शब्द का अर्थ
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ने :
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विभ० [सं० एन०] १. हिन्दी में,सकर्मक भूतकालिक क्रिया के कर्ता के साथ लगनेवाली एक विभक्ति। जैसे-राम ने खाया,कृष्ण ने मारा। २. गुजराती तथा राजस्थानी में कर्म तथा संप्रदाय कारकों की विभक्ति। ‘को’ के स्थान पर प्रयुक्त। |
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नेअमत :
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स्त्री० [अ०]=नियामत (देन)। |
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नेईं,नेई :
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स्त्री०=नींव। |
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नेउछावरि :
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स्त्री०=निछावर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेउतना :
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स० [हिं० न्योता] निमंत्रण देना। बुलाना। |
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नेउतहरि(री) :
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वि० [हिं० न्योता] १. जिसे न्योता (निमंत्रण) दिया गया हो। निमंत्रित। २. (वह) जो निमंत्रण पर आया हो। |
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नेउता :
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पुं० १.=न्योता (निमंत्रण) २.नौरता (त्योहार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेउर :
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पुं० [सं० नुपुर] १. पैंजनी। २. घुँघरु उदा०–सूँधा वास ऊनै नेउर सद।–प्रिथीराज। |
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नेउला :
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पुं०=नेवला। |
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नेक :
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वि० [सं० निक्त(=नीका,अच्छा) से फा०] १. अच्छा। भला। २. उत्तम। श्रेष्ठ। जैसे-नेक चलन। ३. शिष्ट। सज्जन। सदाचारी। जैसे-नेक आदमी। ४. मांगलिक। शुभ। जैसे-नेक सायत। ५. जिसमें केवल उपकार या भलाई हो। सद्। जैसे-नेक सलाह। वि० [हिं० न+एक] जरा-सा। थोड़ा-सा। अव्य० किंचित। कुछ। जरा। उदा०–नेकु हँसौंही बानि,तजि लखौ परत मुख नीठि।–बिहारी। |
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नेक-चलन :
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वि० [फा० नेक+हिं० चलन] [भाव० नेक-चलनी] जिसका आचरण उत्तम हो। |
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नेकचलनी :
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स्त्री० [हिं० नेक-चलन+ई(प्रत्य०)] अच्छा आचरण। |
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नेक-नाम :
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वि० [फा०] [भाव० नेकनामी] जिसकी किसी अच्छे काम या बात के लिए प्रसिद्धि हो। सुख्यात। |
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नेकनामी :
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स्त्री० [फा०] नेकनाम होने की अवस्था या भाव। सुख्याति। |
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नेक-नीयत :
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वि० [फा० नेक+अ० नीयत] [भाव० नीकनीयता] १. जिसकी नीयत (उद्देश्य,विचार या संकल्प) अच्छी हो। सदाशय। २. ईमानदार और सच्चा। |
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नेक-नीयती :
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स्त्री० [फा०+अ०] १. नेक-नीयत होने की अवस्था या भाव। सदाशयता। २. ईमानदारी और सचाई। |
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नेक-बख्त :
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वि०[फा०] [भाव० नेक-बख्ती] १.भाग्यवान। सौभाग्यशाली। २.सुशील। ३.भोला-भाला। |
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नेक-बख्ती :
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स्त्री० [फा०] १. अच्छा भाग्य। सौभाग्य। २. सुशीलता। ३. भलमंसत। |
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नेकरी :
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स्त्री० [?] समुद्र की लहर का थपेड़ा। हाँक (लश०)। |
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नेकी :
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स्त्री० [फा०] १. नेक होने की अवस्था या भाव। २. अच्छाई। भलाई। ३. शिष्टता और सौजन्य। सदाशयता। ४. दूसरे के साथ किया जानेवाला नेक कार्य अर्थात् किसी के उपकार या हित का काम। परोपकार। पद-नेकी और पूछ पूछ=किसी का उपकार करने के लिए उससे पूछने की क्या आवश्यकता है किसी का उपकार उसके कुछ कहे बिना ही करना चाहिए। नेकी बदी=(क) भलाई और बुराई। (ख) पाप पुण्य। (ग) शुभ और अशुभ घटनाएँ। |
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नेकु :
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अव्य० [हिं० न+एक] जरा। थोड़ा सा। उदा०–जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।–घनानंद। |
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नेख :
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पुं० [?] शस्त्र। हथियार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेग :
