शब्द का अर्थ
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अथ :
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अव्य० [सं० √अर्थ(याचना) +ड, पृषो० रलोप] १. कथन, प्रश्न लेख आदि के आरंभ में आनेवाला एक मंगल सूचक अव्यय। २. आरंभ। शुरू। जैसे—अथ से इति तक, अर्थात् आदि से अंत तक। |
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समानार्थी शब्द-
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अथऊ :
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पुं० [सं० अस्त, प्रा० अत्थ] सूर्य के अस्त होने से पहले किया जाने वाला भोजन। (जैन)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अथक :
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वि० [सं० अ=नहीं+हिं० थकना] १. जो कभी न थके। अश्रांत। २. जिसमें थकावट या रुकावट न आई हो। जैसे—अथक परिश्रम। |
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अथच :
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अव्य० [सं० द्व० स०] १. और। २. और भी। |
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अथना :
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अ० [सं० अस्त+ना (प्रत्यय०)] १. सूर्य, चन्द्र आदि का अस्त होना। डूबना। २. कम होना। घटना। ३.नष्ट या समाप्त हो जाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अथमना :
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पुं० [सं० अस्तमन] उगमना के सामने की दिशा। पश्चिम दिशा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अथरा :
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पुं० [सं० स्थिता] [स्त्री० अल्पा० अथरी] मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार का चौड़ा तथा खुले मुँह का बरतन। नाँद। |
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अथर्व (वेद) :
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पुं० [सं० अथ√ऋ(गति) +वनिप्, शक० पररूप अथर्व-वेद, कर्म० स०] आर्यों या हिन्दुओं के चार वेदों में से अंतिम या चौथा वेद, जिसके मंत्रद्रष्टा या ऋषि लोग भृगु और अंगिरा गोत्र वाले थे। विशेष—कहा जाता है कि इसमें ऐसे मंत्रों का संग्रह है जिनसे रोगों और विपत्तियों का निवारण होता है। |
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अथर्वण :
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पुं० [सं० अथर्वन+अच्] १. शिव। २. अथर्ववेद। |
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अथर्वणि :
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पुं० [सं० अथर्वन+इस् (वा)] १. वह ब्राह्मण जो अथर्ववेद का ज्ञाता हो। २. यज्ञ कराने वाला पुरोहित। |
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अथर्वन् :
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पुं० [सं० अथ√ ऋ+वनिप् शक० पररूप] १. एक मुनि जो ब्रह्या के पुत्र और अग्नि को उत्पन्न करनेवाले माने जाते है। २. दे० ‘अथर्व’। |
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अथर्वनी :
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पुं० [सं० अथर्वणि]-यज्ञ करानेवाला आचार्य। पुरोहित। |
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अथल :
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पुं० [सं० स्थल] खेती करने के लिए लगान पर दी जानेवाली जमीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अथवना :
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अ० दे० ‘अथना (अस्त होना)। |
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अथवा :
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अव्य० [सं० अथ√वा (गति) +का] एक अनुकल्प वाचक अव्यय जो यह सूचित करता है कि कही हुई दो या दो से अधिक बातों, वस्तुओं आदि में से कोई एक ली जानी चाहिए। यदि यह नहीं तो वह सही। या। वा। जैसे—कोई कविता, कहानी अथवा लेख लिखकर लाओ। |
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अथाई :
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स्त्री० [सं० अथायी=जगह, पा० ठानीय, प्रा० ठाइअँ] १. बैठने की जगह। चबूतरा। २. घर की बाहरी चौपाल। बैठक। ३.वह स्थान जहाँ लोग बैठकर पंचायत करते है। ४. मंडली। जमावड़ा। ५. दरबार। |
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अथाना :
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सं० [सं० स्थान] १. थाह लेना। २. गहराई नापना। ३. ढूँढ़ना। पुं० [सं० स्थालु) आम आदि फलों का अचार। |
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अथार :
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वि० [सं० अ+स्तर] इधर-उधर फैला हुआ या बिखरा हुआ। |
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अथावत :
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भू० कृ० [सं० अस्तवत्] जो अस्त हो चुका हो। डूबा हुआ। |
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अथाह :
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वि० [सं० अस्ताघ] १. जिसकी थाह या गहराई का पता न चल सकें। जैसे—यहाँ अथाह जल है। २. गम्भीर। गूढ़। ३. जो जानने या समझने योग्य न हो। पुं० १. गहराई। २. जलाशय। ३. समुद्र। मुहावरा |
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अथाही :
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स्त्री० [?] बाकी रुपये वसूल करना। उगाही। (बुंदेल) |
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अथिर :
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वि० =अस्थिर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अथैया :
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स्त्री० दे० ‘अथाई। |
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अथोर :
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वि० [सं० अ=नहीं+सं० स्तोक, पा० थोक, प्रा० थोअ=थोड़ा] [स्त्री० अथोरी] जो थोड़ा या कम न हो। बहुत अधिक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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