शब्द का अर्थ
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तन :
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पुं० [सं० तनु] १. जीव का स्थूल ढाँचा। देह। शरीर। मुहावरा–तन कसना=तपस्या के द्वारा अपने आपको सहनशील बनाना। तन तोड़ना=(क) अँगड़ाई लेना। (ख) बहुत अधिक परिश्रम कराना। तन देना=ध्यान देना। तन मन मारना=इंद्रियों को वश में रखना। (किसी के) तन लगाना=(क किसी के उपयोग में आना। (ख) किसी के प्रति परिणाम होना या प्रभाव पड़ना। जैसे–जिसके तन लगती है वही जानता है। २. स्त्री की मूत्रेंद्रिय। भग। मुहावरा–(किसी को) तन दिखाना=किसी के साथ प्रसंग या संभोग करना। जैसे–वेश्याएँ सौ आदमियों को तन दिखाती है। अव्य० [सं० तनु] ओर। तरफ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनक :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार की रागिनी जिसे कोई मेघ राग की रागिनी मानते हैं। स्त्री० [हिं० तिनगना] १. तनने या रुष्ट होने की क्रिया या भाव। वि०=तनिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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तनकना :
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अ०=तिनकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनकीद :
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स्त्री० [अ०] आलोचना। समीक्षा। २. परख। पहचान। |
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तनकीह :
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स्त्री० [अ०] १. कोई मूल कारण या तथ्य जानने या निकलने के लिए किसी से की जानेवाली पूछ-ताछ। २. आज-कल विधिक क्षेत्रों में, दीवानी मुकदमों आदि के सम्बन्ध में दोनों पक्षों के कथन और उत्तर के आधार पर न्यायालय का यह निश्चित करना कि मुख्यतः कौन-कौन सी बातें विचारणीय हैं। |
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तनखाह :
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स्त्री० [फा० तनख्वाह] वेतन। (दे०)। |
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तनखाहदार :
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पुं० [फा] वेतन लेकर काम करनेवाला व्यक्ति। वेतनभोगी। |
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तनख्वाह :
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स्त्री०=तनखाह (वेतन)। |
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तनगना :
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अ०=तिनकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनज़ीम :
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स्त्री० [अ० तन्जीम] अपने दल, वर्ग समाज आदि के लोगों को एकत्र तथा संघटित करना। संघटन। |
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तन-तनहा :
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अव्य० [हिं० तन+फा० तनहा] केवल अपना शरीर लेकर। अकेले ही। जैसे–वह तन-तनहा ही घर से निकल पड़ा। |
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तनतना :
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पुं० [अ० तनुतनः] १. रोब-दाब। दबदबा। २. आतंक। ३. आवेश में आकर प्रकट किया जानेवाला क्रोध गुस्सा। क्रि० प्र०–दिखाना। |
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तनतनाना :
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अ० [हिं० तनना] बहुत तन या खिंचकर अपनी शान दिखाते हुए क्रो प्रकट करना। |
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तनत्राण :
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पुं०=तनुत्राण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनदिही :
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स्त्री०=तंदेही। |
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तनधर :
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वि० [हिं० तन+सं० धर] शरीरधारी। शरीरवाला। |
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तनना :
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अ० [हिं० तानना का अ० रूप] १. ताना जाना। २. किसी चीज का इस प्रकार खींचा जाना या ऐसी स्थिति में होना कि उसमें पडे हुए झोल, बल, सिकुड़ने आदि निकल जायँ। जैसे–रस्सी तनना। ३. किसी स्थान को आच्छाजित करने के लिए उसके ऊपर किसी चीज का खींचकर फैलाया जाना। जैसे–चँदोआ या चाँदनी तनना। ४. किसी रचना या रस्सियों आदि की सहायता से खींचकर खड़ी किया या बाँधा जाना। जैसे–खेमा तनना। ५. खिंचाव से युक्त होकर किसी एक पार्श्व में होना। जैसे–भौंहे तनना। ६. लाक्षणिक अर्थ में व्यक्ति का क्रोध या हठपूर्वक अपने पक्ष या बात पर अड़े रहना और किसी की ओर उन्मुख या प्रवृत्त न होना। ७. आघात करने के लिए किसी चीज का उठाया जाना। जैसे–दोनों ओर से लाठियाँ तन गईं। |
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तनपात :
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पुं०=तनुपात (मृत्यु)। |
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तनपोषक :
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वि० [हिं० तन+सं० पोषक] जो अपने ही तन या शरीर का ध्यान रखे अर्थात् स्वार्थी। |
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तनबाल :