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पुं०[सं० नैयमिक] १. मांगलिक और शुभ अवसरों पर संबंधियों नौकरों-चाकरों तथा अन्य आश्रितों (जैसे-नाई,धोबी,चमार आदि) को कुछ धन आदि देने की प्रथा। २. इस प्रकार दिया जानेवाला धन या वस्तु। ३. उक्त के आधार पर किसी प्रकार का परम्परागत अधिकार या स्वत्व। दस्तूर। ४. कोई शुभ कार्य। जैसे-सौ रुपए खर्च करके तुमने कोई नेग तो किया नहीं। ५. अनुग्रह। कृपा। पुं० [सं० निकट] १. निकटता। सामीप्य। २. संबंध। संपर्क। मुहा०–किसी के नेग लगना=(क) संबंध या संपर्क में आना। (ख) किसी में लीन होना। समाना। (किसी चीज या बात का) नेग लगना=सार्थक या सफल होना। जैसे-चलो,ये रुपए तो नेग लगे,अर्थात् इनका व्यय होना सफल हुआ। |
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नेग-चार :
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पुं० [हिं० नेक+सं० चार] १. मांगलिक अवसरों पर होनेवाले सामाजिक उपचार, क्रियाएँ विधान आदि। २. उक्त अवसरों पर नेग के रूप में लोगों को थोड़ा-थोड़ा धन देने की क्रिया या भाव। ३. दे० ‘नेग जोग’। |
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नेग-जोग :
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पुं० [हिं० नेग+अनु० जोग] १. शुभ अवसरों पर संबंधियों तथा काम करनेवालों को कुछ धन दिये जाने की प्रथा। २. ऐसा मांगलिक या शुभ अवसर जिस पर लोगों को नेग देने की प्रथा हो। |
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नेगटी :
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पुं० [हिं० नेग+टा (प्रत्य०)] नेग या परम्परागत रीति का पालन करनेवाला। दस्तूर पर चलनेवाला। |
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नेगी :
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पुं० [हिं० नेग] १. शुभ अवसरों पर नेग पाने का अधिकारी। जैसे-धोबी नाई भाट आदि। २.किसी की उदारता दया आदि से लाभ उठाकर बराबर उसकी आकांक्षा और आशा रखनेवाला व्यक्ति। उदा०–गलरामृत शिव आशुतोष बलविश्व सकल नेगी।–निराला। |
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नेगी-जोगी :
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पुं०[हिं०नेग-जोग] =नेगी। |
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नेचर :
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पुं० [अं०] निसर्ग। प्रकृति। |
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नेचरिया :
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वि० [अ० नेचर+इया(अप्र०)] जो केवल प्रकृति को सृष्टि का कर्ता मानता हो,ईश्वर को न मानता हो। प्रकृतिवादी। नास्तिक। |
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नेचवा :
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पुं० [देश०] पलंग का पाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेछावर :
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स्त्री०=निछावर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेज :
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पुं०=नेजा (भाला)। उदा०–हयौ नेज चामंड वीर दो सहस लरै मर।–चंदबरदाई। |
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नेजक :
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पुं० [सं०√निज् (साफ करना)+ण्वुल-अक] रजक। धोबी। |
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नेजन :
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पुं० [सं०√निज्+ल्युट्-अन] १. कपड़े धोने की क्रिया या भाव। २. सफाई करना। |
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नेजा :
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पुं० [फा० नैज़ः] १. भाला। बरछा। २. साँग। पुं० [देश०] चिलगोजा नाम का सूखा मेवा। (पश्चिम)। |
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नेजा-बरदार :
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वि० [फा० नेज़ःबरदार] भाला लेकर चलनेवाला। |
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नेजाल :
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पुं० [फा० नेजः] भाला। बरछा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेजोछना :
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स०=अँगोछना या अंग पोंछना (मिथिला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेटा :
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पुं० [हिं० नाक+टा] नाक से निकलनेवाला कफ या बलगम। क्रि० प्र०-निकलना।–बहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेठना :
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अ०, स०=नाठना (नष्ट करना या होना)। |
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नेड़उ :
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अव्य० [सं० निकट,पं० नेड़े] समीप। नजदीक। उदा०–दिन नेड़उ आइयो दुरी।–प्रिथीराज। |
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नेड़ी :
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स्त्री०=लेंडी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेड़े :
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अव्य० [सं० निकट,प्रा० निअड़] नजदीक। निकट। पास । (पश्चिम)। |
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नेत :
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पुं० [सं० नेत्रम्] १. वह रस्सी जिससे मथानी चलाई जाती है। नेती। २. एक तरह का बढ़िया रेशमी कपड़ा। ३. झंडे में लगा हुआ फहरानेवाला कपड़ा। पताका। ४. बिछाने की चादर। उदा०–पुनि गज हस्ति चढ़ावा नेत बिछावा बाट।–जायसी। पुं०[सं०नियति=ठहराव] १.किसी बात का स्थिर होना। ठहराव। निर्धारण। २.दृढ़ निश्चय या संकल्प। ३.प्रबंध। व्यवस्था। स्त्री० दे० ‘नीयत’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेतली :
