शब्द का अर्थ
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जग :
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पुं० [सं० जगत्] १. जगत्। संसार। २. चेतन सृष्टि। पुं०=यज्ञ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगकर :
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पुं० [सं०] ब्रह्मा। |
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जगकारन :
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पुं० [हिं० जग+कारन] परमेश्वर जो जगत्कर्त्ता माना जाता है। |
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जगच्चक्षु :
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पुं० [हिं० जगत्+चक्षुस्, ष० त०] सूर्य। |
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जगजग (ा) :
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वि० [हिं० जगजगाना=जगमगाना] जगमगाता हुआ। |
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जगजगा :
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पुं० [जगमग से] किसी चमकीली धातु का पतला पत्तर जिसके कटे हुए छोटे-छोटे टुकड़े टिकुला, ताजिए आदि में लगाये जाते हैं। |
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जगजगाना :
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अ०=जगमगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=जगमगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जग-जीवन :
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पुं० [सं० जगज्जीवन] ईश्वर। परमात्मा। |
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जगजोनि :
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पुं० [सं० जगद्योनि] ब्रह्मा। |
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जगज्जनी :
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स्त्री० [सं० जगत्-जननी, ष० त०] १. जगदंबा। २. परमेश्वरी। ३. सीता। |
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जगज्जयी(यिन्) :
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वि० [सं० जगत्-जयी, ष० त०] जग को जिसने जीत लिया हो। विश्वविजयी। |
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जगझंप :
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पुं० [सं० ?] युद्ध-क्षेत्र में बजाया जानेवाला एक प्रकार का ढोल। |
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जगड्वाल :
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पुं० [सं०] व्यर्थ का आडंबर या बखेड़ा। |
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जगण :
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पुं० [ष० त०] छंद शास्त्र में तीन ऐसे अक्षरों के समूह की संज्ञा जिसका पला अक्षर लघु, दूसरा गुरु और तीसरा लघु हो। इसका सांकेतिक चिन्ह ।ऽ। है। |
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जगत् :
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वि० [सं०√गम् (जाना)√ क्विप्, द्वित्व, तुगागम] १. जागता हुआ। चेतन। २. जो चलता-फिरता हो। पुं० १. पृथ्वी का वह अंश या भाग जिसमें जीव या प्राणी चलते-फिरते या रहते हों। चेतन सृष्टि। २. किसी विशिष्ट प्रकार के कार्य-क्षेत्र अथवा उसमें रहनेवाले जीवों, पिंड़ों आदि का वर्ग या समूह। जैसे–नारी जगत् और जगत् हिन्दी जगत आदि। ३. इस पृथ्वी के निवासी। जैसे–जगत् तो मेरी हँसी उड़ाने पर तुला हुआ है। ४. संसार। दुनिया। जैसे–यह जगत् और उसके सब जंगल जंजाल झूठे हैं। |
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जगत् :
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स्त्री० [सं० जगति=घर की कुरसी] कुएँ के ऊपर चारों ओर बना हुआ वह चबूतरा जिस पर खड़े होकर उसमें से पानी खींचा जाता है। पुं०=जगत्। (दे०)। |
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जगत-जननि :
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स्त्री=जगज्जनी। |
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जगतसेठ :
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पुं० [सं० जगत्-श्रेष्ठी] वह महाजन या सेठ जो किसी नगर या बस्ती में और उसके चारों ओर दूर-दूर तक सब से बड़ा माना जाता हो। |
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जगतारण :
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वि० [सं० जगत्-तारण] १. संसार को तारनेवाला। २. संसार की रक्षा करनेवाला। |
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जगति :
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स्त्री० [सं० जगत] द्वारिका। |
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जगती :
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स्त्री० [सं०√गम्+अति-ङीष्] १. जगत्। २. पृथ्वी। ३. जीवन। ४. एक वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में बारह अक्षर होते हैं। ५. बारह अक्षरों के छंदों की संज्ञा। |
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जगती-चर :
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वि० [जगती√ चर् (चलना)+ट] जगत् में विचरण करनेवाला। पुं० मनुष्य। |
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जगती-जानि :
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पुं० [जगती-जाया, ब० स० नि० आदेश] राजा। |
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जगती-तल :
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पुं० [ष० त०] १. धरती। पृथ्वी। २. संसार। |
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जगती-धर :
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पुं० [ष० त०] पर्वत। |
