ
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गंड :
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पुं० [सं०√गंड़(मुख का एक भाग होना)+अच्] १.गाल। कपोल। २.कनपटी। ३.गले में पहनने का काला धागा। गंडा। ४. फोड़ा। ५. चिन्ह्र। निशान। ६. दाग। ७. गाँठ। ८. गैड़ा। ९. मंडलाकार चिन्ह्र या सकीर। गराड़ी। १॰. नाटक का एक अंग जिसमें सहसा प्रश्नोत्तर होने लगते हैं। ११.ज्येष्ठा, अश्लेषा और रेवती के अंत के पाँच दंड और मूल, मघा, तथा अश्विनी के आरंभ के तीन दंड। (ज्योतिष) वि.बहुत बड़ा या भारी। जैसे-गंड,मूर्ख, गंड शिला आदि। |
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समानार्थी शब्द-
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गंडक :
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पुं० [सं० गण्ड+कन्] १. गले में पहनने का गंडा या जंतर। २. गाँठ। ३. गैंड़ा। ४. चिन्ह्र। निसान। ५. वह प्रदेश जिसमें से होकर गंडकी नदी बहती है। ६. उक्त प्रदेश का निवासी। ७. गंडमाला नामक रोग। स्त्री० =गंडकी (नदी)। |
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गंडका :
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स्त्री० [सं० गण्डक+टाप्] बीस वर्णों के एक वर्णवृत्त। |
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गंडकी :
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स्त्री० [सं० गण्डक+ङीष्] १. मादा गैंड़ा। २. उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध नदी जो पटने के पास गंगा में मिलती है। पुं. सत्रह मात्राओं का एक ताल। (संगीत) |
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गंडकी-शिला :
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स्त्री० [ष० त० ] भगवान् विष्णु की गोल पत्थर की बनी हुई एक प्रकार की मूर्ति। शालग्राम की बटिया। |
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गंड-गोपालिका :
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स्त्री० [मध्य० स०] ग्वालिन नाम की कीड़ा। |
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गँड़तरा :
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पुं० [हिं० गाँड़+तर-नीचे] छोटे बच्चों के नीचे का वह कपड़ा जो इसलिए बिछाया जाता है कि उनके मल-मूत्र बिचावन पर न लगे। गँतरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गँडदार :
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पुं० [सं० गंड या हिं० गंड़ासा+फा० दार] १. महावत। हाथीवान। २. दे० ‘गड़दार’। |
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गंड-दूर्वा :
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स्त्री० [कर्म० स०] १. गाँडर नामक घास जिसकी ज़ड़ खस कहलाती है। २. दूब नाम की घास। |
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गंड-देश :
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पुं० [ष० त०] =गंड-मंडल। |
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गंडनी :
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स्त्री० [सं० गंडाली] सरकंडे की जाति की एक वनस्पति। सरपोका। सर्पाक्षी। सरहटी। |
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गंड-मंडल :
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पुं० [ष० त०] गंड-स्थल। |
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गंड-मालक :
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पुं० [ब० स० ] कंठमाला नामक रोग। |
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गंड-माला :
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स्त्री० [ब० स०] कंठमाला नामक रोग। |
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गंड-मालिका :
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स्त्री० [ब० स०] लज्जालु लता। लाजवंती। |
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गंड-माली(लिन्) :
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वि० [सं० गंडमाला+इनि] जिसके गले में कंठमाला नामक रोग की गिल्टियाँ निकली हुई हो। |
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गँडरा :
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पुं० [सं० गंडाली] [स्त्री० गँडरी] १. मूँज की एक जाति की एक घास। २. एक प्रकार का धान। |
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गंडल :
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पुं० =गंड-स्थल। (कनपटी)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गंडली :
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स्त्री० [सं० गण्ड√ली(लीन होना)+क्विप्-ङीष्] छोटी पहाड़ी। पुं० शिव। |
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गंड-सूचि :
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स्त्री० [ष० त० ] नृत्य में एक भाव बतलाने की एक मुद्रा। |
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गंड-स्थल :
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पुं० [ष० त० ] [स्त्री० गंडस्थली] कनपटी। |
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गंडांत :
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पुं० [सं० गंड-अंत, ष० त० ] ज्येष्ठा, अश्लेषा और रेवती के अंत में पाँच या तीन दंड तथा मूल, मघा और अश्विनी के अंत के तीन दंड। (ज्योतिष) |
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गंडा :
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पुं० [सं० गंडक=गाँठ] १. तागे, रस्सी आदि में लगाई जाने वाली गाँठ। २. दैविक उपद्रवों, बाधाओं आदि से रक्षित रहने के लिए कलाई या गरदन में लपेटकर बाँधा जानेवाला मंत्र-पूत डोरा या सूत। ३. पशुओं के गले में बाँधा जानेवाला पट्टा। पुं० [सं० गंड-चिह्र] आड़ी, गोल या गोलाकार धारी या रेखा। जैसे-कनखजूरे की पीठ पर का गंडा, तोते के गले का गंडा। पुं. [?] चीजें गिनने में चार का समूह। जैसे–दो गंडे पैसे या चार गंडे आम। |
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गंडारि :
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स्त्री० [गंड-अरि, ष० त०] कचनार। |
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गंडाली :
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स्त्री० [सं० गंड√अल् (भूषित करना)+अण्-ङीप्] गाँडर घास। |
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गँडासा :
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पुं० [हिं० गंड+आसा (प्रत्यय)] हँसिये की तरह का घास काटने का एक औजार। |
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गंडिनी :
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स्त्री० [सं० गंड+इनि-ङीष्] दुर्गा। |
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गँड़िया :
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पुं० =गाँड़ू। |
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गंडीर :
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पुं० [सं०√गंड्+ईरन्] १. पोई नाम की लता। २. थूहर। सेंहुड़। |
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गंडीरी :
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स्त्री० [सं० गंडीर+ङीष्] =गंडीर। |
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गंडु :
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पुं० [सं०√गंड़+उन्] १. गाँठ। २. तकिया। |
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गंडुक :
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पुं० =गंडूष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गंडु-पद :
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पुं० [ब० स०] फीलपाँव नामक रोग। |
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गंडू :
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पुं० =गाँड़ू। |
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गंडूक :
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पुं० =गंडूष। |
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गंडू-पद :
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पुं० [गंडू+ऊड़,गंड़ू-पद,ब.स०] केंचुआ। |
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गंडूल :
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वि० [सं०गंड√ला(लेना)+क]१. जिसमें गाँठें हो। गाँठदार। २. झुका हुआ। टेढ़ा। |
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गंडूष :
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पुं० [सं०√गंडू+ऊषन्] [स्त्री० गंडूषा] १. हथेली का गड्ढा। चुल्लू। २. पानी से किया जाने वाला कुल्ला। ३. हाथी के सूँड़ की नोक। |
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गँडेरी :
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स्त्री० [सं० गण्ड] १. ईख या गन्ने के छोटे टुकड़े जो कूल्हू में पिरने के लिए काटे जाते है। २. चूसने के लिए ईख या गन्ने को छीलकर काटे हुए छोटे टुकड़े। ३. किसी चीज के छोटे लंबोतरे टुकड़े। |
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गंडोपधान :
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पुं० [गंड-उपधान ष० त०] गल-तकिया। |
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गँडोरा :
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पुं० [सं० गंडोल=ईख] हरी कच्ची खजूर। |
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गंडोल :
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पुं० [सं०√गंड्+ओलख्] १. गुड़। २. कच्ची या लाल शक्कर। ३. ईख या गन्ना। ४. कौर। ग्रास। |
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