शब्द का अर्थ
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पूय :
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पुं० [सं०√पूय (दुर्गन्ध करना)+अच्] फोड़े में से निकलनेवाला सफेद गाढ़ा तरल पदार्थ। पीप। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-कुंड :
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पुं० [ष० त०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। २. दे० ‘पुतिकुंड’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-दंत :
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पुं० [ब० स०] दाँतों का एक विशिष्ट रोग जिस में मसूढ़ों में से मवाद निकलता है। (पायरिया)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूयन :
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पुं० [सं०√पूय+ल्युट्—अन] १. पूय। मवाद। २. प्राणी या वनस्पति के अंग का इस प्रकार गलना या सड़ना कि उसमें से दुर्गन्ध आने लगे। सड़न। (प्यूट्रिफिकेशन)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-प्रमेह :
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पुं० [सं० ब० स०] वैद्यक में एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मूत्र पीप की तरह गाढा और दुर्गन्धमय होता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूयभुक् (ज्) :
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वि० [सं० पूय√भुज् (खाना)+क्विप्] सड़ा मुर्दा खानेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-मेह :
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पुं० [ब० स०] पूय-प्रमेह। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-रक्त :
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पुं० [ब० स०] १. रक्तपित्त की अधिकता अथवा सिर पर चोट लगने के कारण नाक में से पीप मिला हुआ लहू निकलने का एक रोग। २. नाक में से निकलनेवाला पीब मिला हुआ रक्त। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूयवह :
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पुं० [सं० पूय√वह् (बहना)+अण्] एक नरक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-शोणित :
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पुं०=पूय-रक्त। (दे०) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पूय-स्राव :
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पुं० [ब० स०] सुश्रुत के अनुसार आँखों का एक रोग जिसमें उसका संधिस्थान पक जाता है और उसमें से पीब बहने लगता है। |
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समानार्थी शब्द-
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पूयारि :
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पुं० [पूय-अरि, ष० त०] नीम। |
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समानार्थी शब्द-
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पूयालस :
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पुं० [पूय-अलस, ब० स०] आँखों का एक लोग जिसमें उसकी पुतली के संधिस्थल में से पीब निकलने लगता है। |
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पूयोद :
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पुं० [पूय-उदक, ब० स०, उदादेश] एक नरक का नाम। |
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पूय :
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पुं० [सं०√पूय (दुर्गन्ध करना)+अच्] फोड़े में से निकलनेवाला सफेद गाढ़ा तरल पदार्थ। पीप। |
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पूय-कुंड :
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पुं० [ष० त०] १. पुराणानुसार एक नरक का नाम। २. दे० ‘पुतिकुंड’। |
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पुं० [ब० स०] दाँतों का एक विशिष्ट रोग जिस में मसूढ़ों में से मवाद निकलता है। (पायरिया)। |
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पुं० [सं०√पूय+ल्युट्—अन] १. पूय। मवाद। २. प्राणी या वनस्पति के अंग का इस प्रकार गलना या सड़ना कि उसमें से दुर्गन्ध आने लगे। सड़न। (प्यूट्रिफिकेशन)। |
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पुं० [सं० ब० स०] वैद्यक में एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मूत्र पीप की तरह गाढा और दुर्गन्धमय होता है। |
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पूयभुक् (ज्) :
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वि० [सं० पूय√भुज् (खाना)+क्विप्] सड़ा मुर्दा खानेवाला। |
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पूय-मेह :
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पुं० [ब० स०] पूय-प्रमेह। |
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पूय-रक्त :
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पुं० [ब० स०] १. रक्तपित्त की अधिकता अथवा सिर पर चोट लगने के कारण नाक में से पीप मिला हुआ लहू निकलने का एक रोग। २. नाक में से निकलनेवाला पीब मिला हुआ रक्त। |
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पुं० [सं० पूय√वह् (बहना)+अण्] एक नरक। |
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पूय-शोणित :
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पुं०=पूय-रक्त। (दे०) |
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पुं० [ब० स०] सुश्रुत के अनुसार आँखों का एक रोग जिसमें उसका संधिस्थान पक जाता है और उसमें से पीब बहने लगता है। |
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पूयारि :
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पुं० [पूय-अरि, ष० त०] नीम। |
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पुं० [पूय-अलस, ब० स०] आँखों का एक लोग जिसमें उसकी पुतली के संधिस्थल में से पीब निकलने लगता है। |
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पूयोद :
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पुं० [पूय-उदक, ब० स०, उदादेश] एक नरक का नाम। |
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