शब्द का अर्थ
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छन :
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पुं० [सं० क्षण, प्रा० पा० छण, पं० खिण, गु० खण, सि० क्षुणु] १. क्षण। (दे०) २. पर्व का समय। पुण्य-काल। पुं० [हिं० छद] हाथों में पहनने का छंद नामक गहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अनु०] १. तपे हुए धातु के पात्र पर ठंढा तरल पदार्थ पड़ने या छिड़कने से होनेवाला शब्द। २. कड़कड़ाते हुए घी या तेल में किसी वस्तु के तले जाने पर होनेवाला शब्द। ३. घुँघरू या पायल के बजने से होनेवाला शब्द। |
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समानार्थी शब्द-
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छनक :
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स्त्री० [हिं० छनकना] १. छन-छन शब्द। झनकार। जैसे–घुँघरुओं की छनक। २. छन-छन शब्द होने की अवस्था या भाव। क्रि० वि० [सं० क्षण+एक] क्षण भर। वि० [सं० क्षणिक] १. क्षणिक। क्षणभंगुर। २. (व्यक्ति) जो क्षण-क्षण भर में अपना मत बदल देता हो। उदाहरण–छाके है अयान मद छिति के छनक क्षुद्र।–केशव। |
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छनकना :
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अ० [अनु० छन छन] छन-छन शब्द होना। जैसे–घुँघरु का छनकना। अ० [अनु] चौंकना। भड़कना। पुं० दे० ‘झुनझुना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छनक-भनक :
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स्त्री० [हिं० छनक+अनु०] १. वह शब्द जो पहने हुए गहनों के आपस में टकराने से उत्पन्न होता है। २. सक। नखरा। |
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छनकाना :
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स० [हिं० छनकना] १. पानी को उबाल तथा खौलाकर उसका परिमाण कम करना। २. तपे हुए पात्र में कोई द्रव पदार्थ डालकर उसे गरम करना। ३. भड़काना। चौंकाना। स० १. कोई चीज बजाते हुए उसमें से छन-छन शब्द उत्पन्न करना। २. झुनझुना बजाना। |
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छनछनाना :
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अ० [अनु०] १. तपी हुई धातु पर जल-कण छोड़ने से छन छन शब्द होना। २. खौलते हुए घी या तेल में तलने के लिए कोई वस्तु छोड़ने पर छन-छन शब्द होना। स० १. छन-छन शब्द उत्पन्न करना। २. कुपित या कुद्र करना। |
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छन-छवि :
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स्त्री० [सं० क्षण+छवि] बिजली। |
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छनदा :
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स्त्री०=क्षणदा (रात्रि)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छनन-मनन :
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पुं० [अनु०] १. घुँघुरुओं आदि के बजाने से होनेवाला छन-छन शब्द। २. वह शब्द जो खौलते हुए घी या तेल में किसी तली जानेवाली वस्तु को छोड़ने से उत्पन्न होता है। |
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छनना :
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अ० [सं० क्षरण] १. चलनी या छलनी अथवा किसी महीन कपड़े में से किसी चूर्ण (जैसे–आटा), छोटे कर्णों या दानोंवाली वस्तु (जैसे–गेहूँ) अथवा द्रव पदार्थ (जैसे–भाँग) का छाना जाना। २. उक्त के आधार पर किसी नशीले तरल पदार्थ विशेषतः भाँग का पीसा, छाना या पीया जाना। ३. उक्त के आधार पर आपस में गूढ़ वार्त्तालाप या घनिष्ठ संबंध होना। मुहावरा–(आपस में) गहरी छनना=गूढ वार्त्तालाप का मेल-जोल होना। ४. उक्त क्रिया से किसी वस्तु या द्रव्य पदार्थ का अनावश्यक या अनुपयोगी अंश अलग होना। ५. किसी चीज का छोटे-छोटे छेदों से होकर आना या निकलना। जैसे–पेड़ के पत्तों के बीच से चाँदनी का छनकर आना। ६. किसी आवरण में से किसी चीज का भासित होना या झलक दिखाना। जैसे–घूँघट में से सौंदर्य का छनकर निकलना। ७. छेदों से युक्त होना। जैसे–तीरों से घावों के शरीर छनना। ८. किसी अभियोग, झगड़े या विषय की पूरी तथा सही बातों का पता चलना। जैसे–मामला छनना। ९. किसी प्रकार के जाल या धोखे में फँसना। उदाहरण–घात मैं लगे हैं ये बिसाखी सबै, उनके अनोखे छल-छंदनि छनी नहीं।–रत्नाकर। अ० [हिं० छानना का अ० रूप] १. कड़कड़ाते घी या तेल में खाद्य वस्तुओं का तला जाना। छाना जाना। जैसे–पूरी या बुंदियाँ छनना। २. इस प्रकार तली हुई चीजों का खाया जाना। जैसे–चलो ! वहाँ पूरी-कचौरी छनेगी और खीर उड़ेगी। अ० [सं० आछन्न] १. आच्छादित होना। घिरा होना। २. लिपटा या लपेटा हुआ होना। उदाहरण–मनों धनी के नेह की बनी छनी पट लाज।–बिहारी। |
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छनभंगु :
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वि०=क्षण-भंगुर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छनभर :
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क्रि० वि=क्षण-भर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छनवाना :
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स० [हिं० छानना का प्रे० रूप] छानने का काम दूसरे से कराना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छनिक :
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वि०=क्षणिक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छन्न :
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पुं० १=छन। २ =क्षण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० १.=आच्छन्न। २. =छिन्न। |
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छन्ना :
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पुं० [हिं० छानना] १. वह कपड़ा जिससे कोई चीज छानी जाय। २. चलनी। छलनी। ३. छोटा कटोरा। |
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