शब्द का अर्थ
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अहो :
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अव्य० [सं० √हा(त्याग गति)+डो, न० त०] १. विस्मय, हर्ष, खेद आदि सूचक एक अव्यय। २. हे। ओ। (संबोधन)। |
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अहोई :
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स्त्री० [हिं० अ+होना] दीपावली के आठ दिन के पहले होनेवाली एक पूजा जिसमें स्त्रियाँ संतान की प्राप्ति और रक्षा के लिए व्रत करती है। वि०=अनहोनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अहोनस :
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पुं० [सं० अहर्निश] रात-दिन। सदा। उदाहरण—प्रसणा सोण अहोनस पालत पग सावरत रहै षूमांण।—प्रिथीराज। |
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अहोनिस :
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क्रि० वि० [सं० अहर्निश] १. रात-दिन। सदा। २. निरंतर। लगातार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अहोरत्न :
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पुं० [सं० अहन्-रत्न, ष० त०] सूर्य। |
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अहोरात्र :
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पुं० [सं० अहन्-रात्रि, द्व० स० टच्] दिन और रात दोनों। क्रि० वि० रात-दिन। सदा। |
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अहोरा-बहोरा :
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पुं० [सं० अहः-दिन+हिं० दे० बहुरना] विवाह होने पर दुलहिन का पहली बार ससुराल जाना और फिर उसी समय मायके लौटना। हेरा-फेरी। क्रि० वि० बार-बार। रह-रहकर। उदाहरण—शरद चंद महँ खंजन जोरी। फिर-फिरि लरहिं अहोर-बहोरी।—जायसी। |
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अहोरिन :
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स्त्री० [?] एक प्रकार की चिड़िया। |
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