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स्त्री० [सं० नेत्रम्] १. मथानी चलाने की डोरी। २. एक प्रकार की पतली डोरी (लश०)। |
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नेता(तृ) :
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पुं० [सं०√नी (ले जाना)+तृच्] [स्त्री० नेत्री] १. वह पशु जो अपने झुंड के आगे आगे चलता हो। २. मनुष्यों में वह जो लोगों को मार्ग दिखलाता हुआ आगे चलता हो और दूसरों को अपने साथ ले जाता हो। अगुआ। नायक। ३. आजकल किसी धार्मिक संप्रदाय अथवा किसी राजनीतिक या सामाजिक दल का वह व्यक्ति जो आवश्यक बातों में लोगों का मार्ग प्रदर्शन करता हो और लोगों को अपना अनुयायी बनाकर रखता हो। (लीडर)। ४. प्रभु। मालिक। स्वामी। ५. कार्य का निर्वाह या संचालन करनेवाला अधिकारी। ६. नीम का पेड़। ७. वह जो दूसरों को दंड आदि देता हो। ८. नाटक का नायक। ९. विष्णु का एक नाम। पुं० [हिं० नेत] मथानी की रस्सी। नेती। |
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नेतागिरी :
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स्त्री० [हिं० नेता+फा० गिरी] नेता बनकर दूसरों का मार्ग प्रदर्शन करने का काम। |
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नेति :
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अव्य० [सं० न+इति,व्यस्तपद] इसका कहीं अंत नहीं है। यह अनन्त है। (प्रायः ईश्वर,ब्रह्म आदि की महिमा में प्रयुक्त)। स्त्री०=नेती। |
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नेती :
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स्त्री० [सं० नेत्रम्] १. मथानी चलाने की रस्सी। २. दे० ‘नेती धोती’। |
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नेती-धोती :
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स्त्री० [सं० नेत्र,हिं० नेता+सं० धौति] आँतों और पेट का मल साफ करने की हठयोग की एक क्रिया जिसमें कपड़े की लंबी पट्टी मुँह के रास्ते पेट में उतारी जाती है और तब इसे बाहर खींचने पर इसके साथ मल बाहर निकलता है। |
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नेतुल्ली :
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पुं० [हिं० नेता+तुल्ली (प्रत्य०)] छोटा या तुच्छ नेता। (उपहास और व्यंग्य)। |
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नेतृत्व :
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पुं० [सं० नेतृ+त्व] नेता बनाकर किसी सम्प्रदाय या दल का मार्ग-दर्शन तथा उसके कार्यों का संचालन करना। |
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नेत्र :
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पुं०[ सं०√नी+ष्ट्रन्] १. आँख। २. दोनों आँखों के आधार पर दो की संख्या। ३. मथानी की रस्सी। ४. पेड़ की जड़। ५. जटा। ६. रथ। ७. नाड़ी। ८. एक तरह का रेशमी कपड़ा। ९. वैद्यक में वस्ति-कर्म में काम आनेवाली सलाई। १॰. दे० ‘नेता’। |
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नेत्र-कनीनिका :
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स्त्री० [ष० त०] आँख की पुतली। |
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नेत्रच्छद :
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पुं० [सं० नेत्र√छद् (ढँकना)+णिच्+क,ह्रस्व] पलक। |
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नेत्रज :
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पुं० [सं० नेत्र√जन् (उत्पत्ति)+ड] आँसू। |
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नेत्र-जल :
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पुं०आँसू। |
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नेत्रण :
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पुं०[सं० नेत्र से] किसी को ठीक मार्ग दिखलाते हुए ले चलना। |
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नेत्र-पर्यंत :
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पुं०[ष० त०] आँख का कोना। |
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नेत्र-पाक :
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पुं०[ष० त०] आँख का एक रोग। |
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नेत्र-पिंड :
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पुं०[ष० त०] १.आँख का डेला। २. [ब० स०] बिल्ली। |
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नेत्र-पुष्करा :
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स्त्री०[ब० स०, टाप्] रुद्र जटा नामक लता। |
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नेत्र-बंध :
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पुं०[ब० स०] आँख मिचौली का खेल। (महाभारत)। |
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नेत्र-बाला :
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स्त्री०[सं०] सुगंधबाला नामक वनौषधि। |
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नेत्र-भाव :
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पुं०[ष० त०] नृत्य और संगीत में वे भाव जो केवल आँखों की मुद्रा से प्रकट किये जाते हैं। |
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नेत्र-मंडल :
