शब्द का अर्थ
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अतरंग :
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पुं० [देश०] जहाज या नाव के गिराये हुये लंगर को उठाने की क्रिया। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अतर :
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पुं० [अ० इत्र] वह सुगंधित तरल पदार्थ जो फूलों का आसवन करने से तैयार होता है। पुष्प-सार। |
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अतरक :
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वि० =अतर्क्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अतरदान :
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पुं० (फा० इत्रदान) वह पात्र जिसमें अतर रखे जाते है। अतर रखने का पात्र। |
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अतरल :
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वि० [सं० न० त०] जो तरल या पतला न हो। |
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अतरवन :
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पुं० [सं० अन्तर] १. पत्थर की वह पटिया जिससे छज्जा पाटते हैं। २. एक प्रकार की घास जो छप्पर छाने के समय खपरैल के नीचे दी जाती है। |
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अतरसो :
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क्रि० वि० [सं० इतर+श्वः] बीते हुए परसों से एक दिन पहले का दिन। २. आने वाले परसों से एक दिन बाद का दिन। |
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अतरिख :
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पुं०=अंतरिक्ष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अतरौटा :
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पुं० [हिं० अतर+औटा (प्रत्यय) (स्त्री० अल्पा० अतरौटी] अतर रखने की छोटी डिबिया। पुं० दे० ‘अंतरौटा'। |
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अतर्क :
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वि० [सं० न० ब०] जिसमें या जिसके संबंध में तर्क न हो। तर्क-रहित। पुं० [सं० न० त०] तर्क का अभाव। |
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अतर्कित :
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वि० [सं० तर्क√इतच्,न० त०] १. तर्क, कल्पना या अनुमान के द्वारा पहले से जिसकी आशा या विचार न किया गया हो। अचानक आ पड़नेवाला। आकस्मिक। |
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अतर्क्य :
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वि० [सं०√तर्क् (ऊह करना) +ण्यत् न० त०] १. जिसके विषय में तर्क-वितर्क न हो सके। २. जो तर्क-वितर्क का विषय न हो। अचिंत्य। |
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