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पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश। (महाभारत) २. उक्त देश का निवासी। |
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तनमय :
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वि०=तन्मय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनमात्रा :
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स्त्री० दे० ‘तन्मात्रा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनमानसा :
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स्त्री० [सं०?] ज्ञान की सात भूमिकाओं में तीसरी भूमिका। |
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तनय :
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पुं० [सं०√तन् (फैलाना)+कयन्] [स्त्री० तनया] १. पुत्र। बेटा। २. ज्योतिष में जन्म लग्न से पाँचवाँ स्थान जिसके आधार पर यह जाना जाता है कि कितने पुत्र या लड़के-बाले होंगे। |
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तनया :
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स्त्री० [सं० तनय+टाप्] १. पुत्री। बेटी। लड़की। २. पिण्वन नाम की लता। |
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तनराग :
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पुं=तनुराग। |
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तनरुह :
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पुं०=तनुरुह (रोआं)। |
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तनवाना :
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स० [हिं० ‘तानना’ का प्रे० रूप] किसी को कुछ तानने में प्रवृत्त करना। तानने का काम किसी और से कराना। |
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तनवाल :
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पुं० [देश०] वैश्यों की एक उपजाति। |
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तनसल :
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पुं० [देश०] स्फटिक पत्थर। बिल्लौर। |
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तनसीख :
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स्त्री० [अ०] १. नष्ट करना। मिटाना। २. निरर्थक रद्द या व्यर्थ करना। मिटाना। |
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तनसुख :
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पुं० [हिं० तन+सुख] एक प्रकार की फूलदार बढिया महीन मलमल। |
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तनहा :
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वि० [फा०] [भाव० तनहाई] (व्यक्ति) जिसके साथ और कोई व्यक्ति न हो। अव्य० बिना किसी संगी या साथी के। |
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तनहाई :
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स्त्री० [फा०] १. तनहा अर्थात् अकेले होने की अवस्था। २. एकान्त या निर्जन स्थान। |
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तना :
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पुं० [फा०] पेड़-पौधों का जमीन से ऊपर निकला हुआ वह मोटा भाग जिसके ऊपरी सिरे पर डालियाँ निकली होती है। धड़। अव्य० वि० दे० ‘तनु’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनाई :
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स्त्री० [हिं० तानना] तानने की क्रिया, भाव या मजदूरी। |
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तनाऊ :
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पुं०=तनाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनाकु :
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क्रि० वि०=तनिक। |
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तनाजा :
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पुं० [अ० तनाजः] १. दो० पक्षों में कुछ समय तक बराबर चलता रहनेवाला झगड़ा। २. वैर। शत्रुता। |
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तनाना :
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स० [हिं० तानना का प्रे०] कोई चीज किसी को तानने में प्रवृत्त करना। तनवाना। |
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तनाब :
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स्त्री० [अ० तिनाब] १. वह डोरी या रस्सी जिससे खेमे या तंबू के बाँस आदि खींचकर खूँटों से बाँधे जाते हैं। २. बाजीगरों का वह रस्सा जिसपर चलकर वे तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। ३. वह डोरी या रस्सी जिसपर धोबी कपड़े सुखाने के लिए टाँगते हैं। ४. डोरी। रस्सी। |
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तनाय :
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पुं०=तनाव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनाव :
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पुं० [हिं० तनना] १. तने अर्थात् कसे या खिचें हुए होने की अवस्था या भाव। २. राग-द्वेष आदि के कारण उत्पन्न होनेवाली वह स्थिति जिसमे दोनों पक्ष एक दूसरे की ओर प्रवृत्त नहीं होते। स्त्री० दे० ‘तनाब’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनासुख :
