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शब्द का अर्थ

जप  : पुं० [सं०√जप् (जपना)+अप्] १. जपने या जाप करने की क्रिया या भाव। २. वह शब्द, पद या वाक्य जिसका उच्चारण भक्ति पूर्वक बार-बार किया जाय। ३. पूजा, संध्या आदि में मंत्रों का संख्यापूर्वक पाठ करना। जप करने में मंत्र की संख्या का ध्यान रखना पड़ता है, इसलिए जप में माला की भी आवश्यकता होती है।
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जपजी  : पुं० [हिं० जप] सिक्खों का प्रसिद्ध ग्रंथ जिसका वे प्रायः पाठ करते हैं।
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जपतप  : पुं० [हिं० जप+तप] संध्या, पूजा और पाठ आदि। पूजा पाठ।
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जपता  : स्त्री० [सं० जप+तल्-टाप्] जपने की क्रिया या भाव।
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जपन  : पुं० [सं०√जप्+ल्युट-अन] जपने की क्रिया या भाव। जप।
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जपना  : स० [सं० जपन] १. धार्मिक फल-प्राप्ति के लिए किसी शब्द, पद वाक्य आदि को भक्ति या श्रद्धापूर्वक बार-बार कहना। २. पूजा, संध्या, यज्ञ आदि करते समय संख्यानुसार मन ही मन उच्चारण करना। ३. यज्ञ करना। ४. किसी की कोई चीज हजम करना। हड़पना। (बाजारू)।
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जपनी  : स्त्री० [हिं० जपना] १. माला जिसे जप करते समय फेरा जाता है। जप करने की माला। २. वह थैली जिसमें माला और हाथ डालकर जप किया जाता है। गुप्ती। गोमुखी। ३. जपने की क्रिया या भाव। (क्व०) ४. बार-बार कोई बात बहुत आग्रहपूर्वक कहना। रट।
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जपनीय  : वि० [सं०√जप्+अनीयर्] जिसको जपना चाहिए। जपे जाने योग्य।
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जप-माला  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] वह माला जो जप करने के समय फेरी जाती है। जपनी।
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जपा  : स्त्री० [सं०√जप्+अच्-टाप्] जवा। अड़हुल। पुं० [सं० जप] जप करनेवाला व्यक्ति। उदाहरण–तपा जपा सब आसन मारे।–जायसी।
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जपाना  : स० [हिं० ‘जपना’ का प्रे० रूप] दूसरे से जप कराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जपालक्त  : पुं० [जपा-अल्कत, उपमि० स०] एक प्रकार का अलक्तक जो गहरे लाल रंग का होता है।
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जपिया  : वि=जपी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जपी  : वि० [हिं० जपना+ई (प्रत्यय)] जप करनेवाला।
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जप्त  : वि०=जब्त।
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जप्तव्य  : वि० [सं०+जप्+तव्यत्] जपे जाने के योग्य। जपनीय।
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जप्ती  : स्त्री०=जब्ती।
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जप्य  : वि० [सं०√जप्+ण्यत्] जपे जाने के योग्य।
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