शब्द का अर्थ
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नसाखोर :
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पुं० [फा० नश्शः+खोर] [भाव० नशाखोरी] वह जो किसी मादक पदार्थ का सेवन करता हो। |
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नसंक :
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वि०=निःशंक। |
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नस :
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स्त्री० [सं० स्नायु] १. शरीर-शास्त्र की परिभाषा में, शरीर के अंदर का वह तंतु-जाल जिसकी सहायता से मांसपेशियाँ आपस में भी और हड्डियों के साथ भी बँधी या सटी रहती हैं। २. साधारण बोलचाल में, शरीर के अंदर की कोई रक्त-वाहिनी नली या नाड़ी। मुहा०–नस चढ़ना=खिंचाव, तनाव, दबाव आदि के कारण किसी नस का अपने स्थान से कुछ इधर-उधर हो जाना, जिससे कुछ पीड़ा और कभी-कभी कुछ सूजन भी होती है। (किसी की) नस ढीली होना=(क) अधिक परिश्रम करने के कारण शरीर इस प्रकार शिथिल होना कि मन में कुछ उत्साह या उमंग बाकी न रह जाय। (ख) किसी के द्वारा दंडित या पीड़ित होने पर अथवा संकट की स्थिति में पड़ने पर ओज, तेज आदि का ऐसा ह्रास होना कि मनुष्य निराश और हतोत्साह हो जाय। जैसे–इस मुकदमे में उनकी नस ढीली हो गई है। नस नस फड़क उठना=कोई अच्छी चीज या बात देख या सुनकर सारे शरीर में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाना। नस पर नस चढ़ना=दे० ऊपर ‘नस-चढ़ना’। नस भड़कना=(क) दे० ऊपर ‘नस-चढ़ना’। (ख) उन्मत्त या पागल हो जाना (जो मस्तिष्क की किसी नस के विकृत होने का परिणाम माना जाता है)। पद–घोड़ा नस-(दे० स्वतन्त्र पद) नस नस में=सारे शरीर और उसके सब अंगों तथा उपांगों में। जैसे–पाजीपन तो उसकी नस नस में भरा है। ३. पुरुष या स्त्री की जननेंद्रिय। लिंग या भग। मुहा०–नस ढीली पड़ना या होना=काम-वासना, संभोग-शक्ति आदि का अभाव या ह्रास होना। ४. पत्तों आदि में चारों ओर फैले हुए वे मोटे तन्तु या रेशे जो उसके तल पर उभरे हुए दिखाई देते हैं। पुं०=नसवार या नस्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [अ०] १. कुरान की वह सूक्ति जिसका आशय स्पष्ट हो। २. ऐसी बात जिससे किसी प्रकार का भ्रम या संदेह न होता हो। |
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नस-कट :
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वि० [हिं० नस+काटना] १. नस या नसें काटनेवाला। २. जिससे नस कटती हो। पद–नस-कट खाट=ऐसी छोटी खाट जिससे एड़ी के ऊपर की नस में रगड़ लगे। |
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नस-कटा :
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पुं० [हिं० नस+काटना] १. जिसकी नस अर्थात् लिंगेंद्रिय काट ली गई हो। बखोजा। २. नपुंसक। हीजड़ा। |
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नस-तरंग :
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पुं० [हिं० नस+तरंग] पुरानी चाल का शहनाई की तरह का एक बाजा। |
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नसतालीक :
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वि०, पुं०=नस्तालीक। |
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नसना :
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अ० [सं० नशन] १. नष्ट होना। बरबाद होना। २. खराब होना। बिगड़ना। अ० [हिं० नटना] भागना। (पश्चिम)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नस-फाड़ :
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पुं० [हिं० नस+फाड़ना] हाथियों के पैर सूजने का एक रोग। |
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नसब :
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पुं० [अ०] १. कुल। खानदान। वंश। २. वंशावली। |
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नसर :
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स्त्री० [अ० नस्र] गद्य। |
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नसरी :
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स्त्री० [?] १. एक तरह की मधुमक्खी। २. उक्त मक्खी के छत्ते का मोम। |
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नसल :
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स्त्री० [अ० नस्ल] १. वंश। २. संतति। |
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नसवार :
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स्त्री० [हिं० नास+वार (प्रत्य०)] तमाकू के पत्तों की बुकनी जो प्रायः सूँघी जाती है। सूँघनी। |
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नसहा :
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वि० [हिं० नस+हा (प्रत्य०)] जिसमें नसें हों। नसोंवाला। |
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नसा :
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स्त्री० [सं०] नासिका। नाक। पुं०=नशा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नसाना :
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स० [सं० नाशन] १. नष्ट करना। २. खराब करना। बिगाड़ना। अ० १. नष्ट होना। २. खराब होना। बिगड़ना। स० [हिं० नासना] १. दूर करना या हटाना। २. भागना। |
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नसावन :
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स०, अ०=नसाना। |
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नसी :
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स्त्री० [?] १. हल की कुसी या फार की नोक। २. हल। पद–नसी-पूजा (दे०)। |
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नसीठ :
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पुं० [देश०] बुरा शकुन। असगुन। |
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नसीत :
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स्त्री०=नसीहत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नसीनी :
