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अलस  : वि० [सं० √लस् (कीड़ा आदि)+अच्० न० त०] [भाव अलसता] १. आलस्य से भरा हआ। २. आलस्य उत्पन्न करनेवाला। उदाहरण—वही वेदना सजक पलक में भरकर अलस सवेरा।—प्रसाद। ३. जिसमें शक्ति या सामर्थ्य न रह गया हो। ४. थका हुआ। क्लांत। शिथिल। पुं० १. एक प्रकार का छोटा विषैला जंतु। २. पैरों की उँगलियों में होनेवाली खुजली, पीड़ा, सड़न और सूजन। कँदरी। खरवात।
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अलसक  : पुं० [सं०√लस्+वुन-अक, न० त०] अजीर्ण रोग का एक भेद।
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अलसना  : अ० [सं० आलस्य] आलस्य से युक्त होना। अलसाना।
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अलसा  : स्त्री० [सं० अलस+टाप्] हंसपदी लता।
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अलसान  : स्त्री० =आलस्य। उदाहरण=आँखिन में अलसानि, चित्तौन में मंजु विलासन की सरसाई।—मतिराम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अलसाना  : अ० [सं० आलस्य] १. आलस्य का अनुभव करना या आलस्य से युक्त होना। २. उक्त के फलस्वरूप शिथिल होकर कर्त्तव्य पालन से दूर रहना, बचना या हटना। ३. उदासीन विरक्त या खिन्न होना। उदाहरण—अब मोसौं अलसात जात हौ अधम उधारन हारे।—सूर।
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अलसी  : स्त्री० [सं० अतसी, गुं० अलसी, इलसी, सि० एलिसी, अलिसी, कं० अलिश, मराठी अळशी] १. एक प्रसिद्ध पौधा जिसके छोटे-छोटे दानों या बीजों को पेरकर तेल निकाला जाता है। २. उक्त पौधे के दाने या बीज। तीसी।
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अलसेठ  : स्त्री० [सं० अलस] १. व्यर्थ की ढिलाई या स्थिरता। २. जान-बूझकर खड़ा किया जानेवाला व्यर्थ का झगड़ा या तकरार। ३. झंझट। बखेड़ा। ४. अड़चन। बाधा।
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अलसेठिया  : वि० [हिं० अलसेठ] अलसेठ या व्यर्थ का झगड़ा खड़ा करनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अलसौहाँ  : वि० [सं० अलस] [स्त्री० अलसौही] १. आलस्य में पड़ा हुआ। अलसाया हुआ। २. खुमारी या नींद से भरा हुआ (नेत्र)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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