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पुं० [ष० त०] आँख का डेला। |
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नेत्र-मल :
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पुं०[ष० त०] आँख में से निकलनेवाला कीचड़ या मल। गिद्द। |
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नेत्र-मार्ग :
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पुं०[ष० त०] हठयोग में माना जानेवाला अन्तःकरण के पास का वह नेत्र-गोलक जिसका एक सूत्र के द्वारा मस्तिष्क तक संबंध होता है। |
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नेत्र-मीला :
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स्त्री०[ब० स० पृषो० ल-न] यवतिक्ता लता। |
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नेत्र-योनि :
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पुं०[ब० स०] १.इंद्र (गौतम के शाप से इनके शरीर पर योनि के आकार के चिन्ह निकल आये थे)। २.चंद्रमा। |
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नेत्र-रंजन :
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पुं०[ष० त०] कज्जल। काजल। |
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नेत्र-रोग :
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पुं०[ष० त०] आँखों में होनेवाला रोग। |
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नेत्ररोगहा(हन्) :
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पुं०[सं० नेत्ररोग√हन्(हिंसा)=+क्विप्] वृश्चिकाली (वृक्ष)। |
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नेत्र-रोम(न्) :
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पुं० [ष० त०] बरौनी। |
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नेत्रवस्ति :
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स्त्री०[ष० त०] एक प्रकार की छोटी पिचकारी। |
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नेत्र-वारि :
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पुं०[ष० त०] आँसू। |
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नेत्रविट्(ष्) :
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पुं०[ष० त०] आँख का कीचड़। |
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नेत्र-विष :
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पुं०[ब० स०] एक प्रकार का साँप जिसकी आँखों में विष होना माना जाता है। कहते हैं कि इसके देखने मात्र से प्राणियों पर विष का प्रभाव पड़ता है। |
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नेत्रा-संधि :
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स्त्री०[ष० त०] आँख का कोना। |
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नेत्र-स्तंभ :
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पुं०[ष० त०] वह स्थिति जिसमें आँखों की पलकों का उठना और गिरना बन्द हो जाता है। |
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नेत्र-स्राव :
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पुं०[ष० त०] आँखों से पानी बहना। |
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नेत्रहा(हन्) :
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पुं०[सं०नेत्र√हन्+क्विप्] वृश्चिकाली (वृक्ष)। |
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नेत्रांत :
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पुं०[ष० त०] आँख का बाहरी कोना। |
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नेत्राबु :
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पुं०[नेत्र-अंबु,ष० त०] आँसू। |
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नेत्रांभ(स्) :
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पुं०[नेत्र-अंभस्,ष० त०] आँसू। |
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नेत्राभिष्यंद :
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पुं० [नेत्र-अभिष्यंद,ष० त०] छूत से फैलनेवाला एक नेत्र-रोग। |
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नेत्रामय :
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पुं० [नेत्र-आमय,ष० त०] आँख का रोग। |
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नेत्रारि :
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पुं० [नेत्र-अरि,ष० त०] थूहर। सेहुँड़। |
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नेत्रिक :
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पुं० [सं० नेत्र+ठन्–इक] १. एक प्रकार की छोटी पिचकारी(सुश्रुत)। २. कलछी। |
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नेत्री :
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स्त्री० [सं० नेत्र+ङीप्] १. सं० ‘नेता’ का स्त्री०। स्त्री नेता। २. लक्ष्मी। ३. नाड़ी। ४. नदी। |
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नेत्रोत्सव :
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पुं० [नेत्र-उत्सव, ष० त०] १. नेत्रों का आनन्द। देखने का मजा। २. दर्शनीय और सुन्दर वस्तु। |
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नेत्रोपमफल :
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पुं० [नेत्र-उपमा,ब० स० नेत्रोपम-फल,कर्म० स०] बादाम। (भाव प्रकाश)। |
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नेत्रौषध :
