शब्द का अर्थ
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अभाव :
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पुं० [सं० न० त०] १. अस्तित्व में होने की अवस्था या भाव। २. उपस्थित या विद्यमान न होने की अवस्था या भाव। ३. गुण, वस्तु आदि की अत्यधिक कमी होना। ४. न मिलने की अवस्था या भाव। ५. अच्छे या सद्भाव की कमी। ६. वैर-विरोध का भाव। |
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समानार्थी शब्द-
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अभावक :
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वि० [सं० न० ब० कप्] १. भाव या सत्ता से रहित। २. अभाव उत्पन्न या सूचित करनेवाला। ३. दे० ‘नहिक’। |
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अभावन :
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वि० [सं० √भू+णिच्+ल्यु-अन] १. सुंदर। २. रुचिकर। वि० न भानेवाला। अप्रिय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अभावना :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. भावना का न होना। २. ध्यान की कमी। ध्यान-शून्यता। वि० [हिं० अ-नहीं+भाना-अच्छा लगना] जो अच्छा न लगे। अप्रिय। |
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अभावनीय :
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वि० [सं० न० त०] जो भावना में न आ सके। जिसके विषय में कुछ सोचा-समझा न जा सके। (इन-कानसीवेबुल) |
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अभाव-पदार्थ :
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पुं० [सं० अभाव-न० ब, अभाव-पदार्थ कर्म० स०] वह पदार्थ जो भाव अर्थात् सत्ता शून्य हो। असत् पदार्थ। (दर्शन) |
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अभाव-प्रमाण :
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पुं० [सं० कर्म०स०] कारण का अभाव होने पर भी कोई कार्य होने का दिया जानेवाला प्रमाण। (न्याय) |
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अभावात्मक :
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वि० [सं० अभाव+आत्मन्, ब० स० कप्] १. जो अभाव के रूप में हो या अभाव का सूचक हो। २. दे० ‘नहिक’। |
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अभावित :
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वि० [सं० न० त०] १. जिसकी भावना न की गई हो। जो पहले से सोचा-समझा न गया हो। २. जिसमें किसी दूसरी चीज की भावना (पुट) न हो। |
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अभावी (दिन्) :
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वि० [सं० √भू(सत्ता)+णिनि० न० त०] जिसकी सत्ता या स्थिति न हो सके। न होनेवाला। |
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अभाव्य :
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वि० [सं० न० त०] १. न होनेवाला। २. जिसकी भावना न की जा सके। |
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