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पुं० [अ०] इस लोक में आत्मा का होनेवाला आवा गमन या बार-बार शरीर धारण। |
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तनि :
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अव्य० [सं० तनु] ओर। तरफ। पुं० [सं० तनु] शरीर। देह। उदाहरण–-वधिया तनि सरवरि वेस वधंती।–प्रिथीराज। क्रि० वि=तनिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनिक :
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वि० [सं० तनु=अल्प] १. जो अल्प मात्रा या मान में हो। जरा सा। थोडा। २. छोटा सा। अव्य० कुछ। जरा। टुक। जैसे–तनिक देर हो गई। |
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तनिका :
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स्त्री० [सं०√तन्(विस्तार)+इन्+कन्-टाप्, इत्व] किसी वस्त्र, पात्र आदि में लगी हुई वह डोरी जिससे कोई चीज कसकर बाँधी जाती है। तनी। बंद। |
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तनिमा(मन्) :
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स्त्री० [सं० तनु+इमानिच्] १. शारीरिक कृशता। दुबलापन। २. सुकुमारता। नजाकत। पुं० जिगर। यकृत। |
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तनिया :
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स्त्री० [सं० तनी] १. कोपीन। लँगोटी। २. काछा। जाँघिया। ३. चोली। ४. दे० तनी। |
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तनिष्ठ :
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वि० [सं० तनु+इष्ठन्] जो सारीरिक दृष्टि से दुबला हो। कृश। |
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तनिस :
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पुं० [सं० तृष या हिं० तिनका] पुआल। उदाहरण–-तनिस बिछा के जब हम सोथन गाती बाँध चार हाथ ओ।–लोकगीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनी :
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स्त्री० [सं० तनिका] १. कुरती, चोली, मिरजई आदि में लगी हुई वह डोरी जिससे पहनी हुई कुरती या चोली या मिरजई कसी जाती है। २. कोई चीज कसने या बाँधने के लिए किसी चीज में लगी हुई डोरी। जैसे–तकिये या थैली की तनी। ३. दे० तनिया। वि०–अव्य०=तनिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनीदार :
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वि० [हिं० तनी+फा० दार] जिसमें तनी या बंद लगे हों। |
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तनु :
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वि० [सं०√तन (विस्तार)+उन्] १. दुबला-पतला। कृश। २. अल्प। थोड़ा। ३. कोमल। सुकुमार। ४. अच्छा। बढ़िया। ५. तुच्छ। ६. छिछला। पुं० १. देह। शरीर। २. शरीर की खाल या चमड़ा। त्वचा। ३. ज्योतष में जन्म-कुंडली में का जन्म-स्थान। स्त्री० १. औरत। स्त्री। २. केंचुली। ३. योग में अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश इन चारों क्लेशों का एक भेद जिसमें चित्त में क्लेश की अवस्थिति तो होती है परसाधन या सामग्री आदि के कारण उसकी अनुभूति या परिणाम नहीं होता। क्रि० वि० [सं० तनु] ओर। तरफ। उदाहरण–-बिहंसे करना ऐन चितै जानकी लखन तनु।–तुलसी। |
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तनुक :
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क्रि० वि०=तनिक। पुं०=तनु। |
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तनु-कूप :
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पुं० [सं० ष० त०] त्वचा में होनेवाला सूक्ष्म छेद (जिसमें से पसीना आदि निकलता है। |
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तनुकेशी :
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स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] सुन्दर बालोंवाली स्त्री। |
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तनु-क्षीर :
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पुं० [सं० ब० स०] आमड़े का वृक्ष। |
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तनु-गृह :
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पुं० [सं०] अश्विनी नक्षत्र। |
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तनुच्छद :
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पुं० [सं० तनु√छद् (ढकना)+णिच्+घ,हृस्व] १.कवच। २.वस्त्र। |
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तनुच्छाय :
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पुं० [सं० ब० स०] बबूल का पेड़। |
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तनुज :
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पुं० [सं० तनु√जन् (पैदा होना)+ड] [स्त्री० तनुजा] १. बेटा। पुत्र। २. रोआँ। ३. जन्म-कुंडली में लग्न से पचलाँ स्थान जहाँ से पुत्र भाव देखा जाता है। |
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तनुजा :
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स्त्री० [सं० तनुज+टाप्] कन्या। पुत्री। बेटी। |
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तनुता :
