शब्द का अर्थ
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अरुंतुद :
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वि० [सं० अरु√तुद्+खस्, मुम्] १. मर्मस्थान पर आघात करनेवाला। २. मन को दुःखी करनेवाला। ३. काटने, छेदने या घाव करनेवाला। पुं० बैरी । शत्रु। |
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अरुंधती :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. वशिष्ठ मुनि की स्त्री। २. दक्ष प्रजापति की के कन्या जो धर्म को ब्याही गई थी। ३. सप्तर्षि मंडल का एक छोटा तारा। ४. तंत्र शास्त्र में, जिह्वा। जीभ। |
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अरुंषिका :
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स्त्री० [सं० अरूष्+ठन्, पृपो० मुम] रक्त के विकार से होनेवाला एक रोग जिसके कारण माथे और मुँह पर फोड़े निकल आते है। |
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अरु :
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अव्य० [सं० अपर] और। पुं० [सं०√ऋ (गति)+उन] १. लाल खैर। २. अर्क वृक्ष। ३. सूर्य। ४. जख्म। घाव। ५. कोमल अंग। ६. नेत्र। आँख। |
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अरुआ :
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पु० [सं० आलु] १. एक प्रकार का कंद जिसकी तरकारी बनती है। २. एक वृक्ष जिसकी लकड़ी ढोल, तलवार की म्यान बनाने के काम आती है। |
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अरुई :
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स्त्री०=अरवी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुगाना :
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[सं० अनुगायन] अच्छी तरह समझाकर कोई बात कहना। उदाहरण—समौ पाय कहियो अरुगाई।—नंददास। |
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अरुग्ण :
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वि० [सं० न० त०] जो रुग्ण न हो। निरोग। तंदुरस्त। |
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अरुचि :
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स्त्री० [सं० न० त०] १. रुचि या प्रवृत्ति का अभाव। अनिच्छा। २. अग्निमांद्य नामक रोग। ३. दिलचस्पी न होना। रस न लेना। घृणा। |
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अरुचि-कर :
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वि० [सं० न० त०] जो रुचिकर न हो। |
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अरुच्य :
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वि० [सं० न० त०] =अरुचि-कर। |
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अरुज :
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वि० [सं० न० ब०] जिसे कोई रोग न हो। निरोग। पुं० १. अमलतास। २. केसर। ३. सिंदूर। |
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अरुझना :
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अ०=उलझना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुझाना :
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स०=उलझाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुझाव :
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पुं०=उलझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुझैरा :
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पुं० [हिं० अरुझना] उलझन। उदाहरण—नौ मन सूत अरुझि नहिं सुरझै जनम जनम अरुझेरा।—कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुट्ठ :
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वि०=रूष्ट। |
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अरुण :
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वि० [सं०√ऋ (गति)+उनन्] [स्त्री० अरुणा भाव० अरुणता, अरुणिमा] लाल रंग का। रक्त वर्ण का। सुर्ख। पुं० [सं० ] १. गहरा लाल रंग। २. सूर्य। ३. बारह आदित्यों में से एक जिसका प्रकाश माघ महीनें में रहता है। ४. सूर्य का सारथी। ५. संध्या के समय पश्चिम में दिखाई देने वाली लाली। ६. कुंकुम। ७. सिंदूर। ८. उद्दालक ऋषि के पिता का नाम। ९. एक झील जो मदार पर्वत पर मानी गई है। १. एक प्रकार के पुच्छल तारे जिनकी चोटियाँ चँवर की तरह होती है। ११. एक प्रकार का कुष्ट रोग जिसमें शरीर का चमड़ा लाल हो जाता है। १२. पुन्नाग नामक वृक्ष। |
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अरुण-कर :
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पुं० [ब० स०] सूर्य। |
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अरुण-किरण :
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पुं० [ब० स०] सूर्य। |
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अरुण-चूड़ :
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पुं० [ब० स०] १. वह जिसकी चोटी या शिखा लाल हो। २. मुर्गा। |
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अरुण-ज्योति (स्) :
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पुं० [ब० स०] शिव। |
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अरुणता :
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स्त्री० [सं० अरुण+तल्-टाप्] १. अरुण होने की अवस्था या भाव। २. ललाई। लाली। |
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अरुण-नेत्र :
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पुं० [ब० स०] १. कबूतर। २. कोयल। |
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अरुण-प्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] १. सूर्य की स्त्रियाँ छाया और संज्ञा। २. एक अप्सरा का नाम। |
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अरुण-मल्लार :
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पुं० [कर्म० स०] मल्लार राग का एक भेद जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। |
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अरुण-शिखा :
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पुं० [ब० स०] मुर्गा, जिसकी चोटी लाल होती है। |
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अरुणा :
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स्त्री० [सं० अरुण+अच्-टाप्] १. प्रातःकाल की पूर्व दिशा की लाली। २. उषा। ३. लाल रंग की गौ। ४. मंजीठ। ५. अतिविषा। ७. गोरखमुंडी। ८. निसोथ। ९. इंद्रायन। १. घुँघची। ११. एक प्राचीन नदी। |
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अरुणाई :
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स्त्री०=अरुणता (लाली)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुणाग्रज :