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स्त्री०=निसेनी (सीढ़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नसी-पूजा :
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स्त्री० [हिं० नसी+सं० पूजा] हल की वह पूजा जो खेत में बीज बोने के उपरांत की जाती है। |
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नसीब :
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पुं० [अ०] १. भाग्य। प्रारब्ध। किस्मत। तकदीर। २. हिस्सा। मुहा०—नसीब आजमाना=भाग्य की परीक्षा के भरोसे कोई काम करना। नसीब खुलना, चमकना, या सीधा होना=भाग्य का उदय होना। किस्मत चमकना। नसीब टेढ़ा होना=बुरे दिन आना। नसीब पलटना=भाग्य की स्थिति बदलना। वि० अच्छे भाग्य के कारण मिला हुआ। सौभाग्य से प्राप्त। (प्रायः नहिक वाक्यों में प्रयुक्त) जैसे–भला ऐसा मकान हमें कहाँ नसीब होगा। |
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नसीब-जला :
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वि० [अ० नसीब+हिं० जलना] [स्त्री० नसीब-जली] अभागा। |
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नसीबवर :
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वि० [अ०] भाग्यवान्। खुशकिस्मत। |
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नसीबा :
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पुं० [अ० नसीबः] नसीब। भाग्य। |
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नसीम :
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स्त्री० [अ०] १. वह जो दूसरों की सहायता करता हो। २. ईश्वर। |
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नसीला :
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वि० [स्त्री० नसीली] १.=नशीला। २.=नसहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नसीहत :
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स्त्री० [अ०] १. अच्छी सम्मति। सत्परामर्श। २. सदुपदेश। ३. ऐसा दंड जिससे आगे के लिए कोई अच्छी शिक्षा मिलती हो ४. उक्त दंड के फलस्वरूप होनेवाला ज्ञान या मिलनेवाली शिक्षा। क्रि० प्र०–देना।–पाना।–मिलना। |
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नसीहा :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का हलका हल जिससे नरम जमीन जोती जाती है। |
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नसूड़िया :
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वि० [हिं० नासूर+इया (प्रत्य०)] १. नासूर संबंधी। २. बहुत ही उग्र और भीषण। ३. अमांगलिक। ४. जिसकी उपस्थिति या संपर्क से काम बिगड़ जाता हो। जैसे–नसूड़िया हाथ मत लगाओ। |
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नसूर :
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पुं०=नासूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नसेनी :
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स्त्री०=निसेनी (सीढ़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नस्त :
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पुं० [सं०√नस् (टेढ़ा होना)+क्त] १. नाक। २. नसवार। सुँघनी। |
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नस्तक :
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पुं० [सं० नस्त+कन्] १. पशुओं की नाक में किया हुआ छेद जिसमें रस्सी डाली जाती है। २. नाक में का छेद। |
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नस्त-करण :
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पुं० [ष० त०] नाक में दवा डालने का एक प्राचीन उपकरण। |
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नस्तन :
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पुं० [फा०] १. सेवती (सफेद गुलाब) का पौधा और उसका फूल। २. पुरानी चाल का एक प्रकार का कपड़ा। |
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नस्ता :
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पुं० [सं० नस्त+टाप्] नस्तक (दे०)। |
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नस्तालीक :
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वि० [अ० नस्तऽलीक ] जिसकी चाल-ढाल या रूप-रंग बहुत आकर्षक तथा सुन्दर हो। पुं० अरबी और फारसी लिपि लिखने का वह ढंग या प्रकार जिसमें अक्षर बहुत ही साफ सुडौल और सुपाठ्य रूप में लिखे जाते हैं। (उर्दू पुस्तकों की छपाई इसी लिपि में होती है)। |
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नस्तित :
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वि० [सं० नस्त+इतच्] १. (पशु) जिसे नाथ पहनाया गया हो। २. नत्थी में लगाया हुआ। (फाइल्ड) पुं० एक तरह का बैल। |
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नस्य :
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पुं० [सं० नासिका+यत्, नस् आदेश ] १. सुँघनी। नसवार। नास। २. वह औषधि जिसे नाक के रास्ते दिमाग मे चढ़ाया जाता है। ३.बैलों की नाक में बाँधी जानेवाली रस्सी। नाथ। |
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नस्या :
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स्त्री० [सं० नस्य+टाप्] १. नाक। २. नाक का छेद। नथना। |
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नस्याधार :
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पुं० [सं० नस्य-आधार, ष० त०] सुँघनी रखे का पात्र। नासदानी। |
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नस्ल :
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स्त्री० दे० ‘नसल’। |
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नस्वर :
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वि०=नश्वर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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