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स्त्री० [सं० तनु+तल्-टाप्] १. तनु अर्थात् दुबले-पतले होने की अवस्था या भाव। २. सुकुमारता। ३. छोटाई। ४. तुच्छता। ५. अल्पता। ६. छिछलापन। |
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तनु-ताप :
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पुं० [ष०त०] १.शारीरिक ताप। २.मन को कष्ट देनेवाली बात०। दुःख। व्यथा। |
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तनुत्र :
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पुं० [सं० तनु√त्रै (रक्षा करना)+क]=तनुत्राण। |
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तनु-त्राण :
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पुं० [ष० त०] १. वह चीज जो शरीर की रक्षा करे। २. कवच। बकतर। |
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तनुत्राण :
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पुं०=तनुत्राण। |
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तनु-त्वच् :
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वि० [ब० स०] जिसकी त्वचा पतली हो। स्त्री० छोटी अरणी। |
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तनुधारी(रिन्) :
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वि० [सं० तनु√धृ (धारण करना)+णिनि] तनु अर्थात् शरीर धारण करनेवाला। शरीरधारी। |
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तनु-पत्र :
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पुं० [ब० स०] गोंदी का पेड़। इंगुदी। |
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तनु-पात :
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पुं० [ष० त०] शरीर का गिर अर्थात् मर जाना। मृत्यु। |
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तनु-प्रकाश :
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वि० [कर्म० स०] धुँधले या मंद प्रकाशवाला। |
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तनु-बीज :
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वि० [ब० स०] जिसके बीज छोटे हों। पुं० राजबेर। |
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तनुभव :
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पुं० [सं० तनु√भृ (होना)+अच्०] [स्त्री० तनुभवा] पुत्र। बेटा। |
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तनु-भूमि :
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स्त्री० [कर्म० स०] बौद्ध श्रावकों के जीवन की एक अवस्था। |
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तनुभृत :
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वि० [सं० तनु√भृ (धारण)+क्विप्] देहधारी। |
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तनु-मध्य :
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वि० [ब० स०] [स्त्री० तनुमध्या] पतली कमर वाला। |
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तनु-मध्या :
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स्त्री० [ब० स० टाप्] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक एक तगण और एक एक यगण होता है। |
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तनु-रस :
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पुं० [ष० त०] पसीना। स्वदे। |
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तनु-राग :
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पुं० [ब० स०] १. केसर, कस्तूरी, चंदन, कपूर आदि को मिलाकर बनाया हुआ एक सुंगधित उबटन। बटना। २. केसर, कस्तूरी, चंदन कपूर आदि सुगंधित द्रव्य। |
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तनुरुह :
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पुं० [सं० तनु√रुह (उगना)+क] १. रोआँ। २. पंख। पर। ३. पुत्र। बेटा। |
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तनुल :
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वि० [सं०√तन् (विस्तार)+उलच्] फैला या फैलाया हुआ। |
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तनुवात :
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पुं० [ब० स०]१. ऊँचे स्थानों पर की वह पतली हवा जिसमें श्वास लेना कठिन होता है। २. ऐसा स्थान जहाँ उक्त प्रकार की वायु हो। ३. जैनियों के अनुसार एक प्रकार का नरक। |
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तनुवार :
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पुं० [सं० तनु√वृ (ढकना)+अण्] कवच। |
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तनु-वीज :
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पुं०=तनुबीज। |
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तनु-व्रण :
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पुं० [ब० स०] वल्मीक रोग। फील-पाँव। |
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तनु-शिरा(रस्) :
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वि० [ब० स०] छोटे सिरवाला। पुं० एक प्रकार का छंद। |
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तनु-संचारिणी :
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स्त्री० [सं० तनु-सम√चर् (गति)+णिनि-ङीप्] १. युवा स्त्री। २. दस वर्ष की बालिका। |
