शब्द का अर्थ
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दंड :
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पुं० [सं०√दंड (दंड देना)+घञ्] १. बाँस, लकड़ी आदि का वह गोलाकार लंबा डंडा, जो प्रायः चलने के समय सहारे के लिए हाथ में रखा जाता अथवा किसी को मारने-पीटने के काम आता है। लाठी। सोंटा। २. उक्त आकार की कोई लंबी लकडी, जो कुछ चीजों में उन्हें चलाने, पकड़ने आदि के लिए लगी रहती है। डंडा। डाँड़ी। जैसे—तुला का दंड, ध्वजा या पताका का दंड, मथानी का दंड, हल में का दंड आदि। ३. उक्त प्रकार की वह पतली, लंबी लकड़ी जो संन्यासी सदा हाथ में रखते हैं। मुहावरा—दंड ग्रहण करना=संन्यास आश्रम ग्रहण करना या उसमें प्रवेश करना। ४. उक्त आकार-प्रकार की कोई पतली, लंबी चीज। जैसे—भुंज-दंड, मेरु-दंड। ५. जहाज या नाव का मस्तूल। ६. लंबाई की एक पुरानी नाप जो प्रायः चार हाथ की होती थी। ७. समय का एक मान जो ६॰ पलों का होता है। घड़ी। ८. वास्तुशास्त्र में, ऐसा आँगन जिसके उत्तर एवं पूर्व में कोठरियाँ हों। ९. ज्योतिष में, एक प्रकार का योग। १॰. एक प्रकार की कसरत, जो जमीन पर हाथों और पैरों के पंजो के बल उलटे लेटकर की जाती है और जिससे भुज-दंडों की शक्ति बढ़ती है। क्रि० प्र०—करना।—पेलना।—मारना।—लगाना। ११. अश्व। घोड़ा। १२. उत्पात, उपद्रव आदि का दमन या शमन। शासन। १३. कोई अनुचित काम या अपराध करनेवालों को बदले में दी जानेवाली सजा। (पनिशमेन्ट) १४. सेना, जो प्राचीन काल में अपराधियों को दंड देने के उद्देश्य से रखी जाती थी। १५. अर्थ-दंड। जुरमाना। १६. कोई अपराध, प्रतिज्ञा-भंग अथवा किसी का कोई अपकार या हानि करने के बदले में दिया या लिया जानेवाला धन। हरजाना। (पैनेल्टी)। क्रि० प्र०—पड़ना।—भोगना।—लगना।—सहना। मुहावरा—(किसी पर) दंड डालना=यह कहना या निश्चित करना कि अमुक व्यक्ति दंड के रूप में इतना धन दे। दंड भरना=किसी के अपकार या हानि के बदले में अथवा प्रतिकार-स्वरूप कुछ धन देना। १७. यमराज जो मरने पर प्राणियों को दंड या सजा देते हैं। १८. विष्णु। १९. शिव। २॰. कुबेर के एक पुत्र का नाम। २१. इक्ष्वाकु के सौ पुत्रों में से एक। २२. दे० ‘दंडवत्’। २३. दे० ‘दंड-व्यूह’। |
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दंड-कंदक :
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पुं० [सं० ब० स०, कप्] सेमल का मुसला। धरणी-कंद। |
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दंडक :
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वि० [सं०√दंड+णिच्+ण्वुल्—अक] दंड देने या दंडित करनेवाला। पुं० १. डंडा। सोंटा २. दंड देनेवाला व्यक्ति। ३. राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र जिनके मान पर दंडकारण्य का नामकरण हुआ था। ४. छंदशास्त्र के अनुसार (क) ऐसा मात्रिक छंद, जिसके प्रत्येक चरण में ३२ से अधिक मात्राएँ हों अथवा (ख) ऐसा वर्णिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २६ से अधिक वर्ण हों। ५. एक प्रकार का वात रोग जिसमें हाथ, पैर, पीठ, कमर आदि अंग स्तब्ध होकर ऐंठ-से जाते हैं। ६. संगीत में शुद्ध राग का एक प्रकार या भेद। ७. दे० ‘दंडकारण्य’। |
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दंडक-ज्वर :
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पुं० [सं०] मच्छरों के दंश से फैलनेवाला एक प्रकार का ज्वर जिसमें सारे शरीर में पीडा होती है और शरीर तथा आँखे लाल हो जाती हैं। (डेंग्यु) |
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दंडकला :
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स्त्री० [सं०] दुर्मिल छंद का एक भेद, जिसके अंत में एक गुरु अथवा सगण होता है। |
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दंडका :
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स्त्री० [सं० दण्यक+टाप्]=दंडकारण्य। (दे०) |
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दंडकारण्य :
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पुं० [सं० दण्डक-अरण्य मध्य० स०] एक प्रसिद्ध बहुत बड़ा वन, जो विंध्यपर्वत और गोदावरी नदी के बीच में पड़ता है। सीता का हरण रावण ने इसी वन में किया था। आज-कल इसका कुछ अंश साफ करके मनुष्यों के बसने योग्य किया जाने लगा है। |
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दंडकी :
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स्त्री० [सं० दण्डक+ङीष्] १. छोटा डंडा। २. छड़ी। |
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दंडगौरी :
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स्त्री० [सं०] एक अप्सरा। |
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दंडघ्न :
