शब्द का अर्थ
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अंड :
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पुं० [सं०√अम् (गति)+ड] १. पक्षियों आदि का अंडा। डिबा। २. अंडकोश फोता। ३. वीर्य। ४. विश्व ब्रह्मांड। उदाहरण—अंड अनेक अमल जसु छावा-तुलसी। ५. मृग की नाभि जिसमें कस्तूरी रहती है। ६. कामदेव। पुं० दे० ‘रेंड़’ (पौधा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंड-कटाह :
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पुं० [उपमित सं० ] सारा विश्व या ब्रह्मांड जो एक बड़े कड़ाहे के रूप में माना गया है। |
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अंड-कोश :
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पुं० [ष० त०] १. फोता। २. दूध पीकर पलने वाले जीवों के नरों या पुरुषों की इन्द्रिय के नीचे की थैली जिसमें दो गुठलियाँ होती हैं। ३. सारा विश्व-बह्मांड, अंड कटाह। ४. फल का ऊपरी छिल्का। |
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अंडज :
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वि० [सं० अंड√जन् (उत्पत्ति)+ड] अंडे में जन्म लेनेवाला। अंडे से उत्पन्न (जीव)। पुं० वे जीव जो अंडे से उत्पन्न होते हैं। |
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अंडजा :
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स्त्री० [सं० अंडज-टाप्] कस्तूरी। |
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अँडना :
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अ०=अड़ना। |
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अंडबंड :
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[अनु०] १. असंबद्ध प्रलाप। अनाप-शनाप। २. गाली गलौज, वि० १. व्यर्थ का। बे सिर पैर का। २. भद्दा और अनुचित। ३. इधर उधर का और अनावश्यक या अनुपयुक्त। |
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अँडरना :
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अ० [सं० अवतरण] धान के पौधे में बाल निकलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंड-वृद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] एक रोग जिसमें अंडकोश की थैली एक प्रकार के सौम्य या विकृत रूप से भर जाती है। (हाइड्रोसील)। |
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अंडस :
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स्त्री० [सं० अंतर=बीज में, दाब में] ऐसी कठिन परिस्थिति जिसमें से सहज में निकलना न हो सके। |
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अँडसना :
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अं० [सं० अंतरण=बीच में पड़कर दबना] बीच में इस प्रकार अटकना या फँसना कि चारों ओर से दबाव पड़ने के कारण सहज में न निकल सकें। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंडसू :
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वि० [सं०√अंड सू (प्रसव) +क्विप्] अंडे से उत्पन्न होने वाला अंडज। |
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अंडा :
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पुं० [सं० अंड] १. कुछ विशिष्ट मादा जीवों के गर्भाशय निकलनेवाला वह गोल या लम्बोतरा पिंड जिसमें से उनके बच्चे जन्म लेते हैं। जैसे—चिड़िया, मछली, मुर्गी या साँप का अंडा। मुहावरा—अंडा खटकना—अंडा फूटना। अंडा ढीला होना=काम करते करते या चलते चलते थकावट आना। अंडा सरकाना=हाथ पैर हिलाना। अंडा सेना=(क) पक्षियों का अपने अंडों पर बैठना। (ख) इस प्रकार बैठकर उसमें गरमी पहुँचाना ताकि वे जल्दी फूटें। (ग) घर में बैठे रहना। घर से बाहर न लिकलना। २. देह, शरीर (क्व०)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंडाकर्षण :
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पुं० [सं० अंड आकर्षण, ष० त०] नर चौपाये को बधिया करना। |
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अंडाकार :
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वि० [सं० अंड-आकार, ब० स०] अंडे के आकार का लम्बोतरा गोल (ओवल)। |
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अंडाकृति :
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स्त्री० [सं० अंड-आकृति, ष० त०] अंडे जैसी आकृति होने की अवस्था या भाव। वि० =अंडाकार। |
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अंडालु :
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वि० [सं० अण्ड+आलुच्]=अंडज। |
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अंडाशय :
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वि० [सं० अण्ड-आशय=घर, ष० त०] स्त्री० जाति के जीवों, पौधों आदि का वह अंग जिसमे अंड या डिंब पहुँचकर स्थित और विकसित होता है और उस वर्ग के नये जीवों, पौधों आदि का प्रजनन करता है। डिबांशय (ओवरी)। |
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अंडिका :
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स्त्री० [सं० अंड+कन्-टाप्, इत्व] चार जौ की एक तौल। |
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अंडिनी :
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स्त्री० [सं० अंड+इनि-डीप्] योनि में होने वाला एक रोग। |
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अँडिया :
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पुं० [सं० अंड या अण्ठि] १. बाजरे की पकी हुई बाल। २. अटेरन जिसपर सूत लपेटते हैं। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंडी :
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स्त्री० [सं० एरण्ड] १. रेंड का वृक्ष, फल या बीज। २. एक प्रकार का मोटा रेशम। ३. इस रेशम की बनी हुई चादर या कपड़ा। |
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अँडुवा :
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पुं० वि० =आँड। |
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अँडुआना :
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स्० [सं० अण्ड] नर चौपाये का बधिया करना। |
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अँडुआ बैल :
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पुं० [हि० अँडुआ+बैल] १. वह बैल जो बधिया न किया गया हो साँड। २. (लाक्षणिक) सुस्त आदमी। |
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अंडुवारी :
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स्त्री० [सं० अणु=छोटा टुकड़ा] एक प्रकार की छोटी मछली। |
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अंडैल :
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स्त्री० [हि० अंडा] मादा जन्तु, जिसके पेट में अंडे हों। |
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अंडबर :
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पुं० (हिं० अंबर-डंबर) सूर्यादय या सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों के कारण बादलों में दिखाई देनेवाली लाली। पुं० दे० आडंबर। |
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