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तनु-सर :
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पुं० [सं० तनु√सृ (गति)+अच्] पसीना। स्वेद। |
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तनु-ह्वद :
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पुं० [ष० त०] गुदा। |
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तनू :
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पुं० [सं०√तन् (विस्तार)+ऊ] १. शरीर। २. व्यक्ति। ३. शरीर का कोई अवयव। ४. पुत्र। बेटा। ५. प्रजापति। स्त्री० गाय। गौ। |
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तनूकरण :
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पुं० [सं० तनु+च्वि, दीर्घ√कृ+ल्युट-अन] [भू० कृ० तनूकृत] किसी चीज को जल में घोलकर या मिलाकर उसकी घनता, तीव्रता आदि कम करना। (डाइल्यूशन)। |
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तनूज :
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वि० [सं० तनू√जन् (पैदा होना)+ड] [स्त्री० तनूजा] तन से उत्पन्न। शरीर से उद्भूत। पुं० १. बेटा। पुत्र। २. पंख। पर। |
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तनूजा :
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स्त्री० [सं० तनूज+टाप्] बेटी। पुत्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनूताप :
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पुं०=तनुताप। |
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उपलब्ध नहीं |
तनूनप :
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पुं० [सं० तनु-ऊन, ष० त० तनून√पा (रक्षा)+क] घी। घृत। |
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तनूनपात्, तनूनपाद् :
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पुं० [सं० तनून√पत् (गिरना)+णिच्+क्विप्] १. चीते का वृक्ष। चीता। चित्रक। २. अग्नि। आग। ३. घी। घृत। ४. नवनीत। मक्खन। |
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समानार्थी शब्द-
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तनूपा :
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पुं० [सं० तनू√पा+क्विप्] जठराग्नि। |
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तनू-पान :
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पुं० [ष० त०] अंगरक्षक। |
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तनू-पृष्ठ :
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पुं० [ब० स०] एक तरह का सोमयज्ञ जिसमें सोमपान किया जाता था। |
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समानार्थी शब्द-
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तनूर :
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पुं०=तंदूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनूरूह :
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पुं० [सं० तनू√रुह(उगना)+क]=तनुरुह। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तने :
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अव्य० [सं० तन] की ओर। की तरफ। उदाहरण–-राम तने रंग राची...।-मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तनेना :
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वि० [हिं० तनना+एना(प्रत्यय)] [स्त्री० तनेनी] १. तना या खिंचा हुआ। २. टेढ़ा। तिरछा। ३.(व्यक्ति) जो तनकर क्रोधपूर्वक बातें करता हो। ४.रूष्ट। |
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समानार्थी शब्द-
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तनै :
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पुं० =तनय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य० =तने(की ओर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनैना :
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वि=तनेना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनैया :
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वि० [हिं० तानना+ऐया (प्रत्यय)] ताननेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० तनया] कन्या। बेटी। पुत्री। स्त्री०=तनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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तनैला :
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पुं० [देश०] एक तरह के सफेद रंग के सुगंधित फूलवाला छोटा वृक्ष। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनोआ :
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पुं० [हिं० तानना] १. वह कपड़ा जो छाया आदि के लिए ताना जाता है। २. चँदोआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनोज :
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वि० पुं०=तनूज। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनोरुह :
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पुं०=तनुरुह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तनोवा :
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पुं०=तनोआ। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्दुरुस्त :
