शब्द का अर्थ
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पेट :
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पुं० [सं० पेट=थैला] १. शरीर के मध्य भाग का वह सामनेवाला अंग जो छाती के नीचे और पेडू के ऊपर रहता है और जिसके भीतरी भाग में आमाशय, गुरदा, प्लीहा, यकृत आदि अंग होते हैं। २. उक्त अंग के भीतरी भाग की वह थैली जिसमें पहुँचकर खाया हुआ भोजन पचता है। आमाशय। ओझर। पचौनी। विशेष—पेट में होनेवाले विकारों तथा उसकी आवश्यकताओं से संबंधित पद और मुहावरे इसी अर्थ के अंतर्गत आये हैं। पद—पेट का कुत्ता=जो केवल भोजन के लालच से सब कुछ करता या कर सकता हो। केवल पेट के लिए सब कुछ करनेवाला। पेट का धंधा=(क) रसोई बनाने का काम या व्यवस्था। जैसे—स्त्रियाँ सबेरे उठते ही पेट के धंधे में लग जाती हैं। (ख) जीविका-निर्वाह के लिए किया जानेवाला उद्योग। काम-धंधा। पेट की आग=भूख। क्षुधा। पेट के लिए= इस उद्देश्य से कि पेट भरने का साधन। बना रहे। उदर पूर्ति या जीविका-निर्वाह के लिए। मुहा०—पेट अफरना=पेट में ऐसा विकार होना कि वायु से भर और फूल जाय। पेट आना=पतले दस्त आना। (क्व०) पेट और पीठ एक हो जाना या पेट पीठ से लग जाना=(क) बहुत भूख लगना। (ख) बहुत अधिक दुबला हो जाना। (अपना) पेट काटना=पैसे बचाने के लिए कम खाना। इसलिए कम खाना कि पैसों की कुछ बचत हो जाय। (किसी का) पेट काटना=ऐसा काम करना जिससे किसी को खाने के लिए आवश्यक या उचित से कम अन्न या धन मिले। जैसे—गरीब का पेट नहीं काटना चाहिए। पेट का पानी तक न हिलना=कुछ भी कष्ट या परिश्रम न पड़ना। जरा भी तकलीफ या मेहनत न होना। पेट का पानी न पचना=किसी काम या बात के लिए इतनी उत्सुकता और विकलता होना कि उसके बिना रहा न जा सके। पेट की आग बुझाना=पेट में भोजन पहुँचाना। खाकर भूख मिटाना। किसी को पेट की मार देना (या मारना)=(क) भूखा रखना। भोजन न देना। (ख) जीविका उपार्जन में बाधक होना। पेट को धोखा देना=दे० ऊपर ‘(अपना) पेट काटना’। पेट खलाना=(क) अपने भूखे होने का संकेत करना। यह इशारा करना कि हमें बहुत भूख लगी है। (ख) बहुत अधिक दीनता या नम्रता प्रकट करना। पेट को लगना=बहुत अधिक भूख लगना। पेट गड़ना=अपच के कारण पेट में दर्द होना। पेट गुड़गुड़ाना=पेट में अपच, वायु आदि के कारण गुड़-गुड़ का सा शब्द होना। पेट चलना=(क) ऐसी व्यवस्था होना कि जीविका चलती रहे या उसका साधन बना रहे। जैसे—सौ रुपये महीने में सारी गृहस्थी का पेट भर चलता है। (ख) रह-रहकर पतले दस्त होना। पेट छँटना=(क) पेट का मल या विकार निकल जाना जिससे वह हल्का हो जाय। (ख) पेट की मोटाई कम होना। पेट छूटना=पतले दस्त आना। पेट जलना=(क) बहुत भूख लगना। (ख) मन ही मन बहुत अधिक क्रोध होना। रोष होना। पेट जारी होना=पतले दस्त आना। (अपना) पेट दिखाना=अपने भूखे होने का संकेत करना। यह इशारा करना कि मुझे भूख लगी है। पेट पकड़े फिरना=बहुत अधिक कष्ट, विकलता आदि के चिह्न प्रकट करते हुए जगह-जगह घूमना या जाना। पेट पाटना=जो कुछ मिल जाय, उसी से पेट भर लेना। भूख के मारे खाद्य या अखाद्य का विचार छोड़कर खा लेना। पेट पानी होना=बार-बार बहुत अधिक पतले दस्त आना। पेट पालना=कठिनता से खाने भर को कमा लेना। किसी तरह या जैसे-तैसे जीविका-निर्वाह करना। पेट फूलना=पेट अफरना। (देखें ऊपर) (कुछ करने, कहने या जानने के लिए) पेट फूलना=बहुत अधिक हँसने के फल-स्वरूप पेट में बहुत अधिक वायु भर जाना और अधिक गँसने के योग्य न रह जाना। पेट भरना=(क) जो कुछ मिले, फसे खाकर भूख मिटाना। (ख) खूब अच्छी तरह और यथेष्ठ भोजन करना। (ग) इच्छा, कामना आदि पूर्ण करना या होना। जी भरना। पेट मार कर मर जाना=आत्म-घात कर लेना (पेट में छूरा मारकर मर जाने के आधार पर) पेट मारन=पेट काटना (दे० ऊपर)। पेट