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जगती-पति :
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पुं० [ष० त०] राजा। |
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जगती-भर्त्ता(र्तृ) :
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पुं० [ष० त०] राजा। |
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जगती-रुह :
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पुं० [सं० जगती√ रुह् (उगना)+क] वृक्ष। |
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जगत्प्राण :
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पुं० [जगत्-प्राण ष० त०] १. संसार को जीवित रखनेवाले तत्त्व। २. ईश्वर। |
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जगत्साक्षी(क्षिन्) :
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पुं० [जगत्-साक्षिन्, ष० त०] सूर्य। |
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जगत्सेतु :
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पुं० [जगत्-सेतु,ष० त०] परमेश्वर। |
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जगदंतक :
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पुं० [जगत्-अंतक, ष० त०] १. वह जो जगत् का नाश करता हो। मृत्यु। २. यमराज। ३. शिव। |
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जगदंबा :
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स्त्री० [जगत्-अंबा, ष० त०] दुर्गा। |
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जगदंबिका :
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स्त्री० [जगत्-अंबिका, ष० त०] दुर्गा। |
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जगदात्मा(त्मन्) :
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पुं० [जगत्-आत्मन्, ष० त०] १. ईश्वर। २. वायु। |
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जगदादि :
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पुं० [जगत्-आदि, ष० त०] १. ब्रह्मा। २. परमेश्वर। |
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जगदाधार :
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पुं० [जगत्-आधार ष० त०] १. परमेश्वर। २. वायु। वि० जगत् का आधार। |
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जगदानन्द :
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पुं० [जगत्-आनंद, ष० त०] परमेश्वर। |
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जगदयु(स्) :
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पुं० [जगत्-आयुस्, ष० त०] वायु। |
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जगदीश :
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पुं० [जगत्-ईश, ष० त०] १. ईश्वर। परमेश्वर। २. विष्णु। जगन्नाथ। |
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जगदीश्वर :
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पुं० [जगत्-ईश्वर] ईश्वर। परमेश्वर। |
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जगदीश्वरी :
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स्त्री० [जगत्-ईश्वरी, ष० त०] भगवती। |
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जगदीस :
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पुं०=जगदीश। |
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जगद्गुरु :
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पुं० [जगत्-गुरु, ष० त०] १. परमेश्वर। २. शिव। ३. नारद। ४. वह महान व्यक्ति जिसे सब लोग गुरु के समान पूज्य मानते हों। जैसे–जगद्गुरु शंकराचार्य। ५. शंकराचार्य की गद्दी के अधिकारी महंत की उपाधि। |
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जगद्गौरी :
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स्त्री० [स० त०] १. दुर्गा। २. नागों की बहन मनसादेवी, जिसका विवाह जरत्कारु ऋषि से हुआ था। |
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जगद्दीप :
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पुं० [जगत्-दीप, ष० त०] १. ईश्वर। २. महादेव। |
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जगद्धाता(तृ) :
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पुं० [जगत्-धातृ ष० त०] [स्त्री० जगद्धात्री] १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. शिव। शंकर। |
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जगद्धात्री :
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स्त्री० [जगत्-धात्री, ष० त०] १. दुर्गा। २. सरस्वती। |
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जगद्बल :
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पुं० [जगत्-बल, ब०स० ] वायु। हवा। |
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जगद्योनि :
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पुं० [जगत्-योनि,ष० त०] १. शिव। २. विष्णु। ३. ब्रह्मा। ४. परमेश्वर। ५. पृथ्वी। |
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जगद्वंद्य :
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वि० [जगत्-वंद्य, ष० त०] १. जिसकी वंदना जगत् करता हो। २. जिसकी वंदना जगत् को करनी चाहिए। |
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जगद्वहा :
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स्त्री० [सं० जगत्√ वह (ढोना)+अ-टाप्] पृथ्वी। |
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जगद्विख्यात :
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वि० [जगत्-विख्यात, स० त०] जिसकी ख्याति जगत् में हो। |
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जगद्विनाश :
