शब्द का अर्थ
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अक्षर :
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वि० [सं०√क्षर्+अच्, न० त०] १. जिसका क्षय या नाश न हो। अविनाशी। नित्य। २. अच्युत। ३. स्थिर। पुं० १. ध्वनिगत लघुतम इकाई। वर्ण (एलफाबेट) २. वह चिन्ह या संकेत जो उक्त ध्वनि का सूचक होता है। (लेटर) मुहावरा—अक्षर घोंटना=अक्षर लिखने का अभ्यास करना। पद—विधना के अक्षर=भाग्य का लेख जो बदल या मिट नहीं सकता। ३. आत्मा। ४. परमात्मा या ब्रह्वा का वह आध्यात्मिक स्वरूप जिसके आश्रय से उनके प्रकृति और पुरुष का रूप धारण किया है। ५. आकाश। ६. धर्म। ७. तपस्या। ८. मोक्ष। ९. जल। पानी। १. चिचिड़ा। |
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समानार्थी शब्द-
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अक्षर-क्रम :
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पुं० [ष० त०] नामों, शब्दों आदि की सूची बनाते समय, उन्हें रखने या लगाने का वह क्रम जिसमें उनके आरंभिक अक्षर उसी क्रम से रहते हैं जिस क्रम से वे वर्णमाला में होते है। (एल्फाबेटिकल आर्डर) |
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अक्षर-गणित :
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पुं० [ष० त०] बीजगणित। |
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अक्षरच्छंद :
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पुं० [तृ० त०]=वर्णवृत्त। |
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अक्षर-जीवक :
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पुं० [सं० अक्षर√जीव्+ण्वुल्-अक्]=अक्षर-जीवी। |
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अक्षर-जीवी (बिन्) :
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पुं० [अक्षर√जीव्+णिनि,] पढ़ाई-लिखाई के काम से जीविका चलानेवाला व्यक्ति। |
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अक्षर-ज्ञान :
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पुं० [ष० त०] अक्षरों के पढ़ने-लिखने का ज्ञान। साक्षरता। |
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अक्षर-धाम (न्) :
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पुं० [ष० त०) ब्रह्यलोक। |
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अक्षर-न्यास :
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पुं० [ष० त०] १. लिखावट। २. लेख। ३. तांत्रिक पूजन में वह क्रिया जिसमें मंत्र के एक-एक अक्षर का उच्चारण करते हुए शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का स्पर्श किया जाता है। |
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अक्षर-पंक्ति :
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स्त्री० [ष० त०] चार चरणों का एक वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २॰ वर्ण होते हैं। |
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अक्षर-बंध :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का वर्णवृत्त। |
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अक्षर-माला :
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स्त्री० [ष० त०] वर्णमाला। |
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अक्षर-योजना :
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स्त्री० [ष० त०] किसी विशेष उद्देश्य से अथवा कोई विशेष रूप देने या विशेष अर्थ निकालने के लिए किसी विशेष क्रम से कुछ अक्षर बैठाना। जैसे—मुक्तर की अक्षर-योजना। |
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अक्षर-विन्यास :
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पुं० [ष० त०] १. लिखावट। २. शब्दों के वर्णों का विन्यास। अक्षरी। हिज्जे। |
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अक्षरशः (शस्) :
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क्रि० वि० [सं० अक्षर+शस्] कथन या लेख के) एक-एक अक्षर का ध्यान रखते हुए अथवा उनका अनुकरण या पालन करते हुए। ठीक ज्यों का त्यों। |
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अक्षरा :
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स्त्री० [सं० अक्षर+अच्, टाप्] १. शब्द। २. भाषा। |
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अक्षराक्षर :
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पुं० [सं० अक्षर-अक्षर, ब० स०] योग में एक प्रकार की समाधि। क्रि० वि० [अव्य० स०] अक्षरशः। |
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अक्षरारंभ :
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पुं० [सं० अक्षर-आरंभ, ष० त०] (किसी को) पहले पहल अक्षरों का ज्ञान या परिचय कराना। पढ़ाना आरंभ करना। |
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अक्षरार्थ :
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पुं० [सं० अक्षर-अर्थ, ष० त०] १. शब्द के प्रत्येक अक्षर का अर्थ। शब्दार्थ। (भावार्थ से भिन्न) |
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अक्षरावस्थान :
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पुं० दे० ‘अपश्रुति'। |
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अक्षरी :
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स्त्री० [सं०√अश्+ (व्याप्ति) सरन्, डीष्] १. शब्दों के अक्षरों का उनके ठीक क्रम के अनुसार उच्चारण करना अथवा लिखना। वर्तनी। हिज्जे। २. वर्षा ऋतु। |
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अक्षरौटी :
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स्त्री० १. दे० अखरावट। २. दे० ‘अखरौटी’। |
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अक्षर्य :
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वि० [सं० अक्षर+यत् अक्षर-संबंधी। पुं० एक वैदिक साम का नाम। |
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