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आत्म-विक्रय  : पुं० [ष० त०] [वि० आत्म-विक्रयी] १. स्वयं ही अपने आप को बेच डालना। २. धन लेकर अपने आप को पूरी तरह से किसी के अनुयायी या दास बनाना। ३. आत्म-सम्मान त्याग कर किसी के अधीन होना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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