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पुं० [जगत्-विनाश, ब० स०] प्रलयकाल। |
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जगन :
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पुं० [सं० यज्ञाग्नि](यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) १. यज्ञ की अग्नि। २. यज्ञस्थल। उदाहरण–जो वै जाँ गृहि गृहि जगन जागवै।–प्रिथीराज। स्त्री० [हिं० जागना] जागने की क्रिया या भाव। पुं० =जगण। |
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जगनक :
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पुं० [देश०] महोबे के राजा परमाल के दरबार का एक प्रसिद्ध कवि। |
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जगना :
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अ० [सं० जागरण] १. जाग्रत होना। जागना। २. अग्नि, दीप-शिखा आदि का प्रज्वलित होना। जैसे–ज्योति जगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जगनी :
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स्त्री० [?] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे के बीज जिनका तेल निकाला जाता है। |
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जगनु :
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पुं० [सं० जगन्नु] १. अग्नि। २. कीड़ा। ३. जंतु। पुं०=जुगनूँ। |
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जगन्नाथ :
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पुं० [जगत्-नाथ, ष० त०] १. जगत के नाथ, ईश्वर। २. विष्णु। ३. उड़ीसा प्रदेश की पुरी नगरी के एक प्रसिद्ध देवता। |
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जगन्नाथ-क्षेत्र :
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पुं० [ष० त०] उड़ीसा प्रदेश की पुरी नामक नगरी जो एक तीर्थस्थल है। जगन्नाथपुरी। |
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जगन्नाथ-धाम(न्) :
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पुं० [ष० त०] जगन्नाथपुरी। |
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समानार्थी शब्द-
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जगन्नियंता(तृ) :
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पुं० [जगत्-नियतृ, ष० त०] वह जो जगत् का नियत्रण करता हो। ईश्वर। |
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जगन्निवास :
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पुं० [जगत्-निवास, ष० त०] ईश्वर। परमेश्वर। |
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समानार्थी शब्द-
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जगन्नु :
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पुं० [सं० जगत्√ नम् (नम होना)+डु] १. अग्नि। २. कीड़ा। ३. जंतु। |
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जगन्मंगल :
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पुं० [जगत्-मंगल, ब० स०] काली का एक कवच। |
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समानार्थी शब्द-
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जगन्मय :
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पुं० [सं० जगत्-+मय] विष्णु। |
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जगन्मयी :
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स्त्री० [सं० जगन्मय+ङीष्] १. लक्ष्मी। २. वह शक्ति जो जगत् का संचालन करती है। |
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समानार्थी शब्द-
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जगन्माता(तृ) :
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स्त्री० [जगत्-मातृ, ष० त०] दुर्गा। |
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समानार्थी शब्द-
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जगन्मोहिनी :
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स्त्री० [जगत्-मोहिनी, ष० त०] १. दुर्गा। २. महामाया। |
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समानार्थी शब्द-
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जगबंद :
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वि० [सं० जगत् वंद्य] जगत् जिसकी वंदना करे। जगद्वंद्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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जगमग, जगमगा :
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वि० [अनु०] १. जगमगाता हुआ। २. चमकदार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जगमगाना :
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अ० [अनु० जग-मग] [भाव० जगमगाहट] किसी चीज पर प्रकाश पड़ने से उसका चमकने लगना। जगमग करना। जैसे–बिजली की रोशनी में पंडाल जगमगा रहा था। स० प्रकाश आदि से प्रज्वलित करना या चमकाना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगमगाहट :
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स्त्री० [हिं० जगमग] जगमगाने की अवस्था या भाव। |
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समानार्थी शब्द-
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जगर :
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पुं० [सं०√ जागृ (जागना)+अच्, पृषो० सिद्धि] कवच। |
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समानार्थी शब्द-
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जगरन :
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पुं०=जागरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगरनाथ :
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पुं०=जगन्नाथ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगरमगर :
