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पच्ची  : स्त्री० [सं० पचित] १. पचने या पचाने की क्रिया या भाव। २. खपाने की क्रिया या भाव। जैसे—माथा पच्ची,सिर पच्ची। ३. धातुओं, पत्थरों आदि पर नगीने या धातु पत्थर आदि के छोटे-छोटे टुकड़े जड़ने की क्रिया या प्रकार, जिसमें जड़ी जानेवाली चीजें गड्ढों में इस प्रकार जमाकर जड़ी या बैठाई जाती हैं कि उसका ऊपरी तल उभरा हुआ नहीं रह जाता। जैसे—सोने के कंगन में हीरे की पच्ची,ताँबे के लोटे पर चाँदी के पत्तरों की पच्ची, संगमरमर की पटिया पर रंग-बिरंगे पत्थरों की पच्ची। पद—पच्चीकारों (देखें) मुहा०—(किसी में) पच्ची हो जाना=किसी से बिलकुल मिल जाना या उसी के रूप में का हो जाना। लीन हो जाना। जैसे—यह कबूतर जब उड़ता है, तब आसमान में पच्ची हो जाता है। वि० [हिं० पक्ष] किसी का पक्ष लेकर उसकी ओर से झगड़ा या विवाद करनेवाला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
पच्चीकारी  : स्त्री० [हिं० पच्ची+फा० कारी=करना] १. पच्ची की जड़ाई करने की क्रिया या भाव। २. पच्ची करके तैयार किया हुआ काम।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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