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पुं० [नेत्र-औषध,ष० त०] १. आँख की दवा। २. पुष्प। कसीस। |
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नेत्रौषधि(धी) :
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स्त्री० [नेत्र-औषधि,ष० त०] मेढ़ासिंगी (पौधा)। |
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नेत्र्य :
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वि० [सं०] १. नेत्र संबंधी। २. नेत्रों को सुख देनेवाला। |
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नेत्र्य-गण :
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पुं० [सं० नेत्र+यत्,नेत्र्य-गण,कर्म० स०] रसौत,त्रिफला,लोध,ग्वालपाठा, बनकुलथी आदि ओषधियों का वर्ग। |
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नेदिष्ठ :
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वि० [सं० अन्तिक+इष्ठन्,नेद-आदेश] १. निकट का। पास का। २. दक्ष। निपुण। पुं० १. अंकोट या ढेरे का वृक्ष। |
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नेदिष्ठी(ठिन्) :
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वि० [सं० नेदिष्ठ+इनि] समीप का। निकटस्थ। पुं० सगा या सहोदर भाई। |
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नेनुआ :
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पुं० [देश०] १. एक प्रसिद्ध लता। २. उक्त का लंबोतरा फल जिसकी तरकारी बनाई जाती है। वैद्यक में यह वात तथा पित्त नाशक माना गया है। घिया-तरोई। |
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नेप :
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पुं० [सं०√नी+प] १. पुरोहित। २. जल। |
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नेपचून :
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पुं० [फ्रांसीसी] सूर्य की परिक्रमा करनेवाला एक नक्षत्र। एक ग्रह जिसका पता कुछ ही दिन पहले लगा था। वरुण। |
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नेपथ्य :
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पुं० [सं०√नी+विच्,ने(नेता)+पथ्य,ष० त०] १. सजावट। सज्जा। २. पहनने के कपड़े। पोशाक। (विशेषतः अभिनेताओं की) ३. वेष-भूषा। ४. रंग-मंच का वह भाग जो दर्शकों की दृष्टि से ओझल रहता है और जिसमें अभिनेता या नट उपयुक्त वेश-भूषा आदि से सज्जित होते हैं। ५. रंग-भूमि। रंगशाला। |
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नेपाल :
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पुं० [देश०] उत्तर प्रदेश के उत्तर और हिमालय के तल में स्थित एक पहाड़ी देश तथा राज्य। |
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नेपालक :
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पुं० [सं० नेपाल+कन्] ताँबा। |
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समानार्थी शब्द-
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नेपालजा :
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स्त्री० [सं० नेपाल√जन् (उत्पत्ति)+ड+टाप्] मनःशिला। मैनसिल। |
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नेपाल-निंब :
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पुं० [मध्य० स०] एक तरह का चिरायता। |
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नेपाल-मूलक :
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पुं० [सं०] हस्तिकंद (कंद)। |
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समानार्थी शब्द-
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नेपालिका :
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स्त्री० [सं० नेपालक+टाप्,इत्व] मनःशिला। मैनसिल। |
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समानार्थी शब्द-
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नेपाली :
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वि० [हिं० नेपाल] १. नेपाल राज्य से संबंध रखेवाला। २. नेपाल में बसने,होने या रहनेवाला। पुं० नेपाल देश का नागरिक या निवासी। स्त्री० नेपाल देश की भाषा। स्त्री०=निवारी (पौधा और उसका फूल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेपुर :
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पुं०=नूपुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेफा :
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पुं० [फा० नेफ़ः] पायजामे, लहँगे आदि का नेफा जिसमें नाला आदि डाला जाता है। पुं० [अ० नार्थ ईस्ट इण्डिया एजेंसी के आरभिक अक्षरों का समूह] वे पहाड़ी प्रदेश जो भारत के उत्तर पूर्व में पड़ते हैं। |
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नेब :
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पुं०=नायब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेबू :
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पुं०=नींबू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेम :
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वि०[सं०√नी+मन्] १. अर्ध। आधा। २. अन्य। दूसरा। पुं० [सं०] १. काल। समय। २. अवधि। ३. खंड। टुकड़ा। ४. दीवार। ५. धोखेबाजी। छल। ६. गड्ढा। गर्त। ७. संध्या का समय। ८. जड़। मूल। पुं० [सं० नियम] १. नियम। कायदा। २. नियमित रूप से या बराबर होती रहनेवाली बात। पद-नेम-धरम=पूजा-पाठ देव-दर्शन आदि धार्मिक कृत्य। ३. प्रथा। रीति। |
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समानार्थी शब्द-
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नेमत :
