शब्द का अर्थ
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गेंद :
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पुं० [सं० पा० गेन्डुक, प्रा० गेन्दुआ, उ० गेण्डु, सिं० खेनुरी, प्रा० गेन्दु, चेण्ड,गु० ने० मरा० गेंद] १. बच्चों के खेलने के लिए कपड़े,चमड़े,रबड़,लकड़ी आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध छोटा गोला। २. वह कलबूत जिसपर रखकर टोपियां,पगड़ियाँ आदि बनाई जाती थी। कालिब। ३. तारों आदि का बना हुआ वह गोलकार घेरा जिसके अन्दर रखकर दीया जलाते थे। |
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गेंदई :
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वि० [हिं० गेंदा] १. गेंदे से संबंध रखनेवाला। गेंदे का २. गेंदे के फूल के रंग का। पीला। पुं० उक्त प्रकार का पीला रंग। |
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गेंदघर :
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पुं० [हिं० गेंद+घर] वह स्थान जहाँ लोग गेंद से तरह-तरह के खेल खेलते हैं। |
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गेंदतड़ी :
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स्त्री० [हिं० गेंद+तड़ीचोट या मार] लड़कों का एक खेल जिसमें वे एक दूसरे को गेंद मारते हैं। |
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गेंदबलल्ला :
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पुं० [हिं० गेंद+बल्ला] १. गेंद और उस पर आघात करने या लकड़ी का बल्ला। २. गेंद, बल्ले तथा यष्टियों से खेला जानेवाला एक प्रसिद्ध खेल जिसमें ग्यारह-ग्यारह खेलाड़ियों की दो टोलियाँ होती हैं और एक दूसरे से अधिक दौंड़े बनाकर विजय प्राप्त करती है। (क्रिकेट)। |
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गेंदवा :
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पुं० १. =गेंड़ुआ (तकिया)। २. =गेंद। |
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गेंदा :
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पुं० [हिं० गेंद] १. एक प्रकार का छोटा पौधा जिसमें पीले, लाल, नारंगी आदि रंगों के फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे के फूल जिनकी मालाएं बनती हैं। |
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गेंदिया :
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स्त्री० [हिं० गेंद+ईया(प्रत्यय)] फूलों को मालाओं के नीचे लटकनेवाला फूल -पत्तों आदि का गुच्छा। |
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गेंदुक :
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पुं० [सं०√गम् (जाना)+ड, ग-इंदु, कर्म० स० गेंदु+कन्] कन्दुक। गेंद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गेंदुवा :
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पुं० =गेंड़ुआ। |
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गेंदौरा :
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पुं० =गिँदौड़ा। |
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