शब्द का अर्थ
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प्रकाश :
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पुं० [सं० प्र√काश् (दीप्ति)+घञ्] १. साधारणतः वह स्थिति जिसमें आँखों से सब चीजें देखने में आती हैं और जिसके अभाव में कुछ भी दिखाई नहीं देता। चाँदना। रोशनी। ‘अन्धकार’ का विपर्याय। जैसे—दीपक या सूर्य का प्रकाश। २. पारिभाषिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में, गति और शक्ति का एक परिणाम या रूप जो ज्योतिष्मान् पदार्थों में से निकलनेवाली तरंगों के रूप में होता है। (लाइट)। विशेष—वैज्ञानिकों का मत है कि ज्योतिष्मान् पदार्थों में से निकलनेवाली तरंगो के कारण आकाश (ईथर) में जो क्षोभ उत्पन्न होता है, वही प्रकाश की तरंगों के रूप में चारों ओर फैलता है। आँखों पर उसकी जो प्रतिक्रिया होती है, उसी के फलस्वरूप सब चीजें दिखाई देती हैं। इसका प्रत्यक्ष तथा मौलिक संबंध किसी न किसी प्रकार के ताप से होता है और इसकी गति प्रति सेकेंड १८६००० मील होती है। यह कोई द्रव्य नहीं है, इसीलिए इसमें कोई गुरुत्व या भार नहीं होता। ३. उक्त का वह रूप जो हमें दिखाई देता है। रोशनी। जैसे—अग्नि, दीपक या सूर्य का प्रकाश। ४. वह उद्गम या स्रोत जिससे उक्त प्रकार की ज्योतिर्मय तरंगें निकलकर हमारी दृष्टि-शक्ति की सहायक होती है। जैसे—यहाँ तो बिलकुल अँधेरा है, कोई प्रकाश (अर्थात् जलता हुआ दीआ, मोमबत्ती आदि) लाओ तो कुछ दिखाई भी दे। ५. लाक्षणिक रूप में कोई ऐसा तत्व या बात जिससे किसी विषय का ठीक और पूरा रूप समझ में आता या स्पष्ट दिखाई देता हो। जैसे—(क) ज्ञान का प्रकाश। (ख) किसी के उपदेश, प्रवचन या भाषण से किसी गूढ़ विषय पर पड़नेवाला प्रकाश। ६. वह स्थिति जिसमें आने पर कोई चीज या बात प्रत्यक्ष रूप में सबके सामने आती है। जैसे—दो हजार वर्ष बाद यह पुस्तक प्रकाश में आई है। ७. आँखों की वह शक्ति जिससे चीज़े दिखाई देती हैं। ज्योति। जैसे—उनकी आँखों का प्रकाश दिन पर दिन कम होता जा रहा है। ८. कोई ऐसा विकास या स्फुटन जो दृश्य, प्रत्यक्ष या व्यक्ति हो। ९. ख्याति। प्रसिद्धि १॰. सूर्य का आतप। धूप। ११. किरण। १२. किसी ग्रंथ या पुस्तक का कोई अध्याय, खंड या विभाग। १३. घोडे की पीठ पर की चमक। वि० १. जगमगाता हुआ। दीप्त। प्रकाशित। २. खिला हुआ। विकसित। ३. जो प्रत्यक्ष या सामने हो। गोचर। ४. प्रसिद्ध। विख्यात। ५. खुला हुआ। स्पष्ट। |
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समानार्थी शब्द-
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प्रकाश :
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पुं० [सं० प्र√काश् (दीप्ति)+ण्वुल्—अक] १. वह जो प्रकाश करे। जैसे—सूर्य। २. पुस्तकें, समाचार-पत्र आदि प्रकाशित करनेवाला व्यक्ति। ३. कांसा। ४. महादेव। |
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प्रकाश-धृष्ट :
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पुं० [सं० सुप्सुपा स०] धृष्ट नायक के दो भेदों में से एक। वह नायक जो प्रकट रूप में धृष्टता करे, झूठी सौंगध खाता हो, नायिका के साथ साथ लगा फिरता हो या इसी तरह की धृष्टता की बातें खुले आम करता हो। |
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प्रकाशन :
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वि० [सं० प्र√काश्+णिच्+ल्यु—अन] १. प्रकाश करनेवाला। २. चमकीला। ३. दीप्तिमान्। पुं० १. प्रकाश करने की क्रिया या भाव। २. प्रकाश में या सबके सामने लाने की क्रिया या भाव। ३. आज-कल मुख्य रूप से ग्रन्थ आदि छपवाकर बेचने तथा प्रचारित करने का व्यवसाय। ४. प्रकाशित की जानेवाली कोई पुस्तक। (पब्लिकेशन; अंतिम दोनों अर्थों के लिए)। ५. विष्णु। |
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प्रकाश-परावर्तक :