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स्त्री०= नियामत। |
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नेमता :
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स्त्री० [सं०] नाचने-गाने का व्यवसाय करनेवाली स्त्री। नर्तकी। . |
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नेमि :
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स्त्री [सं०√नीमि] १. पहिए का चक्कर या घेरा। चक्र- परिधि।२. किसी प्रकार का चक्कर या घेरा। ३. कूएँ के ऊपर का चबूतरा। जगत। ४. कूएँ की जमवट। ५. किनारा। तट। ६. तिनिश वृक्ष। ७. वज्र। ८. पुराणानुसार एक दैत्य। ९. दे० ‘नेमि नाथ’। |
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नेमिचक्र :
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पुं० [सं०] एक राजा जो परीक्षित के वंशजों में से था। |
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नेमी (मिन्) :
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पुं० [सं० नेम+इनि] तिनिश वृक्ष। स्त्री० नेमि। वि० [सं० नियम] किसी प्रकार के नियम, विशेषतः धार्मिक कृत्य-संबंधी नियम का दृढ़तापूर्वक और सदा पालन करने वाला। जैसे- गंगा-स्नान या देव-दर्शन का नेमी। पदः नेमी-धरमी। |
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नेमी-धरमी :
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वि० [सं० नियम-धर्मी] १. धार्मिक नियमों और सिद्धांतों का दृढ़तापूर्वक पालन करने वाला। २ नित्य पाठ-पूजा, देव-दर्शन आदि धार्मिक कृत्य करने वाला। |
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नेयार्थ :
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पुं० [सं० नेय-अर्थ, कर्म० स०] एक पद-दोष जो उस समय माना जाता है जब किसी शब्द से उसके ऐसे लाक्षणिक अर्थ का बोध कराया जाता है जो साधारणतः उससे अभिव्यंजित नहीं होता। |
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नेयार्थता :
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स्त्री० [सं० नेयार्थ+तल्+टाप्] नेयार्थ दोष होने की अवस्था या भाव। |
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नेर :
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क्रि० वि० दे०‘नियर’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेरता :
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[सं० नैर्ऋत] नैर्ऋत्य दिशा। पश्चिम दक्षिण का कोना। |
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नेरवाती :
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स्त्री० [देश०] एक तरह की नीले रंग की पहाड़ी भेड़। |
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नेरा :
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वि० [हिं० नेक] [स्त्री नेरी] जरा-सा। थोड़ा—सा। उदा०–अब ऐसी अनेरी पत्याति न नेरी।–घनानन्द। |
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नेराना :
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अ०, स०=नियराना। |
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नेरुबा :
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पुं० [सं० नलहिं,नाली नारी] वह नाली जिसमें से कोल्हू में का तेल बाहर निकलता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेरे :
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अव्य [हिं० नियर] निकट। पास। समीप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेव :
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वि०=नायब। स्त्री०=नींव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवग :
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पुं०=नेग। (डिं०)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवगी :
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पुं०=नेगी (डिं०)। |
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नेवछावर :
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स्त्री०=निछावर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवज :
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पुं०=नैवेद्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवजा :
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पुं०=नेजा (चिलगोजा)। |
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नेवजी :
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स्त्री०=नेवारी (पौधा तथा फूल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवत :
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पुं०=न्यौता। (निमंत्रण)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवतना :
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स० [हिं० न्योता] न्योता या निमंत्रण देना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवतहारी :
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पुं० [हिं० न्योता] वह व्यक्ति जिसे किसी मांगलिक अवसर पर न्योता दिया गया हो या न्योता देने पर आया हो। |
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नेवता :
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पुं०=न्योता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवती :
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पुं० दे० ‘नेवतहरी’। उदा०–नेवती भएउँ बिरह की आगी।–जायसी। |
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नेवना :
