शब्द का अर्थ
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					चय					 :
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					पुं० [सं०√चि (बटोरना)+अच्] १. ढेर। राशि। समूह। २. टीला। ढूह। ३. किला। गढ़। ४. किले या शहरी की चार-दीवारी। परकोटा। फसील। ५. इमारत या दीवार की नींव। बुनियाद। ६. चबूतरा। चौंतरा। ७. चौकी या ऐसा ही और कोई ऊँचा आसन। ८. बहुत ही मनोहर और हरा-भरा स्थान। ९. वैद्यक में गफ, पित्त या वात का विकृत होकर इकट्ठा होना। १॰. यज्ञ के लिए अग्नि का चयन जो एक संस्कार के रूप में होता है।				 | 
			
			
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					चयक					 :
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					वि० [सं० चायक] चयन करनेवाला।				 | 
			
			
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					चयन					 :
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					पुं० [सं० चि+ल्युट्-अन] १. आवश्यकता, रुचि आदि के अनुसार बहुत सी वस्तुओं में से कोई एक या कई वस्तुएँ चुन या छाँटकर अलग निकालने की क्रिया या भाव। जैसे–गुलदस्ते के लिय फूलों अथवा संग्रहालय के लिए पुस्तकों का चयन करना। २. इस प्रकार चुनी हुई वस्तुओं का समूह। संकलन। ३. यज्ञ के लिए अग्नि का एक संस्कार।				 | 
			
			
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					चयनक					 :
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					पुं० [हिं० चयन से] चुने हुए व्यक्तियों का वह वर्ग या समूह जिसमें से कोई एक या कई व्यक्ति किसी विशेष कार्य के संपादन या संचालन के लिए किसी उच्च अधिकारी या संस्था द्वारा नियत किये जाते हैं। नामिका। (पैनेल)।				 | 
			
			
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					चयन-शील					 :
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					वि० [ब० स०] जो चयन करने या संग्रह करने के काम में लगा हो या लगा रहता हो।				 | 
			
			
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					चयना					 :
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					स० [सं० चयन] चयन करना। इकट्ठा करना। उदाहरण–रजनी गत बासर मृग तृष्ना रसहरि कौन चयौ।–सूर।				 | 
			
			
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					चयनिका					 :
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					स्त्री० [सं० चयन+कन्+टाप्-इत्व] १. चुनी हुई कविताओँ, कहानियों, लेखों या ऐसी ही और चीजों या बातों आदि का संग्रह। २. पत्र-पत्रिकाओं आदि का वह विभाग या स्तंभ जिसमें दूसरी पत्र-पत्रिकाओं से ली हुई अच्छी टिप्पणियाँ लेख या उनके सारांश रहते हैं।				 | 
			
			
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					चयनीय					 :
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					वि० [सं०√चि+अनीयर] जो चयन किये या चुने जाने के योग्य हो।				 | 
			
			
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					चयित					 :
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					भू० कृ० [सं० चित्त] १. चयन किया या चुना हुआ। २. चुनकर इकट्ठा किया हुआ।				 | 
			
			
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