में आँत और मुख में दांत न होना=इतना अधिक वृद्धि होना कि पाचन शक्ति बिलकुल न रह गई हो और सब दाँत झड़ या टूट गये हों। पेट में चूहा कूदना या दौड़ना=बहुत अधिक भूख लगना। पेट में च्यूँटे की गाँठ होना=बहुत ही थोड़ा भोजनकर सकने के योग्य होना। बहुत ही अल्पाहारी होना। पेट में डालना=जो कुछ मिले, वही खाकर भूख मिटाना। किसी तरह पेट भरना। पेट में दाढ़ी होना=थोड़ी अवस्था में ही वयस्कों की तरह बहुत अधिक चालाक या होशियार होना। पेट में पाँव होना=अत्यंत छली या कपटी होना। बहुत चालू होना या धोखेबाज होना। (हँसते हँसते) पेट में बल पड़ना=इतनी हँसी आना कि पेट में दर्द-सा होने लगे। पेट मोटा होना या हो जाना=ऐसी स्थिति होना कि थोड़े या सहज में तृप्ति या संतोष न हो सके। जैसे—जिन रोजगारियों को पेट मोटा हो जाता है, वे कम मुनाफे पर माल नहीं बेचते। पेट लगना या लग जाना=भूख से पेट अंदर धँस जाना। पेट से पाँव निकालना=(क) किसी अच्छे आदमी का बुरा काम करने लग जाना। कुमार्ग में लगना। (ख) योग्यता, सामर्थ्य आदि से बहुत बढ़कर कोई काम करने के लिए प्रवृत्त होना। ३. स्त्री का गर्भाश्य; अथवा उसमें स्थित होनेवाला गर्भ। हमल। पद—पेट चोट्टी=वह स्त्री जिसके गर्भ तो हो, परंतु ऊपर से उसका कोई लक्षण जल्दी दिखाई न देता हो। गर्भवती होने पर भी जिसके गर्भ के बाहरी लक्षण दिखाई न पड़ें। पेट-पोंछना=किसी स्त्री की वह संतान जिसके उपरांत और कोई संतान न हुई हो। अंतिम संतान। पेट-वाली=गर्भवती स्त्री। मुहा०—पेट गदराना=गर्भवती होने के कारण पेट का चिकना होकर कुछ उभरना या भारी पड़ जाना। पेट गिरना=गर्भाश्य में ठहरा हुआ गर्भ निकल जाना। गर्भपात होना। पेट गिरवाना=गर्भपात कराना। पेट गिराना=गर्भवती होने की दशा में जान-बूझकर ऐसा उपाय, प्रयोग या युक्ति करना कि गर्भपात हो जाय। पेट छँटना=संतान का प्रसव होने के उपरांत पेट के अंदर का सारा बचा-खुचा विकाल निकल जाने पर पेट का साफ और हलका हो जाना। पेट ठंडा रहना=संतान का जीवित रहना और फलतः माता का सुखी रहना। (स्त्री का) पेट फुलाना या फुला देना=किसी स्त्री को गर्भवती कर देना। पेट फूलना=गर्भवती होना। पेर रखाना=पुरुष के साथ संभोग कर के गर्भाश्य में गर्भ स्थित कराना। जैसे—न जाने कहाँ से पेट रखाकर आई है। पेट रहना=गर्भवती होना। पेट में होना=गर्भवती होना। पेट होना=गर्भवती होना। ४. लाक्षणिक रूप में, अंतःकरण या मन जिसमें अनेक प्रकार की प्रवृत्तियाँ वासनाएँ और विचार उठते या रहते हैं। पद—पेट का गहरा=(व्यक्ति) जो अपने मन की बात किसी पर प्रकट न होने दे। पेट का हलका=(क) जो कोई भेद की बात सुनकर उसे छिपा न रख सकता हो। ओछे या क्षुद्र स्वाभाववाला। पेट की बात=मन में छिपाकर रखा हुआ गूढ़ उद्देश्य या और कोई बात। पेट में=मन या हृदय में। जैसे—तुम्हारे पेट में जो कुछ हो, वह भी कह डालो। मुहा०—(किसी को अपना) पेट देना=अपना गूढ़ भेद या विचार किसी का बतलाना। उदा०—अपनौ पेट दियौ तैं उनकौं नाकबुद्धि तिय सबै कहैरी।—सूर पेट में खलबली पड़ना, मचना या होना=कुछ करने, कहने या जानने-सुनने के लिए मन में बहुत अधिक उत्सुकता और विकलता होना। छटपटी पड़ना। (किसी के) पेट में घुसना=किसी का भेद लेने के लिए उससे मेल-जोल बढ़ाना। पेट में चूहे कूँदना या दौड़ना=कोई काम या बात जानने के लिए बहुत अधिक उत्सुकता छटपटी या विकलता होना। (कोई बात) पेट में डालना=देखी या सुनी हुई बात अपने मन में छिपाकर रखना। किसी पर प्रकट न होने देना। (किसी के) पेट में पैठना या बैठना=दे० ऊपर (किसी के) पेट में घुसना। ५. लाक्षणिक रूप में कोई चीज अधिकार या भोग में होने की अवस्था। मुहा०—(कोई चीज किसी के) पेट में होना=किसी के अधिकार या भाग में होना। जैसे—सारा माल उसी के पेट में