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वि० [सं० दण्ड√हन् (चोट पहुँचाना)+टक्] १. डंडे से मारनेवाला। २. दंड या सजा न मानने या उसकी परवाह न करनेवाला। |
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दंडचारी (रिन्) :
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पुं० [सं० दण्ड√चर् (घूमना)+णिनि] सेना का अध्यक्ष। सेनापति। (कौ०)। |
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दंड-ढक्का :
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पुं० [मध्य० स०] एक तरह का ढोल या नगाड़ा। |
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दंड-ताम्र :
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स्त्री० [मध्य० स०] जलतरंग बाजा, जिसमें पहले ताँबे की कटोरियाँ काम में लाई जाती थीं। |
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दंड-दास :
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पुं० [मध्य० स०] वह व्यक्ति जो अर्थ-दंड न दे सकने पर उसके बदले में किसी की दासता करता हो। |
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दंड-धर :
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वि० [ष० त०] १. हाथ में डंडा या लाठी रखनेवाला। २. दंड धारण करनेवाला। पुं० १. यमराज। २. शासक। हाकिम। ३. संन्यासी। ४. प्राचीन भारत में एक प्रकार के राजपुरुष जो शासन आदि की व्यवस्था में सहायता देते थे। ५. वह, जो लाठियों से मार-पीट या लड़ाई-झगड़ा करते हों। लठैत। लठबंद। |
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दंडधारी (रिन्) :
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वि० [सं० दंड√धृ (धारण करना)+णिनि] डंडा रखनेवाला। पुं०=दंडधर। |
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दंडन :
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पुं० [सं०√दण्ड्+ल्युट्—अन] [वि० दंडनीय, दंडित, दंड्य] १. दंड देने अथवा किसी को दंडित करने की क्रिया या भाव। दंड देना। २. शासन। |
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दंडना :
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स० [सं० दंडन] किसी को दंड देना या किसी पर दंड लगाना। दंडित करना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दंड-नायक :
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पुं० [ष० त०] १. वह शासनिक अधिकारी जो प्राचीन भारत में अपराधियों को दंड देने तथा राज्य में सुव्यवस्था तथा शान्ति बनाये रखने का काम करता था। २. शासक। हाकिम। ३. सेनापति। ४. सूर्य के एक अनुचर का नाम। |
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दंड-नीति :
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स्त्री० [ष० त०] १. अपराधी को दंडित करने की नीति। २. दंड देकर किसी को वश में लाने या रखने की नीति। ३. दे० ‘दंड-विधान’। |
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दंडनीय :
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वि० [सं०√दण्ड्+अनीयर्] १. (व्यक्ति) जिसे दंड दिया जाने को हो। २. जिसे दंड दिया जा सकता हो। दंडित किये जाने के योग्य। ३. (कार्य) जिसे करने पर दंड मिल सकता हो। जैसे—दंडनीय अपराध। |
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दंड-पांशुल :
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पुं० [तृ० त०] द्वारपाल। |
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दंड-पाणि :
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वि० [ब० स०] १. जिसके हाथ में दंड या डंडा हो। पुं० १. यमराज। २. काशी में भैरव की एक मूर्ति। ३. दंडनायक। (दे०) |
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दंड-पात :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का सन्निपात जिसमें रोगी को नींद नहीं आती और वह पागलों की तरह इधर-उधर दौड़ता-फिरता है। |
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दंड-पारुष्य :
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पुं० [ष० त०] १. उचित से अधिक और बहुत ही कठोर दंड या सजा। विशेष—प्राचीनों ने इसे भी राजाओं के सात मुख्य दुर्व्यसनों में माना था। २. आक्रमण। चढ़ाई। |
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दंडपाल :
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पुं० [सं० दण्ड√पाल् (रक्षा करना)+णिच्+अण्, उप० स०] १. न्यायाधीश। २. वह पहरेदार, जो हाथ में डंडा लेकर घूमता हो। ३. ड्योढ़ीदार। द्वारपाल। ४. एक प्रकार की मछली। |
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दंडपालक :
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पुं० [दण्डपाल+कन्]=दंडपाल। |