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पुं० [अरुण-अग्रज, ब० स०] गरुड़। |
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अरुणात्मज :
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पुं० [अरुण-आत्मज, ष० त०] अरुण के पुत्र। जैसे—कर्ण, जटायु, यम, शनि, सुग्रीव आदि। |
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अरुणात्मजा :
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स्त्री० [सं० अरुणात्मज+टाप्] १. सूर्य की पुत्री। यमुना नदी। २. ताप्ती नदी। |
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अरुणानुज :
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पुं० [अरुण-अनुज, ष० त०] गरुड़। |
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अरुणाभ :
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वि० [अरुण-आभा, ब० स०] जो लाल आभा से युक्त हो। लाली दिये हुए। |
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अरुणाभा :
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स्त्री० [अरुण-आभा, कर्म० स०] सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय का सूर्य का मद्धिम प्रकाश। (ट्वाइलाइट) |
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अरुणार :
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वि०=अरुनारा। |
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अरुणाश्व :
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पुं० [अरुण-अश्व, ब० स०] मरुत्। वायु। |
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अरुणित :
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भू० कृ० [सं० अरुण+इतच्] १. जिसे लाल किया या बनाया गया हो। २. जिसमें लाली आ गयी हो। |
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अरुणिमा :
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स्त्री० [सं० अरुण+इमानिच्] अरुण होने का गुण या भाव। ललाई। लाली। |
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अरुणोद :
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पुं० [ब० स० अरुण-उदक, उद आदेश] १. जैनियों के अनुसार एक समुद्र जो पृथ्वी को आवेष्ठित किए है। २. लाल सागर। |
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अरुणोदक :
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पुं० [अरुण-उदय ब० स०]=अरुणोद। |
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अरुणोदधि :
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पुं० [अरुण-उदधि कर्म० स०] अरब और मिस्र के बीच का सागर। लाल सागर। |
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अरुणोदय :
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पुं० [अरुण-उदय, ब० स०] दिन निकलने से कुछ पहले का समय जब सूर्य की लाली दिखाई देने लगती है। उषाकाल। भोर। तड़का। |
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अरुणोदय-सप्तमी :
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स्त्री० [मध्य० स०] माद्य-शुक्ला सप्तमी। |
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अरुणोपल :
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पुं० [अरुण-उपल, कर्म० स०] पद्यराग मणि। लाल नामक रत्न। |
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अरुन :
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वि०=अरुण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुनई :
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स्त्री०=अरुणाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुन-चूड़ :
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पुं०=अरुण चूड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुनता :
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स्त्री०=अरुणता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुनशिखा :
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पुं०=अरुणशिखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुनाई :
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स्त्री०=अरुणाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुनाना :
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अ० [सं० अरुण] अरुण या लाल होना। स० अरुण या लाल करना। |
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अरुनारा :
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वि० [सं० अरुण] जिसका रंग लाल हो। लाल रंगवाला। |
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अरुनोदय :
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पुं० =अरुणोदय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुरना :
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अ० [?] संकुचित होना। सिकुड़ना। उदाहरण—नीकी दीठ तूख सी, पतूख सी अरुरि अंग ऊख सी मसरि मुख लागति महूख सी।—देव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुराना :
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स० [?] १. ऐंठना। मरोड़ना। २. सिकोड़ना। अ० =अरुरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अरुवा :
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पुं० [सं० अरु] १. एक लता जिसके पत्ते पान की लता के पत्तों के सदृश्य होते हैं। २. दे० अरुआ। पुं० [हिं० रुरुआ] उल्लू पक्षी। |
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अरुषी :
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स्त्री० [सं०√रूष् (क्रोध)+क, न० ब०, ङीष्] १. उषा। २. ज्वाला। ३. भृगु ऋषि की पत्नी का नाम। |
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अरुष्क :
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पुं० [सं० अरुस्√कै (पीड़ा)+क,०] १. भिलावाँ। २. अडूसा। |
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अरुष्कर :
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वि० [सं० अरुस्√कृ (करना)+ट] घात या हानि करनेवाला। |
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अरुहा :
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पुं० [सं०√रुह् (उत्पत्ति)+क-टाप्, न० त०] भुइँ-आँवला। |
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अरुक्ष :
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वि० [सं० न० त०] जो रुक्ष या रुखा न हो, फलतः कोमल या स्निग्ध। |
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