शब्द का अर्थ
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कीट :
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पुं० [सं०√कीट् (बनधन)+अच्] जमीन पर रेंगनेवाले बिना हाथ-पैर के छोटे-छोटे जंतु। कीड़े। पद—कीट-पतंग=रेगने और उड़नेवाले कीड़े। पुं० [सं० प्रा० किट्ट, उ० किटकिट, मरा० सिं० कीट, गु० कीटू] किसी चीज पर जमा हुआ मैल। |
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समानार्थी शब्द-
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कीटक :
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पुं० [सं० कीट+कन्] १. कीड़ा। २. मगध की एक प्राचीन जन-जाति। |
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कीटज :
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वि० [सं० कीट√जन् (उत्पन्न होना)+ड] १. कीड़ों से निकला या बना हुआ। २. कीड़ो द्वारा बनाया हुआ। पुं० रेशमी कपड़ा। |
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कीट-नाशक :
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वि० [ष० त०] कीड़ों कीटाणुओं आदि को नष्ट करनेवाला (पदार्थ)। |
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कीट-भृंग-न्याय :
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पुं० [सं० कीच-भृंग, मय० स० कीटभृंग-न्याय, ष० त०] दो या अधिक वस्तुओं का उसी प्रकार मिलकर एक रूप हो जाना जिस प्रकार भौंरा किसी कीड़े को पकड़कर (लोक प्रवाद के अनुसार) उसे बिलकुल अपनी तरह का बना लेता है। |
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कीट-भोजी (जिन्) :
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पुं० [सं० कीट√भुज् (खाना)+णिनि, उप० स०] ऐसे जीव-जन्तु या पौधे जो कीड़े-मकोड़ो का भक्षण करते हों। (इन्सेक्टिवोरस) |
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कीट-मणि :
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पुं० [अपमि० स०] खद्योत। जुँगनू। |
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कीट-विज्ञान :
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पुं० [मध्य० स०] वह विज्ञान जिसमें कीड़ो मकोड़ो की नसलों आदि के संबंध में अध्ययन किया जाता है। (एन्टामालोजी। |
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कीटाण :
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पुं० [सं० कीट-अणु, स० त०] ऐसे सूक्ष्म कीड़े जो कई प्रकार के रोगों के मूल कारण माने जाते हैं। (जर्म्स)। |
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कीटिका :
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स्त्री० [सं० कीट+कन्, टाप्, इत्व] १. छोटा कीड़ा। २. तुच्छ या हीन प्राणी। |
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