शब्द का अर्थ
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तुरंग :
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वि० [सं० तुर√गम् (जाना)+ख, मुम्] जल्दी करनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त या मन जो बहुत जल्दी हर जगह पहुँच सकता है। ३. सात की संख्या। |
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तुरंगक :
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पुं० [सं० तुरंग√कै (शब्द करना)+क] बड़ी तोरी (फल)। |
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तुरंग-गौड़ :
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पुं० [सं० कर्म० स० ?] संगीत में गौड़ राग का एक भेद। |
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तुरंग-द्वेषिणी :
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स्त्री० [सं० तुरंग√द्विष् (द्वेष करना)+णिनि=ङीप्] भैंस। महिषी। |
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तुरंगप्रिय :
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पुं० [ष० त०] जौ। यव। |
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तुरंगम :
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वि० [सं० तुर√गम् (जाना) खच्, मुम्] जल्दी चलनेवाला। पुं० १. घोड़ा। २. चित्त। मन। ३. एक वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और दो गुरु होते हैं। |
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तुरंगमी(मिन्) :
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पुं० [सं० तुरङम+इनि] अश्वारोही। घुड़सवार। |
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तुरंग-वक्त्र :
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वि० [ब० स०] जिसका मुँह घोड़े के मुँह की तरह लंबा हो। पुं० किन्नर। |
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तुरंग-वदन :
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पुं० [ब० स०] किन्नर। |
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तुरंग-शाला :
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स्त्री० [ष० त०] घुड़सवार। अस्तबल। |
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तुरंगारि :
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पुं० [तुरंग-अरि, ष० त०] १. कनेर। करवीर। २. भैंसा। |
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तुरंगिका :
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स्त्री० [सं० तुरंग+ठन्-इक] देवदाली। घघरबेल। |
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तुरंगी :
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स्त्री० [सं० तुरंग+अच्-ङीष्] अश्वगंधा। असगंध। |
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