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बजरंग  : वि० [सं० वज्र+अंग] १. वज्र के समान कठोर अंगोंवाला। २. परम शक्तिशाली और हृष्ट-पुष्ट। पुं० हनुमान।
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बजरंगबली  : पुं० [हिं० बजरंग+बली] हनुमान। महावीर।
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बजरंगी बैठक  : स्त्री० [हिं० बजरंग+बैठक] एक प्रकार की बैठक जिससे शरीर बहुत अधिक पुष्ट होता है।
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बजर  : वि० [सं० वज्र] १. बहुत मजबूत। दृढ़ या पक्का। उदाहरण—किसूँ सफीला भुरज की काहू बजर कपाट।—बाँकीदास। २. कठोर। पुं०=वज्र।
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बजरबट्ट  : पुं० [हिं० बजर+बट्टा] १. एक प्रकार के वृक्ष के फल का दाना या बीज जोकाले रंग का होता है और जिसकी माला नजर आदि की बाधा से बचाने के लिए लोग बच्चों को पहनाते हैं। २. व्यापक अर्थ में कोई ऐसी चीज जो किसी प्रकार का अपशकुन तथा दूषित प्रभाव रोकती है। ३. एक प्रकार का खिलौना।
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बजरबोंग  : पुं० [हिं० बजर+बोंग (अनु० )] १. एक प्रकार का धान जो अगहन मास में पकता है। २. बड़ा भारी या मोटा डंडा।
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बजर-हड्डी  : स्त्री० [हिं० बजर+हड्डी] घोडो़ के पैरों में गाँठे पड़ने का एक रोग।
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बजरा  : पु० [सं० वज्रा] वह बड़ी नाव जो कमरे के समान खिड़कियों तथा पक्की छतवाली होती है। पुं०=बाजरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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बजरागि  : स्त्री०=वज्राग्नि (बिजली)।
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बजरिया  : स्त्री० [हिं० बाजार+इया (प्रत्यय)] छोटा बाजार।
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बजरी  : स्त्री० [सं० वज्र] १. पत्थर को तोड़कर बनाये जानेवाले वे छोटे-छोटे टुकड़े जो फरश, सड़क आदि बनाने के काम आते हैं। २. आकाश से गिरनेवाला पत्थर। ओला। ३. वह छोटा नुमायशी कँगूरा जो किले आदि की दीवारों के ऊपरी भाग में बराबर थोड़े-थोड़े अंतर पर बनाया जाता है और जिसकी बगल में गोलियाँ चलाने के लिए कुछ अवकाश रहता है। स्त्री० [हिं० बाजरा] वह बाजरा जिसके दाने बहुत छोटे-छोटे हों।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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