शब्द का अर्थ
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जोत :
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स्त्री० [हिं० जोतना] १. जोतने की क्रिया या भाव। २. वह विशिष्ट अधिकार जो किसी असामी को कोई जमीन जोतने-बोने पर उसके संबंध में प्राप्त होता है। क्रि० प्र०– |
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समानार्थी शब्द-
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जोतखी :
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पुं०=ज्योतिषी। |
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जोतगी :
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पुं०=ज्योतिषी। |
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जोतदार :
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पुं० [हिं० जोत+दार] वह असामी जो दूसरों की भूमि पर खेतीबारी करता हो। |
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जोतना :
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स० [सं० योजन या युक्त, प्रा० जुत्त+ना] १. कोई चीज घुमाने या चलाने के लिए उसके आगे कोई पशु लाकर बाँधना। जैसे–एक्के, गाड़ी आदि में घोड़ा (या घोड़े) अथवा कोल्हू, मोट, रथ आदि में बैल जोतना। विशेष–इस क्रिया का प्रयोग स्वयं उन यानों के संबंध में भी होता है जिनके आगे पशु बाँधे जाते हैं (जैसे–एक्का, गाड़ी या रथ जोतना) और उन पशुओं के संबंध में भी होता है जो उनके बाँधे जाते है (जैसे–घोड़ा या बैल जोतना)। २. उक्त के आधार पर किसी को जबरदस्ती या विवश करके किसी काम में लगाना। जैसे–शिक्षक ने लड़कों को भी उस काम में जोत दिया। ३. खेत को बोये जाने के योग्य बनाने के लिए उसमें हल चलाना। ४. एक दम से, ऊपर से या कहीं से कोई चीज या बात लाकर उसी का क्रम चलाने लगना। जैसे–तुम अपनी ही जोतते रहोगे या दूसरे किसी को भी कुछ करने (या कहने) दोगे। |
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जोतनी :
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स्त्री० [हिं० जोतना] जुए में लगी हुई वह रस्सी जो जोते जाने वाले पशु के गले में बाँधी जाती है। |
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जोतसी :
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पुं=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतांत :
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स्त्री० [हिं० जोतना] खेत में मिट्टी की ऊपरी तह। |
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जोता :
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पुं० [हिं० जोतना] १. जुआँठे में बँधी हुई वह रस्सी जिसमें बैलों की गरदन फँसाई जाती है। २. करघे में दोनों ओर बँधी हुई वह रस्सियाँ जो ताने के दोनों सिरों पर सूतों को यथा स्थान रखने के लिए बँधी रहती है। ३. वह बड़ी धरन या शहतीर जो खंभों या उनकी पंक्तियों पर इसलिए रखते है कि उसके ऊपर और इमारत उठाई जा सके। वि० जोतनेवाला (यौ० के अंत० में)। जैसे–हल जोता–हल जोतनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=किसान (खेतिहर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोताई :
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स्त्री० [हिं० जोतना+आई (प्रत्यय)] जोते जाने या जोतने की अवस्था, क्रिया भाव या मजदूरी। |
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जोताना :
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स० [हिं० जोतना का प्रे.रूप] जोतने का काम किसी दूसरे से कराना। |
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जोति :
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स्त्री० [सं० ज्योति] १. किसी देवी-देवता के सामने जलाया जानेवाला दीया। जोत। क्रि० प्र०–जलाना। २. दे० ज्योति। स्त्री० [हिं० जोतना] ऐसी भूमि जो जोती-बोई जाती हो या जोती-बोई जा सकती हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिक :
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पुं=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिख :
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पुं=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिखी :
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पुं०=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिलिंग :
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पुं०=ज्योतिर्लिंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिवंत :
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वि० [सं० ज्योतिवान्] १. ज्योति अर्थात् प्रकाश से युक्त। प्रकाशमान्। २. चमकदार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिष :
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पुं०=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिषी :
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पुं०=ज्योतिषी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिस :
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पुं०=ज्योतिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोतिहा :
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पुं० [हिं० जोतना+हा (प्रत्य०)] १. खेत जोतनेवाला मजदूर। २. कृषक। खेतिहर। |
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जोती :
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स्त्री० [हिं० जोतना या जोत] १. घोड़े, बैल आदि की लगाम। रास। २. चक्की में की वह रस्सी जो उसके बीचवाली कीली और हत्थे में बँधी रहती है। ३. वह रस्सी जो खेत सींचने की दौरी में बँधी रहती है। ४. वह रस्सी जिससे तराजू के पल्ले बँधे रहते हैं। स्त्री०=ज्योति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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जोत्स्ना :
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स्त्री०=ज्योत्स्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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