शब्द का अर्थ
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अरस :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें रस न हो। बिना रस का। नीरस। २. बिना स्वाद का। फीका। ३. अनाड़ी। गँवार। पुं० रस का न होना। रस का अभाव। पुं० [सं० अलस] आलस्य। उदाहरण—पुनि सिंगार करि अरस नेवारी।—जायसी। पुं० [अ० अर्श-आकाश] १. आकाश। उदाहरण—सेनापति जीवन अधार निरधार तुम, जहाँ कौ ढरत तहाँ टूटत अरस तें।—सेनापति। २. स्वर्ग। ३. बहुत ऊँचा भवन। जैसे—घरहरा या महल। ४. कमरे की छत या पाटन। |
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समानार्थी शब्द-
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अरसथ :
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पुं० [देश०] वह बही जिसमें मासिक आय-व्यय का लेखा लिखा जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरसन-परसन :
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पुं०=अरस-परस। |
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अरसना :
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अ० [सं० अलस] १. आल्सय से युक्त होना। २. ढीला, मंद या शिथिल होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरसना-परसना :
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स० [सं० स्पर्शन] १. स्पर्श करना। छूना। २. गले लगाना। आलिंगन करना। ३. अच्छी तरह देखना-भालना। (क्व०)। |
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अरस-परस :
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पं० [सं० दर्शन+स्पर्शन] १. हाथ से छूना। स्पर्श करना। २. दर्शन और अंगस्पर्श। ३. ब्रज में लड़कों का एकखेल। (कदाचित आँखमिचौनी)। |
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अरसा :
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पुं० [अ० अर्सः] १. काल। समय। जैसे—इसी अरसे में वह भी आ पहुँचा। २. अधिक समय़। बहुत दिन। जैसे—अरसे से आप का खत नहीं आया। ३. देर। विलंब। ४. शतरंज की बिसात। |
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अरसात :
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पुं० [सं० अलस=आलस्य] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में सात भगण और एक रगण होता है। |
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अरसाना :
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अ० [सं० अलस] १. आलस्य से युक्त होना। २. आलस या सुस्ती करना। अलसाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरसिक :
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वि० [सं० न० त०] १. जो रसिक (प्रेम का मर्मज्ञ) न हो। रूखा। २. जिसे किसी विशिष्ट विषय, विशेषतः काव्य, श्रंगार, संगीत आदि में रस न मिलता हो। रूखे स्वभाववाला। |
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अरसी :
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स्त्री० १. =अलसी। २. =आरसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरसीला :
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वि० [सं० अलस] [स्त्री० अरसीली] आलस्यपूर्ण। आलस्य से भरा हुआ। जैसे—अरसीली मुद्रा। वि० [हिं० अ+रसीला] १. जिसमें रस या स्वाद न हो। २. अरसिक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरसौहा :
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वि० [हिं० अरस-आलस्य+औंहाँ(प्रत्यय)] आलस्य से भरा हुआ। जैसे—अरसौंहें नैन। |
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अरस्तू :
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पुं० [अ०] यूनान का एक प्रसिद्ध विद्वान और दार्शनिक (३८४-३२२ ई० पू०)। (अरिस्टाटल) |
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