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पुं० [ष० त०] शीशे आदि का वह टुकड़ा या उससे युक्त वह उपकरण जो कहीं से प्रकाश-ग्रहण कर उसे अन्य दिशा में ले जाकर फेंकता हो। (रिफ्लेक्टर) |
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प्रकाशमान :
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वि० [सं० प्र√काश्+शानच्] १. चमकता हुआ। चमकीला। प्रकाशयुक्त। २. प्रसिद्ध। विख्यात। मशहूर। |
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प्रकाश-रसायन :
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पुं० [ष० त०] रसायनशास्त्र का वह अंग या शाखा जिसमें प्रकाश की किरणों का विश्लेषण और विवेचन होता है। (फोटो कैमिस्ट्री) |
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प्रकाश-वर्ष :
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पुं० [सं० मध्य० स० ?] बहुत अधिक दूर के आकाशस्थ पिडों या तारों की दूरी मापने का एक मान जो प्रकाश की गति के विचार से स्थिर किया गया है और जो उतनी दूरी का सूचक है जितना प्रकाश एक वर्ष में पार करता है। (लाइट ईयार) जैसे—अमुक तारा पृथ्वी से दस प्रकाश वर्षों की दूरी पर है। विशेष—प्रकाश की गति प्रति सेकेंड १८६००० मील होती है। अतः प्रकाश वर्ष की दूरी लगभग ६० खरब ६०००००००००००० मील होती है। |
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प्रकाश-वियोग :
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पुं० [सं० मध्य० स०] केशव के अनुसार वियोग के दो भेदों में से एक। प्रेमी और प्रेमिका का ऐसा वियोग जो सब पर प्रकट हो जाय। |
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प्रकाश-वियोग :
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पुं० [सं० मध्य० स०] केशव के अनसार संयोग के दो भेदों में से एक। प्रेमी और प्रेमिका का ऐसा संयोग जो सब पर प्रकट हो। |
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प्रकाश-संश्लेषण :
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पुं० [ष० त०] इस बात का संश्लेषण या विवेचन कि प्रकाश पड़ने पर जल, वायु आदि किस प्रकार विकृत होकर दूसरे तत्त्वों में रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करते हैं। (फोटो-सिन्थेसिस) |
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प्रकाश-स्तंभ :
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पुं० [ष० त० या मध्य० स०] वह ऊँची इमारत विशेषतः समुद्र में बना हुआ वह स्तंभ जहाँ से बहुत प्रबल प्रकाश निकलकर चारों ओर फैलता तथा जिससे जलयानों, वायुयानों आदि का रात के समय पथ-प्रदर्शन होता है। (लाइट-हाउस) |
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प्रकाशात्मा (तमस्) :
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पुं० [सं० प्रकाश-आत्मन्, ब० स०] १. सूर्य। २. विष्णु। |
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प्रकाशित :
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भू० कृ० [सं० प्र√काश्+क्त] १. प्रकाश से युक्त किया अथवा प्रकाश में लाया हुआ। २. (ग्रन्थ या लेख) जो छापकर सबके सामने लाया गया हो। ३. जो प्रकाश निकलने या पड़ने से चमक रहा हो। चमकता हुआ। |
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प्रकाशी (शिन्) :
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वि० [सं० प्रकाश+इनि] [स्त्री० प्रकाशिनी] १. जिसमें प्रकाश हो। चमकता हुआ। २. प्रकाश करनेवाला। जैसे—आत्म-प्रकाशी। |
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प्रकाश्य :
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वि० [सं० प्र√काश्+ण्यत्] प्रकाश में आने या लाये जाने के योग्य। अव्य० १. प्रकट या स्पष्ट रूप में। २. (नाटक में कथन) जोर से बोलते और सबको सुनाते हुए। ‘स्वगत’ का विपर्य्याय। |
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