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वि०=जगमग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगरा :
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स्त्री० [सं०शर्करा] खजूर के रस से बनी हुई खांड या चीनी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगल :
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पुं० [सं०√जन् (उत्पत्ति)+ड√गल्+अच्, ज-गल, कर्म० स०] १. पीठी से बना हुआ मद्य जिसे पृष्टी भी कहते हैं। २. शराब की सीठी। कल्क। ३. मदन वृक्ष। मैनी। ४. कवच। ५. गोमय। गोबर। वि० धूर्त। चालाक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगवाना :
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स० [हिं० जगाना का प्रे० रूप] किसी को जगाने में प्रवृत्त करना। जगाने का काम दूसरे से कराना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगसूर :
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पुं० [सं० जगत-सूर] राजा। उदाहरण–बिनती कीन्ह घालि गिउ पागा, ए जगसूर सीउ मोहि लागा।–जायसी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगसेन :
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स्त्री० [हिं० जग] संसार–प्रसिद्ध। उदाहरण–स्यामि समुँद्र मोर निरमल रतनसेनि जगसेनि।–जायसी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगहँसाई :
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स्त्री० [हिं० जग+हँसना] लोगों का किसी पर उसके कोई मर्यादा विरुद्ध काम करने पर हंसना। जगत् में होनेवाली बदनामी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगह :
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स्त्री० [फा० जायगाह] १. कोई विशिष्ट भू-भाग या उसका विस्तार। स्थान। २. बीच में होनेवाला अवकाश या विस्तार। ३. वह पद या स्थान जहाँ पर कोई काम करता हो। जैसे–इस समय कार्यालय में कोई जगह खाली नहीं है। ४. अवसर। मौका। जैसे–हर बात अपनी जगह पर अच्छी मालूम होती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगहर :
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स्त्री० [हिं० जगना] जागते रहने की अवस्था या भाव। वि० जागता हुआ। जागनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगाजोति :
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स्त्री०=जगमगाहट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगात :
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पुं०=जकात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगाती :
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पुं० [अ० जकात-कर] १. कर उगाहने की क्रिया या भाव। २. कर उगाहनेवाला अधिकारी। उदाहरण–काहै कौ कर माँगतौं बिरह जगाती आइ।–रसनिधि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगाना :
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स० [हिं० जगाना] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई जाग उठे। जागने में प्रवृत्त करना। २. तंत्र, मंत्र आदि के प्रसंग में,किसी अलौकिक या दैवी शक्ति को जाग्रत करके अपने अनुकूल करने का प्रयत्न करना। जैसे–अलख जगाना, जादू जगाना। ४. धूमिल या मद्धिम चीज को उज्जवल और स्पष्ट करना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगार :
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स्त्री० [हिं० जागना] जागरण। जाग्रति। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगी :
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स्त्री० [देश०] मोर की जाति की एक प्रसिद्ध बड़ी चिड़ियां जिसका शिकार किया जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगीत :
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स्त्री०=जगत (कूएँ के ऊपर का चबूतरा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगीर :
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स्त्री=जागीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगीला :
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वि० [हिं० जागना] [स्त्री० जगीली] १. जागता हुआ। जागा हुआ। २. जागने के कारण थका तथा आलस्य से भरा हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगुरि :
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पुं० [सं०√ गृ (निकलना)+किन्, द्वित्व, उत्व] जंगम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगैया :
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वि० [हिं० जगाना] जगानेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगौहाँ :
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वि० [हिं० जागना] १. बराबर जागता रहनेवाला। २. दूसरों को जगाने का प्रयत्न करता रहनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जग्ग :
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पुं० [हिं० जग] जगत्। पुं० [सं० यज्ञ] यज्ञ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=जंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जग्य :
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पुं०=यज्ञ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जग्युपवीत :
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पुं० [सं०√गम् (जाना)+कि, द्वित्व] वायु। हवा वि० जिसमें गति हो। गतिमान। गतिशील। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
जगा :
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पुं० [हिं० जागना] किसी धार्मिक उपलक्ष्य में रात भर जागते रहने की क्रिया या भाव। स्त्री=जगह। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |