शब्द का अर्थ
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विस्तार :
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पुं० [सं० वि√स्तृ+घञ्] १. फैले हुए होने की अवस्था, धर्म या भाव २. वह क्षेत्र या सीमा जहाँ तक कोई चीज फैली हुई हो। फैलाव। (एक्सटेन्ट) ३. लंबाई और चौड़ाई। ४. विस्तृत। विवरण। ५. शिव। ६. विष्णु। ७. वृक्ष की शाखा। ८. गुच्छा। |
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समानार्थी शब्द-
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विस्तारण :
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पुं० [सं०] १. विस्तार करना। फैलाना। २. काम-काज या कर्म-क्षेत्र बढ़ाना। |
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विस्तारना :
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स० [सं० विस्तरण] विस्तार करना। फैलाना। |
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विस्तारवाद :
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पुं० [सं०] यह मत या सिद्धान्त कि राज्य को अपने अधिकार क्षेत्र और सीमाओं का निरन्तर विस्तार करते रहना चाहिए, भले ही इसमें दूसरे राज्यों या राष्ट्रों का अहित होता हो (एक्सपैन्शनिज्म) |
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विस्तारिणी :
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स्त्री० [सं० वि√स्तृ+णिनि+ङीष्] संगीत में एक श्रुति। |
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विस्तारित :
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भू० कृ० [सं० विस्तार+इतच्] १. जिसका विस्तार हुआ हो। २. व्यापक विवरण से युक्त। |
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विस्तारी (रिन्) :
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वि० [सं० विस्तारिन्] १. जिसका विस्तार अधिक हो। विस्तृत। शक्तिशाली। पुं० बड़ या बरगद का पेड़। |
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