शब्द का अर्थ
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अनाद :
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पुं० [सं० ?] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में मगण, यगण, गुरु और लघु होता है। इसे वाणी भी कहते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अनादर :
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पुं० [सं० न-आदर, न० त०] [वि० अनादृत,अनादरणीय] १. आदर न होना। निरादर। अपमान। अप्रतिष्ठा। बेइज्जती। २. साहित्य में एक अलंकार जिसमें कोई दूसरी वस्तु प्राप्त करने की आशा से किसी प्राप्त वस्तु के अनादर का उल्लेख होता है। वि० [न० ब०] जिसका आदर न हुआ हो। |
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अनादरण :
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पुं० [सं० आ√दृ (आदर)+ल्युट्। अन० त०] [भूत० कृ० अनादृत] १. अनादर या अपमान करने की क्रिया या भाव। २. बंको आदि में किसी देयक या प्राप्यक का इसलिए अस्वीकृत होना और उसका धन न चुकाया जाना कि उस पर हस्ताक्षर करने वाले के खाते में उसका इतना धन जमा नहीं। (डिस्-आँनरिंग) |
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अनादरणीय :
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वि० [सं० न-आदरणीय, न० त०] १. जो आदर या अधिकारी का पात्र न हो। २. तिरस्कार या अवहेलना के योग्य। |
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अनादरित :
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वि० [सं० अनादर+इतच्] १. जिसका आदर न किया गया हो। २. जिसका अनादर किया गया हो। |
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अनादि :
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वि० [सं० न-आदि, न० ब०] १. जिसका आदि या आरंभ न हो। २. जो सदा से बना चला आ रहा हो। ३. परमात्मा का एक विशेषण। |
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अनादित्व :
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पुं० [सं० अनादि+त्व] १. अनादि होने की अवस्था या भाव। २. नित्यता। |
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अनादि-निधन :
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वि० [सं० अनादि-निधन, द्व०,०न-आदि निधन, न० ब०] १. जिसका आदि अंत न हो। २. नित्य। ३. परमेश्वर का एक विशेषण। |
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अनादिष्ट :
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वि० [सं० न-आदिष्ट,न० त०] १. जिसे आदेश या आज्ञा न मिली हो। २. जिसके लिए आदेश या आज्ञा न दी गई हो। |
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अनादि-सिद्धि :
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वि० [पं० त०] जो अनादि काल से चला आ रहा हो। |
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अनादृत :
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वि० [सं० न-आदृत, न० त०] १. जिसका आदर या अपमान हुआ हो। २. जिसका आदर या सम्मान न किया गया हो। |
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अनादेय :
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वि० [सं० न-आदेय, न० त०] (पदार्थ) जो ग्रहण करने या लिये जाने के योग्य न हो। अग्राह्म। |
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अनादेश :
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पुं० [सं० न-आदेश, न० त०] आदेश या आज्ञा का अभाव। |
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अनादेश-कर :
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वि० [सं० न-आदेश न० ब०, अनादेश-कर, ष० त०] १. बिना आज्ञा के करने वाला। २. ऐसा काम करने वाला जिसके लिए आज्ञा न मिली हो। |
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अनाद्यंत :
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वि० [सं० आदि-अंत, द्व० स० न-आद्यंत, न० ब०] जिसका न तो आरंभ या आदि हो और न अंत। सदा से चला आने और सदा बना रहनेवाला। पुं० शिव। |
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अनाद्य :
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वि० [सं० न-आद्य, न० त०] १. अनादि। २. अभक्ष्य। |
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अनाद्यवंत :
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वि० [सं० अनादि-अनंत, द्व० स०]=अनाद्यंत। |
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