है। (कोई चीज किसी के) पेट से निकालना=जो चीज किसी ने उड़ा, छिपा या दबाकर रख छोड़ी हो, वह किसी प्रकार उससे प्राप्त करना या उसके अधिकार से निकलवाना या निकालना। जैसे—इतने दिनों बाद भी तुमने यह कलम (या पुस्तक) उसके पेट से निकालकर ही छोड़ी। ६. किसी खुली या पोली चीज के बीच का भीतरी खाली या खोखला भाग। किसी पदार्थ के अंदर का वह स्थान जिसमें कोई भरी जा सके या भरी जाती हो। जैसे—बोतल या लोटे का पेट, बगीचे या मकान का पेट। ७. बंदूक या तोप में का वह स्थान जहाँ गोली या गोला भरा या रखा जाता है। ८. चक्की के दोनों पाटों के बीच का वह स्थान जिसमें पहुँचकर कोई चीज पिसती है। ९. सिल आदि का वह भाग जो कूटा हुआ और खुरदरा रहता है और जिस पर रखकर कोई चीज पीसी जाती है। १॰. किसी प्रकार का ऐसा अवकाश जिसमें कोई चीज आ ठहर या रह सके। गुंजाइश। समाई। जैसे—जिस काम का जितना पेट होगा, उसमें उतना ही खरच पड़ेगा। |
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पेटक :
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पुं० [सं०√पिट् (इकट्ठा होना)+ण्वुल्—अक] [स्त्री० अल्पा० पेटिका] १. पिटारा। मंजूषा। २. संदूक। ३. ढेर। राशि। समूह। |
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पेटकैयाँ :
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क्रि० वि० [हिं० पेट+कैया (प्रत्य०)] पेट के बल। जैसे—पेटकैयाँ चलना या लेटना। |
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पेट पूजा :
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स्त्री० [हिं०] भोजन करना। खाना। (परिहास और व्यंग्य) |
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पेट-पोसुआ :
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वि० [हिं० पेट+पोसना] १. (केवल) अपने उदर की पूर्ति करने और चाहनेवाला। २. स्वार्थी। ३. पेटू। |
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पेटरिया :
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स्त्री०=पिटारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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पेटल :
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वि० [हिं० पेट+ल (प्रत्य०)] बहुत बड़े पेटवाला। तोंदल। |
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पेटा :
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पुं० [हिं० पेट] १. किसी पदार्थ में पेट के स्थान पर पड़नेवाला अर्थात् मध्य भाग। बीच का हिस्सा। २. किसी चीज का मध्य भाग, विशेषतः ऐसा मध्य भाग जो खाली हो तथा भरा जाने को हो। ३. किसी मद या शीर्षक के अंतर्गत होनेवाला अंश या भाग। ४. उक्त अंश में लिखा जानेवाला या लिखा हुआ विवरण। ५. उक्त के आधार पर किसी प्रकार का विस्तृत विवरण। ब्योरेवार बातें। मुहा०—पेट भरना=विवरण आदि लिखा जाना। ६. घेरा। वृत्त। ७. फैलाव। विस्तार। ८. विस्तार की अंतिम सीमा। हद। ९. वह गड्ढा जिसमें से होकर नदी और नाला बहता है। १॰. नदी या नाले के ऊपरी तल की चौड़ाई या विस्तार। पाट। ११. पशुओं की आँतें जो उनके पेट के अंतिम सिरे पर रहती हैं। १२. बड़ा टोकरा। दौरा। १३. उड़ती हुई पतंग की डोर का वह भाग जिसमें झोल पड़ा रहता है। मुहा०—पेट छोड़ना=उड़ती हुई गुड्डी की डोर का बीच में से लटक या झूल जाना। पेटा तोड़ना=अपनी डोर या नख से दूसरे की गुड्डी या पतंग की उक्त अंश काट देना। |
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पेटागि :
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स्त्री० [हिं० पट+आग] १. खाली पेट होने पर लगनेवाली भूख। २. उदर पूर्ति की चिंता। |
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पेटारा :