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अ० [सं० नमन] १. झुकना। २. नम्र होना। स० झुकाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवर :
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पुं० [सं० नूपुर] १. पैरों में पहनने का नूपुर नाम का गहना। पैंजनी। २. घुँघरू। ३. घोड़ों के पैर में होनेवाला वह घाव जो दूसरे पैर की रगड़ या ठोकर से होता है। क्रि० प्र०-लगना। वि० [सं० निर्बल] १. कमजोर। २. खराब। बुरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवरना :
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अ० [सं० निवारण] निवारण होना। दूर होना। स० १. निवारण करना। २. निपटाना। भुगताना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवरा :
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पुं० [देश०] लाल कपड़े की वह खोली जो झारी पर चढ़ाई जाती है। पुं०=नेवला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवल :
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पुं०१.=नेवर। २.=नेवला। |
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नेवला :
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पुं० [सं० नकुल,प्रा० नउल] चूहे के आकार का भूरे रंग का चार पैरोंवाला एक प्रसिद्ध जंतु जो सांप को मार डालता है। |
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नेवा :
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पुं० [सं० नियम] १. प्रथा। दस्तूर। रवाज़। २. कहावत। लोकोक्ति। वि० [?] चुप। मौन। पुं०=लेवा। अव्य०=नाई (तरह या समान)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवाज :
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वि०=निवाज (दयालु)। |
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नेवाजना :
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स०=निवाजना। (दया करना)। |
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नेवाड़ा :
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पुं०=निवाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवाड़ी :
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स्त्री०=नेवारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवाना :
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स०=नवाना। (झुकाना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवार :
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पुं० [देश०] नेपाल की एक आदिम जाति। स्त्री०=निवार। |
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नेवारना :
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स० [सं० निवारण] निवारण करना। हटाना। दूर करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेवारी :
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स्त्री० [सं० नेपाली] १. चमेली की जाति का फूलों का सुगंधित फूलों का एक प्रसिद्ध पौधा जो चैतमें फूलता है। २. उक्त पौधे का फूल। |
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नेष्टा(ष्टृ) :
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पुं० [सं०√नी+तृन्, नि० सिद्धि]१. एक ऋत्विक्। २. त्वष्टा देवता। |
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नेष्टु :
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पुं० [सं० निश् (एकाग्रता)+तुन्] मिट्टी का ढेला। |
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नेस :
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पुं० [फा० नेश] १. जंगली सूअर के आगे निकला हुआ दाँत। सींग। २. दंश। डंक। |
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नेसकुन :
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पुं० [देश०] बंदरों का जोड़ा। (कलंदर)। |
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नेसुक :
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अव्य० वि०=नेक या नेकु (जरा या थोड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेसुहा :
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पुं० दे० ‘ठीहा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नेस्त :
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वि० [फा०] [भाव० नेस्ती] १. जो न हो। नष्ट। बरबाद। |
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नेस्त-नाबूद :
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वि० [फा०] जड़-मूल से नष्ट। समूल नष्ट। |
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नेस्ती :
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स्त्री०[सं० नास्ति से फा०]१. न होने की अवस्था या भाव। अनस्तित्व। २. आलस्य। सुस्ती। ३. नाश। बरबादी। वि० चौपट या सर्वनाश करने वाला। |
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नेह :
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पुं० [सं० स्नेह] १. स्नेह। प्रीति। प्यार। मुहब्बत। २. घी, तेल या ऐसा ही कोई चिकना और तरल पदार्थ। |
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नेहाल :
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वि०=निहाल। |
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नेही :
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वि०=स्नेही।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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