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चित्त-प्रसादन  : पुं० [ष० त०] योग में चित्त का एक संस्कार जो करुणा, मैत्री, हर्ष आदि के उपयुक्त व्यवहार द्वारा होता है। जैसे–किसी को सुखी देखकर प्रसन्न होना, दुःखी के प्रति करुणा दिखाना, पुण्य के प्रति हर्ष और पाप के प्रति उपेक्षा करना। इस से चित्त में सात्त्विक वृत्ति का प्रादुर्भाव होता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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