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दंडपाशक :
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पुं० [ब० स०, कण्] १. दंड देनेवाला अधिकारी या कर्मचारी। २. फाँसी देनेवाला कर्मचारी। जल्लाद। |
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दंड-प्रणाम :
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पुं० [मध्य० स०] भूमि में डंडे के समान पड़कर प्रणाम करने की मुद्रा। दंडवत्। |
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दंडबालधि :
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पुं० [ब० स०] हाथी। |
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दंडभृत :
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वि० [सं० दण्ड√भृ (धारण करना)+क्विप्] डंडा रखने, चलाने या घुमानेवाला। पुं० कुम्हार। कुंभकार। |
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दंड-मत्स्य :
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पुं० [उपमि० स०] एक तरह की मछली। बाम मछली। |
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दंड-माथ :
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पुं० [मध्य० स०] मुख्य और सीधा रास्ता। |
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दंडमान :
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वि० [सं० दंड+हिं० मान (प्रत्य०)] दे० दंडनीय। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दंड-मानव :
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पुं० [मध्य० स०] १. वह व्यक्ति जिसे अधिक या बराबर दंड दिया जाता हो। २. बालक। |
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दंड-मुख :
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पुं० [ब० स०] सेनापति। |
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दंड-मुद्रा :
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स्त्री० [मध्य० स०] १. तंत्र की एक मुद्रा जिसमें हाथ के बीच की उँगली दंड के समान खड़ी रहती है और शेष उँगलियाँ बँधी या मुँदी रहती हैं। २. साधुओं के दो चिन्ह्र—दंड और मुद्रा। |
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दंड-यात्रा :
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स्त्री० [च० त०] १. सेना की वह चढ़ाई, जो किसी देश या राजा को दंड देने के उद्देश्य से हो। २. दिग्विजय के लिए होनेवाली यात्रा। ३. किसी प्रकार का सैनिक आक्रमण या चढ़ाई। ४. वरयात्रा। बरात। |
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दंडयाम :
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पुं० [सं० दण्ड√यम् (नियंत्रण करना)+अण, उप० स०] १. यम। २. अगस्त्य मुनि। ३. दिन। दिवस। |
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दंडरी :
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स्त्री० [सं० दण्ड√रा (देना)+क—ङीष्] एक तरह का ककड़ी की जाति का फल। डँगरी फल। |
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दंडवत् :
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पुं० [सं० दण्ड+वति] दंड के समान सीधे होकर तथा पृथ्वी पर औंधे लेटकर किया जानेवाला नमस्कार। साष्टांग प्रणाम। वि० डंडे के समान, खड़ा या सीधा। |
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दंड-वध :
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पुं० [तृ० त०] वध करने या किये जाने का दंड। प्राण-दंड। मृत्यु-दंड। |
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दंडवासी (सिन्) :
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पुं० [सं० दण्ड√वस् (बसना)+णिनि] १. द्वारपाल। दरबान। २. गाँव का हाकिम या मुखिया। |
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दंडवाही (हिन्) :
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पुं० [सं० दण्ड√वह् (वहन करना)+णिनि] वह प्राचीन कर्मचारी जो हाथ में डंडा रखकर शान्ति की व्यवस्था करता था (आज-कल के पुलिस-सिपाही की तरह का)। |
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दंड-विज्ञान :
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पुं० [ष० त०] समाज शास्त्र की वह शाखा, जिसमें इस बात का विचार होता है कि अपराधियों पर दंड का कैसा उल्टा परिणाम होता है और अपराधियों को दंड न देकर किस प्रकार सहानुभूति-पूर्वक अन्य उपायों से सुधारा जा सकता है। (पेनॉलोजी) |
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दंड-विधान :
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पुं० [ष० त०] १. दंड देने के लिए किया जानेवाला विधान या व्यवस्था। २. दे० ‘दंडविधि’। |