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पुं० [स्त्री० अल्पा० पेटारी] पिटारा। |
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पेटार्थी, पेटार्थू :
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वि० दे० ‘पेटू’। |
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पेटिका :
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स्त्री० [सं०√पिट् (इकट्ठा होना)+ण्वुल्—अक, टाप्,+इत्व] १. पिटारी नाम का वृक्ष। २. छोटी पेटी। ३. छोटी पिटारी। |
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पेटिया :
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पुं० [हिं० पेट] भोजन आदि के लिए मिलनेवाला दैनिक भत्ता। |
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पेटिया जड़ :
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स्त्री० [हिं० पेट] वनस्पति विज्ञान में ऐसी मूसला जड़ जो खूब फूली हुई और मोटी हो। गाजर, मूली, शलजम आदि कंद इसी के अंतर्गत हैं। |
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पेटी :
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स्त्री० [हिं० पेट] १. मनुष्य के शरीर में, छाती और पेड़ू के बीच का वह स्थान जो प्रायः कुछ उभरकर आगे निकल आता है और जिसमें त्रिबली नाम के दो या तीन बल पड़ते हैं। मुहा०—पेटी निकलना या पड़ना=पेट का उक्त भाग फूलकर आगे की ओर निकलना। (किसी से) पेटी लड़ाना=मैथुन या संभोग करना। २. अन्न के दानों का भीतरी भाग जिसके पुष्ट होने से वे अधिक समय तक बिना घुने रह सकते हैं। जैसे—कच्ची (या पक्की) पेटी का गेहूँ। ३. कमर में लपेट कर बाँधने का तस्मा। कमरबंद। ४. उक्त प्रकार का वह तस्मा जिसमें चपरास भी लगी रहती है। मुहा०—पेटी उतरना=सिपाही का मुअत्तल या बरखास्त किया जाना। ५. उक्त प्रकार का वह तस्मा या पेट्टी जो बुलबुल आदि पक्षियों की कमर में इसलिए बाँधी जाती है कि उसमें लगे हुए डोरे के आधार पर वे अड्डे या हाथ पर बैठाये जा सकें। (बेल्ट, अंतिम तीनों अर्थों में) क्रि० प्र०—बाँधना। स्त्री० [सं० पेटिका] १. छोटा संदूक। संदूकची। जैसे—रोकड़ रखने या माल बाहर भेजने की पेटी। २. छोटी डिबिया। जैसे—दियासलाई की पेटी, सिगरेट की पेटी। ३. उक्त प्रकार का वह आधान जिसमें हज्जाम अपना उस्तरा कैंची, नहरनी आदि रखते हैं। किसबत। |
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पेटीकोट :
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पुं० [अं०] छोटे घेरेवाले एक तरह का घाघरा जिसे आज-कल स्त्रियाँ धोती या साड़ी के नीचे पहनती हैं। |
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पेटू :
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वि० [हिं० पेट] १. जो बहुत अधिक खाता हो। २. जो सदा उदरपूर्ति की ताक में लगा रहता हो। भुक्खड़। |
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पेटेंट :
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वि० [अं०] जो आविष्कृत तथा किसी विशिष्ट नाम से प्रसिद्ध हो और जिसे उक्त विशिष्ट नाम से बनाने तथा बेचने का एकाधिकार सरकार से किसी को प्राप्त हो। जैसे—पेटेंट दवाएँ। |
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पेट्रोल :
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पुं० [अं०] काले रंग का एक प्रसिद्ध ज्वलनशील खनिज तेल जिसके ताप से मोटरों के इंजन आदि चलते हैं और जिसके कई प्रकार की उपयोगी चीजें निकलती या बनती हैं। पुं० [अं. पैट्रोल] १. सैनिक रक्षा के लिए घूम-घूम कर पहरा देना। २. पहरा देनेवाला सैनिक। |
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