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उधार  : पुं० [सं० उद्धार] १. कोई चीज इस प्रकार खरीदना या बेचना कि उसका दाम कुछ समय बाद दिया या लिया जाए। २. वह धन या रकम जो उक्त प्रकार से खरीदने या बेचने के कारण किसी के जिम्मे निकलती हो या बाकी पड़ी हो। जैसे—हमारे तो हजारों रुपए उधार में ही डूब गये। पद-उधारखाता (क) पंजी या वही का वह अंश या विभाग जिसमें उधार दी या ली हुई रकमें लिखी जाती हैं। (ख) बिना तुरंत मूल्य चुकाये चीजे खरीदने या बेचने की परिपाटी। वि० जो किसी से कुछ समय तक अपने उपयोग में लाने के लिए और कुछ दिन बाद लौटा देने के वादे पर माँगकर लिया गया हो। जैसे— (क) इस समय किसी से दस रूपए उधार लेकर काम चला हो। (ख) अभी तो सौ रुपए के उधार आये हैं। विशेष—लोक-व्यवहार में ‘उधार’ का प्रयोग मुख्यतः धन के संबंध में ही प्रशस्त माना जाता है, वस्तुओं के संबंध में अधिकतर ‘मँगनी’ का ही प्रयोग होता है। मुहावरा—(किसी काम या बात के लिए) उधार खाये बैठना
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उधारक  : वि०=उद्धारक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उधारन  : वि० [सं० उद्धार] उद्धार करनेवाला। उद्धारक। (यौ शब्दों के अंत में, जैसे—विपत्ति-उधारन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उधारना  : स० [सं० उद्वरण] किसी को विपत्ति या संकट से निकालना या मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—कौने देव बराय बिरद हित हठि हठि अधम उधारे।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उधारी  : वि० [सं० उद्वारिन] उद्धार करनेवाला। स्त्री०-उधार। वि० उधार माँगनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उधार  : पुं० [सं० उद्धार] १. कोई चीज इस प्रकार खरीदना या बेचना कि उसका दाम कुछ समय बाद दिया या लिया जाए। २. वह धन या रकम जो उक्त प्रकार से खरीदने या बेचने के कारण किसी के जिम्मे निकलती हो या बाकी पड़ी हो। जैसे—हमारे तो हजारों रुपए उधार में ही डूब गये। पद-उधारखाता (क) पंजी या वही का वह अंश या विभाग जिसमें उधार दी या ली हुई रकमें लिखी जाती हैं। (ख) बिना तुरंत मूल्य चुकाये चीजे खरीदने या बेचने की परिपाटी। वि० जो किसी से कुछ समय तक अपने उपयोग में लाने के लिए और कुछ दिन बाद लौटा देने के वादे पर माँगकर लिया गया हो। जैसे— (क) इस समय किसी से दस रूपए उधार लेकर काम चला हो। (ख) अभी तो सौ रुपए के उधार आये हैं। विशेष—लोक-व्यवहार में ‘उधार’ का प्रयोग मुख्यतः धन के संबंध में ही प्रशस्त माना जाता है, वस्तुओं के संबंध में अधिकतर ‘मँगनी’ का ही प्रयोग होता है। मुहावरा—(किसी काम या बात के लिए) उधार खाये बैठना
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उधारक  : वि०=उद्धारक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उधारन  : वि० [सं० उद्धार] उद्धार करनेवाला। उद्धारक। (यौ शब्दों के अंत में, जैसे—विपत्ति-उधारन)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उधारना  : स० [सं० उद्वरण] किसी को विपत्ति या संकट से निकालना या मुक्त करना। उद्धार करना। उदाहरण—कौने देव बराय बिरद हित हठि हठि अधम उधारे।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उधारी  : वि० [सं० उद्वारिन] उद्धार करनेवाला। स्त्री०-उधार। वि० उधार माँगनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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