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वि० [फा०]=तंदुरुस्त।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्दुरुस्ती :
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स्त्री०=तंदूरुस्ती। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्ना :
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पुं० [हिं० तानना] १. बुनाई करते समय लंबे बल में ताना हुआ सूत। २. वह जिससे कोई चीज तानी जाय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्नाना :
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अ० १.=तनना। २.=तनकना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्नि :
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स्त्री० [सं० तत्√नी (ले जाना)+डि (वा०)] १. पिठवन। २. कश्मीर की चन्द्र-कुल्या नदी का एक नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
तन्नी :
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स्त्री० [सं० तनिका, हिं० तनी] १. तनी विशेषतः वह डोरी जिससे तराजू की डंडी में पलड़ा लटकाया जाता है। २. लोहे की मैल खुरचने की एक तरह की अँकुसी। ३. वह रस्सी जिसकी सहायता से पाल चढ़ाया जाता है। ४. व्यापारी जहाज का एक अधिकारी जो व्यापार संबंधी कार्य करता है। पुं० दे० ‘तरनी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तन्मनस्क :
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वि० [सं० तत्-मनस्, ब० स० कप्] तन्मय। तल्लीन। |
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तन्मय :
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वि० [सं० तद्+मयट्] [भाव० तन्मयता] १. उस (पूर्वोक्त) से बना हुआ। २. जो दत्तचित होकर कोई काम कर रहा हो। किसी कार्य या व्यापार में खोया हुआ। मग्न। लवलीन। |
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तन्मयता :
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स्त्री० [सं० तन्मय+तल्-टाप्] तन्मय होने की अवस्था, गुण या भाव। |
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तन्मयासक्ति :
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स्त्री० [सं० तन्मयी-आसक्ति, कर्म० स०] भगवान के प्रति होनेवाला वह दिव्य प्रेम जिसमें मनुष्य अपनी सत्ता भूल जाता है। |
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तन्मात्र :
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वि० [सं० तद्+मात्रच्] बहुत थोड़ी मात्रा का। पुं० पंचभूतों का मूल सूक्ष्म रूप। |
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तन्मात्रा :
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स्त्री०=तन्मात्र। |
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तन्मूलक :
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वि० [सं० तद्-मूल, ब० स०, कप्] उस (पूर्वोक्त) से निकला हुआ। तज्जन्य। |
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तन्य :
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वि० [सं० तान्य] [भाव० तन्यता] १. जो खींचा या ताना जा सके। २.(पदार्थ) जो खींच, तान या पीटकर बढ़ाया या लंबा किया जा सके, और ऐसा करने पर भी बीच में से कहीं टूटे-फूटे नहीं। जैसे–धातुएँ तन्य होती है और उनके तार या पत्तर बनाये जा सकते हैं। (डक्टाइल)। |
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तन्यक :
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वि० तन्य। (दे०)। |
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तन्यता :
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स्त्री० [सं० तान्यता०] १. तन्य होने की अवस्था या भाव। २. वस्तुओं का वह गुण जिससे वे खींचने तानने या पीटने पर बिना बीच में से टूटे, बढ़कर लंबी हो सकती है। (डक्टिलिटी)। |
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तन्यतु :
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पुं० [सं०√तन् (फैलाना)+यतुच्] १. वायु। हवा। २. रात। रात्रि। ३. गर्जन। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा। |
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तन्वंग :
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वि० [सं० तनु-अंग, ब० स०] [स्त्री० तन्वंगी] सुकुमार अंगोवाला। कोमलांग। |
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तन्वंगी :
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स्त्री० [सं० तन्वंग+ङीष्] सुकुमार अंगोवाली स्त्री। |
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तन्वि :
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स्त्री० [सं०] १. चन्द्रकुल्या नदी का एक नाम जो कश्मीर में है। २. तन्वंगी। |
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तन्विनी :
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स्त्री०=तन्वंगी। |
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तन्वी :
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वि० [सं० तन्+ङीष्] दुबले-पतले शरीर या कोमल अंगोवाली। स्त्री० १. सुकुमार अंगोवाली स्त्री। २. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक-एक भगण, नगण और अंत में यगण होता है। |
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