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दंड-विधि :
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स्त्री० [ष० त०] वह विधि या विधान जिसमें विभिन्न अपराधों तथा उनके अनुरूप दंडों का अभिदेश होता है। |
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दंड-वृक्ष :
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पुं० [मध्य० स०] सेंहुड़ या थूहर का पेड़, जिसकी डालियाँ डंडे की तरह मोटी और सीधी होती हैं। |
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दंड-व्यूह :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का प्राचीन व्यूह-रचना, जो प्रायः डंडे के आकार की होती थी और जिसमें आगे बलाध्यक्ष, बीच में राजा, पीछे सेनापित, दोनों ओर हाथी, हाथियों के बगल में घोड़े और घोड़ों के बगल में पैदल सिपाही रहते थे। |
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दंड-शास्त्र :
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पुं० [ष० त०] १. वह शास्त्र, जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि किसे अथवा कौन सा अपराध करने पर कितना अथवा क्या दंड दिया जाना चाहिए। २. दे० ‘दंड-विधान’। |
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दंड-संधि :
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स्त्री० [मध्य० स०] लड़ाई में सेना का सामान लेकर की जानेवाली संधि। |
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दंड-संहिता :
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स्त्री० [ष० त०] वह ग्रंथ जिसमें किसी देश में अपराधों के लिए दिये जानेवाले दंडों का विधान हो। दंड-विधि। (पेनलकोड) |
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दंड-स्थान :
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पुं० [ष० त०] १. वह स्थान जहाँ लोगों को दंड दिया जाता हो। २. वह जनपद या राष्ट्र जिस पर मुख्यतः सेना के बल पर ही शासन होता हो। (कौ०) |
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दंड-हस्त :
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पुं० [ब० स०] तगर का फूल। वि० जिसके हाथ में डंडा हो। |
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दंडा :
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पुं०=डंडा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दंडाकरन :
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पुं०=दंडकारण्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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दंडाक्ष :
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पुं० [सं०] चंपा नदी के किनारे का एक प्राचीन तीर्थ। (महाभारत)। |
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दंडाजिन :
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पुं० [दण्ड-अजिन, द्व० स०] १. वह दण्ड और मृगचर्म जो साधु-सन्यासी अपने पास रखते हैं। २. व्यर्थ का आडंबर। ३. लोगों को धोखा देने के लिए धारण किया जानेवाला वेष। ४. एक प्रकार का बहुत सूक्ष्म उद्भिज जो तृणाणु से कुछ बड़ा होता है और जिसका प्रजनन-प्रकार भी उससे कुछ भिन्न होता है। |
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दंडात्मक :
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वि० [दण्ड-आत्मन्, ब० स०, कप्] दंड-संबंधी। २. दंड के रूप में होनेवाला। |
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दंडादंडि :
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स्त्री० [दण्ड-दण्ड, ब०स० (इच् समा० पूर्वपद दीर्घ)] डंडों की मार-पीट। लट्ठबाजी। |
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समानार्थी शब्द-
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दंडादेश :
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पुं० [दण्ड-आदेश, ष०त०] किसी को उसके अपराध के फलस्वरूप मिलनेवाले दंड की दी जानेवाली सूचना। |
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दंडादेशित :
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भू० कृ० [सं० दण्डादेश+इतच्] जिसे दंडादेश दिया जा चुका या मिल चुका हो। |
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समानार्थी शब्द-
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दंडाधिकारी (रिन्) :
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पुं० [दण्ड-अधिकारिन्, ष० त०] वह राजकीय अधिकारी, जिसे आपराधिक अभियोगों का विचार करने और अपराधियों को दंड देने का अधिकार होता है। (मजिस्ट्रेट)। |
