शब्द का अर्थ
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ठग :
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पुं० [सं० स्थग] [स्त्री० ठगनी, भाव० ठगी] १. वह जो धोखा देकर दूसरों का धन ले लेता हो। जैसे–आज-कल तरह-तरह के ठग चारों ओर घूमते रहते हैं। २. मध्य युग में, वह व्यक्ति जो भोले-भाले लोगों पर अपना विश्वास जमा लेता था और धोखे से उन्हें कोई जहरीली या नशीली जड़ी-बूटी या मिठाई खिलाकर और उनका माल-असबाब लेकर चम्पत होता था। विशेष–आरंभ में प्रायः इक्के-दुक्के लोग ही ठग होते थे। वे जो जहरीली या नशीली, जड़ी-बूटियाँ या मिठाइयाँ लोगों को खिलाते थे, उन्हें जन-साधारण ठग-मूरि या ठग-मोदक कहते थे। बाद में मुख्यतः अंगेरजी शासन के आरंभिक काल में ये लोग बड़े-बड़े दल बनाकर घूमने लगे थे, और प्रायः यात्रियों, व्यापारियों आदि के दलों के साथ स्वयं भी यात्री या व्यापारी बनकर दो चार दिन यात्रा करते थे। जब कहीं जंगल या सुनसान मैदान में उन्हें अवसर मिलता था, तब वे उन यात्रियों या व्यापारियों के गले कुछ विशिष्ट प्रक्रिया से घोटकर उन्हें मार डालते और उनकी लाशें वहीं गाड़कर और माल लूटकर आगे बढ़ जाते थे। इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों होते थे और ये काली की उपासना करते थे। ३. आज-कल अधिक प्राप्ति या लाभ के लिए अपनी चीज या सेवा के बदले में उचित से अधिक दाम या धन वसूल करनेवाला व्यक्ति। जैसे–यह दूकानदार बहुत बड़ा ठग है। |
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समानार्थी शब्द-
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ठगई :
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स्त्री० [हिं० ठग+ई (प्रत्यय)] १. ठग का काम या भाव। ठगी। २. कपट। छल। धोखा। |
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ठगण :
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पुं० [ष० त०] छंदशास्त्र में पाँच मात्राओं का एक गण। |
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ठगना :
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स० [हिं० ठग+ना (प्रत्यय)] १. किसी से उनकी कोई चीज छल या धोखे से लेना। २. क्रय-विक्रय में अधिक लाभ करने के लिए किसी से लिए हुए धन के अनुपात में उचित से कम या रद्दी चीज देना। जैसे–यह दुकानदार ग्राहकों को बहुत ठगता है। पद–ठगा सा=ऐसा हक्का-बक्का कि मानों किसी ने उसे ठग लिया हो। ३. किसी को धोखे में रखकर उसके उद्देश्य की सिद्धि या संकल्प की पूर्ति से वंचित करना। जैसे–मुझे मेरे ही मित्रों ने ठगा। ४. किसी प्रकार का छल या धूर्त्तता का व्यवहार करना। ५. पूरी तरह से अनुरक्त या मोहित करके अपना वशवर्त्ती बनाना। अ० १.=ठगाना। २.=चकित होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगनी :
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स्त्री० [हिं० ठग] १. ठग की पत्नी। २. दूसरों को ठगने या धोखा देनेवाली स्त्री। छली या धूर्त स्त्री। ३. कुटनी। ४. पार्थिक क्षेत्रों में माया (सासारिक) का एक नाम। |
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ठग-पना :
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पुं० [हिं० ठग+पन] १. दूसरों को ठगने की क्रिया या भाव। ठगी। २. चालबाजी। धूर्त्तता। |
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ठग-मूरि :
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स्त्री० [हिं० ठग+मूरि] वह नशीली जड़ी जिसे खिलाकर ठग पथिकों को बेहोश करते और उनका धन लूट लेते थे। |
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ठग-मूरी :
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स्त्री०=ठग-मूरि। |
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ठग-मोदक :
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पुं० [हिं० ठग+सं० मोदक] वह मोदक या लड्डू जिसमें कुछ नशीली चीजें होती थीं और जिसे ठग लोग भोले-भाले यात्रियों को खिलाकर बेहोश कर देते और तब उनका माल लूट लेते थे। |
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ठग-लाड़ू :
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पुं०=ठग-मोदक। |
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ठगवाना :
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स० [हिं० ठगना का प्रे०] किसी को ठगने में किसी दूसरे को प्रवृत्त करना। ठगे जाने में प्रवर्तक या सहायक होना। |
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ठग-विद्या :
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स्त्री० [हिं० ठग+विद्या] लोगों को ठगने की कला या विद्या। |
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ठगहाई :
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स्त्री० [हिं० ठग]=ठगपना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगहारी :
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स्त्री० [हिं० ठग+हारी (प्रत्यय)] ठगपना। ठगई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगाई :
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स्त्री० [हिं० ठग+आई (प्रत्यय)] ठगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगाठगी :
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स्त्री० [हिं० ठग] धोखेबाजी। वंचकता। |
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ठगाना :
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अ० [हिं० ठगना] १. किसी ठग के द्वारा ठगा जाना। २. किसी धूर्त्त व्यापारी के फेर में पड़कर और उचित से अधिक मूल्य देकर धन गँवाना। ३. अपना धन अथवा और कोई चीज किसी अविश्वासी को दे या सौंप बैठना। ४. अनुरक्त होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगाही :
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स्त्री=ठगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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ठगिन :
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स्त्री०=ठगनी। |
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ठगिनी :
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स्त्री०=ठगनी। |
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ठगिया :
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अ० ठग। |
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ठगी :
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स्त्री० [हिं० ठग] १. किसी को ठगने की क्रिया या भाव। २. ठगों का काम या पेशा। ३. चालबाजी। धूर्त्तता। ४. मध्य युग की एक प्रथा जिसमें ठग लोग भोले-भाले यात्रियों को विष आदि के प्रभाव से मूर्छित करके अथवा उनकी हत्या करके उनका धन छीन लेते थे। ५. मोहित करनेवाला जादू या बात। उदाहरण–ठगी लगी तिहारिऐ सु आप लौं निहारिऐ।–आनन्दघन। |
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ठगोरी :
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स्त्री० [हिं० ठग-मूरि] १. ठगने की क्रिया० भाव या विद्या। २. ठगे जाने का भाव या परिणाम। उदाहरण–चोरन गए स्याम अँग सोभा उत सिर परी ठगोरी।–सूर। ३. ऐसी चीज या बात जिससे किसी को ठगा या धोखा दिया जाय। उदाहरण–जोग ठगोरी ब्रज न बिकै हैं।–सूर। ४. टोना। जादू। ५. मिथ्या भ्रम। माया। ६. सुध-बुध भुलानेवाली अवस्था, बात या शक्ति। उदाहरण–जानहु लाई काहु ठगोरी।–जायसी। मुहावरा–(किसी पर) ठगोरी डालना या लगाना=(क) मोहित करके अथवा और किसी प्रकार विश्वास जमाकर अपने वश में कर लेना। बहलाकर धोखे में रखना। |
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