शब्द का अर्थ
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गोत :
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पुं० [सं० गोत्र] १. गोत्र। २. कुल, परिवार, वश। जैसे–नात का न गोत का, बाँटा माँगे पोत का।–कहा, ३. समूह। उदाहरण–मनु कागदि कपोत गीत के उड़ाये।–रत्नाकर। स्त्री० [हिं० गोतना](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. गोते या डुबोये जाने की क्रिया या भाव। २. तंद्रा। ३. चिंता। फिक्र। |
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समानार्थी शब्द-
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गोतम :
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पुं० [सं० ब० स० पृषो० सिद्धि] १. एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि जो अहल्या के पति थे। २. एक मंत्रकार ऋषि। ३. दे,.‘गौतम’। |
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गोतमी :
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स्त्री० [सं० गोतम+ङीष्] गोतम ऋषि की पत्नी,अहल्या। |
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गोता :
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पुं० [अ० गोतः] १. गहरे जलाशय में उतर कर अपने शरीर को जल में इस प्रकार डुबाना कि बाहर कोई अंग न रह जाए। डुबकी। क्रि.प्र. =मारना। लगाना। मुहावरा–(किसी को) गोता देना किसी को जल में उक्त प्रकार से डुबाना और निकालना। २. नदी, समुद्र आदि के तल में पड़ी हुई चीजें निकालने के लिए उक्त प्रकार से उसके तल तक जाने की क्रिया या भाव। ३. किसी अथाह या बहुत गहरी चीज या बात में से किसी तत्त्व का पता लगाने का प्रयत्न। जैसे–साहित्य में गोता लगाना। ४. इस प्रकार कहीं से अनुपस्थित या गायब हो जाना कि किसी को कुछ पता न चले। जैसे–यह धोबी तो महीने-महीने भर का गोता लगाया करता है। ५. सहसा होनेवाली कोई बहुत बड़ी भूल। (क्व०) मुहावरा-गोता खाना (क) कोई बहुत बड़ी भूल या हानि कर बैठना। (ख) धोखे में आना। छल में फँसना। पुं० [सं०गोत्र] समान गोत्र या वंश । जैसे–नाते-गोते के लोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गोताखोर :
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पुं० [अं०] १. वह जो गहरे पानी में गोता लगाकर नीचे की चीजें निकाल लाने का व्यवसाय करता हो। (डाइवर) २. जल के अंदर गोतालगाकर चलनेवाली डुबकनी नाव। (सब मेरीन) |
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गोतामार :
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पुं० ==गोताखोर। |
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गोतिया :
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वि० [सं० गोत्र] १. गोत्र संबंधी। २. अपने गोत्र का। गोती। |
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गोती :
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वि० [सं० गोत्रीय] [स्त्री० गोतिन, गोतिनी] (व्यक्ति) जो अपने ही गोत्र का हो। |
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गोतीत :
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वि० [गो-अतीत,द्वि० त०] जो इंद्रियों द्वारा न जाना जा सके। पुं० ईश्वर। |
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गोतीर्थक :
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पुं० [सं० गोतीर्थ+कन्] सुश्रुत के अनुसार फोड़े आदि चीरने का ढंग या प्रकार। |
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गोत्र :
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पुं० [सं० गो√त्रै (पालन करना)+क] १. संतति। संतान। २. नाम। संज्ञा। ३. क्षेत्र। ४.वर्ग। समूह। ५. राजा का छत्र। ६. बढ़ती। वृद्धि। ७. धन-संपत्ति। दौलत। ८. पर्वत। पहाड़। ९. बंधु। भाई। १॰. कुल। वंश। ११. भारतीय आर्यों में किसी कुल या वंश का एक प्रकार का अल्ल या संज्ञा जो किसी पूर्वज अथवा कुल गुरू ऋषि के नाम पर होती है। वंश-नाम। जैसे–काश्यप, शडिल्य भारद्वाज आदि गोत्र। |
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गोत्र-कार :
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पुं० [सं० गोत्र√Öकृ (करना)+अण्, उप० स०] वह ऋषि जो किसी गोत्र के प्रवर्तक माने जाते हों। |
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गोत्रज :
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वि० [सं० गोत्र√Öजन् (उत्पन्न होना)+ड,उप.स०] १. किसी के गोत्र में उत्पन्न। २.वे जो एक ही गोत्र में उत्पन्न हुए हो। गोती। |
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गोत्र-प्रवर्तक :
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वि० [ष० त०] (ऋषि) जो किसी गोत्र के मूल पुरूष माने जाते हों। जैसे–भारद्वाज, वसिष्ठ आदि। |
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गोत्र-सुता :
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स्त्री० [ष० त०] पार्वती। |
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गोत्रा :
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स्त्री० [सं० गोत्र+टाप्] १. गौओं का झुंड या समूह। २. पृथ्वी। |
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गोत्री(त्रिन्) :
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वि० [सं० गोत्र+इनि] एक ही अर्थात् समान गोत्र में उत्पन्न होनेवाले व्यक्ति। गोती। |
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गोत्रोच्चार :
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पुं० [गोत्र-उच्चार, ष० त० ] १. विवाह के समय वर और वधू के वंश, गोत्र और पूर्वजों आदि को दिया जानेवाला परिचय। २. किसी के पूर्वजों तक को दी जानेवाली गालियाँ (परिहास और व्यंग्य)। |
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