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समानार्थी शब्द-
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दंडाधिप :
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पुं० [दण्ड-अधिप, ष० त०] कोई स्थानीय प्रधान शासक। |
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समानार्थी शब्द-
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दंडापूपन्याय :
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पुं० [दण्ड-अपूप, मध्य० स० दण्डापूप-न्याय मध्य० स०?] एक प्रकार का न्याय जिसके अनुसार दो परस्पर संबंधित बातों में से एक के सिद्ध होने पर दूसरे की सिद्धि उसी प्रकार निश्चित मान ली जाती है, जिस प्रकार डंडे के चूहे द्वारा खा लेने पर उसमें बँधे हुए पूए का भी चूहे द्वारा खा लिया जाना निश्चित होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडायमान :
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वि० [सं० दण्ड+क्यङ्+शानच्] जो डंडे की तरह सीधा खड़ा हो। क्रि० प्र०—होना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडार :
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पुं० [सं० दण्ड√ऋ (जाना)+अण्] १. रथ। २. नाव। ३. कुम्हार का चाक। ४. धनुष। ५. ऐसा हाथी, जिसके मस्तक से मद बह रहा हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडार्ह :
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वि० [सं० दण्ड√अर्ह्+अण्] जिसे दण्ड दिया जाना उचित हो। दंड पाने योग्य। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडालय :
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पुं० [सं० दण्ड-आलय, ष० त०] १. न्यायालय, जहाँ अपराधियों के लिए दंड का विधान होता है। २. वह स्थान जहाँ अपराधियों को शारीरिक दंड दिया जाता है। ३. दंडकला छंद का दूसरा नाम। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडाश्रम :
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पुं० [सं० दण्ड-आश्रम, मध्य० स०] वह आश्रम या स्थिति, जिसमें तीर्थयात्री हाथ में डंडा लेकर पैदल चलते हुए तीर्थों की ओर जाते थे, अथवा अब भी कहीं-कहीं जाते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडाश्रमी (मिन्) :
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पुं० [सं० दण्डाश्रम+इनि] संन्यासी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडाहत :
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वि० [दण्ड-आहत, तृ० त०] डंडे से मारा हुआ। पुं० छाछ। मट्ठा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडिका :
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स्त्री० [सं० दण्डक+ताप्, इत्व] बीस अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसके प्रत्येक चरण में एक रगण के उपरान्त एक जगण, इस प्रकार के गणों के जोड़े तीन बार आते हैं और अंत में गुरु-लघु होता है। इसे वृत्र और गड़का भी कहते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडित :
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भू० कृ० [सं०√दण्ड (दण्ड देना)+क्त] जिसे किसी प्रकार का दंड दिया गया हो। दंडप्राप्त। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडिनी :
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स्त्री० [सं० दण्डिन्+ङीष्] क्षाग। दंडोत्पला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडी (डिन्) :
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पुं० [सं० दण्ड+इनि] १. दंड धारण करनेवाला व्यक्ति। २. यमराज। ३. राजा। ४. द्वारपाल। ५. दंड और कमंडलु धारण करनेवाला संन्यासी। ६. सूर्य के एक पार्श्वचर। ७. जिनदेव। ८. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। ९. दाने का पौधा। १॰. मंजुश्री। ११. शिव। १२. दशकुमार चरित के रचयिता एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडोत्पल :
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पुं० [दण्ड-उत्पल० मध्य० स०] एक प्रकार का पौधा जिसे गूमा, कुकरौंधा, सहदेया भी कहते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडोत्पला :
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स्त्री० [सं० दण्डोत्पल+टाप्]=दंडोत्पल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंडोपनत :
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वि० [दण्ड-उपनत, तृ० त०] (राजा या शासक) जो पराजित या परास्त हो चुका हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दंड्य :
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वि० [सं०√दण्ड+ण्यत्] दंड पाने के योग्य। दंडनीय। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |